Tuesday 16 April 2013

गुजरात दंगे का सच आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फेसबुक हो या फिर टीवी चैनेल | रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं | रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी | जिसे देखो वो अपने को को जज दिखाता है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं |










कारसेवको को मारने के लिए ट्रेन को जलाने की कई दिनों से योजना बन रही थी-

साबरमती ट्रेन हादसे में मौत की सजा प्राप्त अब्दुल रजाक कुरकुर के अमन गेस्टहाउस पर ही कारसेवको को जिन्दा जलाने की कई हप्तो से योजना बनी थी ... इसके गेस्टहाउस से कई पीपे पेट्रोल बरामद हुए थे |
पेट्रोल पम्प के कर्मचारीयो ने भी कई मुसलमानों को महीने से पीपे में पेट्रोल खरीदने की बात कही थी और उन्हें पहचान परेड में पहचाना भी था .. पेट्रोल को सिगनल फालिया के पास और अमन गेस्टहाउस में जमा किया जाता था |

गोधरा से तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर के द्वारा वडोदरा मंडल ट्रेफिक कंट्रोलर को भेजी गयी गुप्त रिपोर्ट ::- 

गोधरा के तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर राजेन्द्र मीणा ने वडोदरा मंडल के ट्रेफिक कंट्रोलर को आरपीएफ के गुप्तचर शाखा के जानकारी के आधार पर एक रिपोर्ट भेजी थी जिसमे उन्होंने कहा था की गोधरा आउटर पर किसी भी सवारी ट्रेन को रोकना और खासकर अयोध्या जाने वाली या आने वाली साबरमती एक्सप्रेस को रोकना बहुत खतरनाक होगा क्योकि कुछ संदिग्ध लोग कारसेवको को नुकसान पहुचाने की योजना बना रहे है उन्होंने लिखा था की ट्राफिक को इस तरह से कंट्रोल किया जाए की साबरमती ट्रेन को आउटर पर रुकना न पड़े

गौरतलब है की जिस जगह यानी सिगनल फलिया  पर साबरमती ट्रेन को जलाया गया था ठीक उसी जगह पर 28 November 1990 को पांच हिन्दू टीचरों को जलाकर मारा गया था जिसमे दो महिला टीचर थी ..इस केस में भी बीस मुसलमानों को आरोपी पाया गया था 

आखिर ट्रेन हादसे के दो दिनों के बाद गुजरात में दंगे क्यों भडके ?

मित्रो कभी आपने सोचा है कि जब ट्रेन 27 फरवरी को जलाई गयी तो गुजरात में पहली हिंसा दो दिन के बाद यानी १ मार्च  को क्यों हुई ?

मित्रो साबरमती हादसे की किसी भी मुस्लिम सन्गठन ने निंदा नही की .. उलटे जमायत ये इस्लामी हिन्द के तत्कालीन प्रमुख ने इसके लिए कारसेवको को ही जिम्मेदार ठहरा दिया .. शबाना आजमी ने भी कहा की कारसेवको को उनके किये की सजा मिली है ..आखिर क्या जरूरत थी अयोध्या जाने की ...तीस्ता जावेद सेतलवाड और मल्लिका साराभाई और शबनम हाश्मी ने एक संयुक्त प्रेस कांफेरेस के कहा की हमे ये नही भूलना चाहिए की वो कार सेवक किसी नेक मकसद के नही गये थे बल्कि विवादित जगह पर मन्दिर बनाने गये थे |
मशहूर पत्रकार वीर संघवी ने भी इंडियनएक्सप्रेस में एक आर्टिकल लिखा था ""they condemn the crime, but blame the victims" उन्होंने लिखा था की ऐसे बयानों ने हिन्दुओ को झकझोर दिया था |

जब भी मीडिया गुजरात दंगो की बात करता है तब वो दंगे भडकने के पहले और गोधरा ट्रेन हादसे के बाद 27 February 2002 को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेसी नेता अमरसिंह चौधरी का टीवी पर आकर दिया गया बयान क्यों नही दिखाता ?
मित्रो, अमरसिंह चौधरी ने साबरमती ट्रेन हादसे की निंदा नही की बल्कि उलटे वो कारसेवको को कोसने लगे और मृत कारसेवको के बारे में अनाप सनाप बकने लगे .. और कहा की ये लोग खुद अपनी मौत के जिम्मेदार है ..

इन सब बातो ने गुजरात की जनता को भडकाने का काम लिया ..

अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों ? 27 फरवरी 2002 साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर स्थित जगह सिगनल फालिया पर  | इस ट्रेन में जलने से 58 लोगो को मौत हुई | 25 औरते और 19 बच्चे  भी मारे गये |
प्रथम दृष्टया रहे वहा के 14 पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी | अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुची तब २ लोग १०,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल|

अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए?



असल में गोधरा की मुख्य  मस्जिद का मौलाना मौलवी हाजी उमर जी ही इस कांड का मुख्य आरोपी पाया गया और उसे अदालत ने फांसी की सजा दी ..जिसे बाद में आजीवन कारावास में तब्दील किया गया | दुसरे आरोपीयो ने विभिन्न जाँच एजेंसियों और कोर्ट में बताया की मौलाना उमरजी कई हप्तो से मस्जिद में नमाज के बाद भडकाऊ तकरीर देता था और कहता था की हमे बदला लेना है ..इन कारसेवको  ने बाबरी मस्जिद तोड़ी है इसलिए हर मुसलमान का फर्ज है की वो बदला ले |

सवालो के बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की लिस्ट अभी लम्बी है|

अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे....अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?

लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई | 

बाकि की कहानी जिसपर बीती उसकी जुबानी | उस समय मुस्किल से १५-१६ साल की बच्ची की जुबानी |
ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी की माने तो ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर | उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है | हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या | भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार खड़ी  भीड़ मरो-काटो के नारे लगा रही थी | एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की "मारो, काटो. लादेन ना दुश्मनों ने मारो" | साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|



गोधरा फायर सर्विस के जवानो का बयान 

 नानावती औरशाह आयोग को दिए अपने बयानों में फायर बिग्रेड के लोगो ने कहा की जबहमे सुचनामिली की ट्रेन जलाई गयी है तो हम तुरंत पहुचे लेकिन सिग्लन फालिया के पास  कई मुस्लिम महिलाये और बच्चे हमारा सामने लेट गये ..और कई लोग चिल्ला रहे थे की इनको तब तक मत जाने देना जबतक की ट्रेन पूरी तरह जल न जाये |
 हिन्दू सड़क पर उतारे १ मार्च 2002 के दोपहर से | पूरा दो दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिंदुवो या मोदी को  करना था तो 27 फ़रवरी 2002 की सुबह 8 बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने 28 फ़रवरी 2002 की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए | पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश राव देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षा कर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी | या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|

साबरमती ट्रेन हादसा और लालूप्रसाद यादव की घटिया राजनीती जो बाद में गलत साबित हुई 
साबरमती ट्रेन हादसे के ढाई साल के बाद जब घटिया और नीच सोच रखने वाले लालूप्रसाद यादव रेलमंत्री बने तो उन्होंने इस हादसे पर अपनी नीच और गिरी हुई राजनितिक रोटी सेकने के लिए रेलवे के द्वारा बनर्जी आयोग बनाया .. और इस आयोग को पहले ही बता दिया गया था की आपको क्या रिपोर्ट देनी है | असल में कुछ महीनों के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले थे और लालूप्रसाद यादव चाहते थे की किसी भी हिंदूवादी दल को इसका फायदा न मिले बल्कि हिंदूवादी संघटनों को और कारसेवको को ही दोषी ठहरा दिया जाये |

सोचिये जो बोगी ढाई सालो तक खुले आसमान के पड़ी रही उस बोगी की जाँच करके बनर्जी आयोग ने कहा की ट्रेन अंदर से जलाई गयी थी .. मतलब वो कहना चाह रहे थे की सभी कारसेवको को सामूहिक आत्मदाह करने की इच्छा हो गयी इसलिए उन्होंने खुद ही ट्रेन में आग लगा ली और किसी ने भी बाहर निकलने की कोशिस नही की |  मजे की बात देखिये की जस्टिस बनर्जी ने जनवरी २००५ को यानी बिहार चुनाव घोषित होने के ठीक दो दिन पहले अपना विवादास्पद रिपोर्ट सार्वजनिक किये ताकि इस रिपोर्ट के आधार पर लालूप्रसाद यादव बिहार के मुसलमानों को भड़काकर उनका वोट हासिल कर सके |

लेकिन गोधरा ट्रेन हादसे में जख्मी हुए नीलकंठ तुलसीदास भाटिया नामक एक शक्स ने बनर्जी आयोग के झूठे रिपोर्ट को गुजरात हाईकोर्ट में चेलेंज किया | गुजरात हाईकोर्ट ने विश्व के जानेमाने फायर विशेषज्ञ और फोरेंसिक एक्पर्ट का एक पैनेल बनाया . और जस्टिस उमेश चन्द्र बनर्जी को इस पैनेल के सामने पेश होने का सम्मन दिया ... तीन सम्मनो के बाद पेश हुए बनर्जी साहब ने ये नही बता पाया की आखिर उन्होंने ये कैसे निष्कर्ष निकला की ट्रेन में आग भीतर से लगी है .. जबकि आग के पैटर्न और सभी गवाहों और खुद अभियुक्तों के बयानों पे अनुसार आग बाहर से लगाई गयी थी और दरवाजो को बाहर से बंद कर दिया गया था ..जस्टिस बनर्जी कोई जबाब नही दिए और कोर्ट में कहा की वो एक आयोग के मुखिया होने के नाते किसी भी सवाल का जबाब देने के लिए बाध्य नही है .. मेरा काम था रेलवे को रिपोर्ट देना इसे सही या गलत मानना तो रेलवे का काम है |

यानी ये पूरी तरह साबित हो गया था की लालूप्रसाद यादव में जस्टिस उमेशचन्द्र बनर्जी आयोग का गठन सिर्फ अपने राजनीतक रोटिया सेकने के लिए ही किया था | इस आयोग को लालू ने पहले ही बता दिया था की मुझे किस तरह की जाँच रिपोर्ट चाहिए |

फिर ओक्टूबर २००६ के गुजरात हाईकोर्ट की चार जजों की बेंच ने जिसमे सभी जज एक राय पर सहमत थे उन्होंने लालू के बनर्जी आयोग की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया और टिप्पड़ी करते हुए कहा की कोई रिटायर जज किसी नेता के हाथ की कटपुतली न बने ..गुजरात हाईकोर्ट ने बनर्जी रिपोर्ट को रद्दी, बकवास कहा .. अपनी टिप्पड़ी में गुजरात हाईकोर्ट ने कहा
 "Gujarat High Court quashed the conclusions of the Banerjee Committee and ruled that the panel was "unconstitutional, illegal and null and void", and declared its formation as a "colourable exercise of power with mala fide intentions", and its argument of accidental fire "opposed to the prima facie accepted facts on record."


लेकिन ताज्ज्जुब हैकी मीडिया और दोगले सेकुलर लोग सिर्फ एक तरफी बाते ही चलाते है

Sunday 14 April 2013

आज एनडीटीवी पर रवीश कुमार के साथ हमलोग प्रोग्राम देखा "आखिर कब कटेगी चौरासी [84] मित्रो, दिल भर आया .. क्या सारी मीडिया, सारा न्यायतन्त्र, सारे एनजीओ, सारे नेता सारे मानवाधिकारवादी दोगले, सिर्फ गुजरात दंगे पीडितो को ही न्याय दिलाने के लिए अपनी छाती कूटेंगे ? कुछ तो सोचो मेरे हिन्दू मित्रो...आखिर कब तक सेकुलरवाद की घुट्टी पीकर गहरी नींद में सोते रहोगे ?





गुजरात दंगो के लिए सिर्फ दस साल के भीतर तीन तीन एसआईटी और पांच पांच आयोग और आठ विशेष अदालते बनाकर कुल २३० लोगो को सजा भी सुना दी गयी ..और सजा भी ऐसी की सिर्फ मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर .. क्योकि मरने वाले मुस्लिम थे

और वही दूसरी तरह आज 29 साल बीतने के वावजूद भी दिल्ली के सीख विरोधी दंगो में सिर्फ एक आदमी को सजा हुई .. त्रिलोकचंद को .. उसे आठ केसों में हर केस में फांसी की सजा सुनाई गयी ..लेकिन कांग्रेस को ये डर सताने लगा की अगर त्रिलोकचंद अपना मुंह खोलेगा तो फिर बड़े बड़े लोग नप जायेंगे इसलिए दिल्ली की शीला सरकार ने राष्ट्रपति से अनुरोध करके उसकी सजा को उम्र कैद में तब्दील करवा दिया .. फिर जब त्रिलोकचंद ने अपना मुंह खोलने की धमकी दी तो दिल्ली की शीला सरकार ने राज्यपाल को एक अनुरोध भेजा की चूँकि त्रिलोकचंद का जेल में चालचलन बहुत अच्छा है इसलिए उसे माफ़ी देते हुए रिहा कर दिया जाये |

मित्रो सोचिये दोगली कांग्रेस दोगले लोगो को ही राज्यपाल बनाती है ..जिस राज्यपालों के दफ्तर में कई कई महीनों तक फ़ाइले धुल खाती है उसी राज्यपाल ने सिर्फ एक दिन के भीतर त्रिलोकचंद को माफ़ी देते हुए रिहा करने का आदेश दे दिया .. लेकिन जब हल्ला मचा तब जाकर अपने आदत के अनुसार कांग्रेस ने थूककर चाटते हुए अपना फैसला बदल लिया |

लेकिन दिल्ली की शीला सरकार मानवता के आधार पर समाजकल्याण फंड से 62 सिखों की हत्या में गुनाह साबित होने पर सजा पाए त्रिलोकचंद के परिवार को हर महीने तीस हजार रूपये देती है और उसके दोनों बच्चो की मुफ्त में पढाई भी हुई | सिर्फ इसलिए की त्रिलोकचंद अपना मुंह न खोले |

मित्रो, गुजरात दंगो पर जो अख़बार सबसे ज्यादा हल्ला मचाया है और आज भी मचाता है वो है टाइम्स ऑफ़ इंडिया .. विदेश की कम्पनी बोनेट एंड कोलमेन द्वारा संचालित ये अख़बार दिल्ली के दंगो के समय एक सम्पादकीय लिखा था ..जिसमे लिखा की "हिन्दुओ का गुस्सा आखिर कब तक भीतर उबाल मारेगा ? सिख कौम भारत की है ही नहीं बल्कि ये पाकिस्तान से आई है और दिल्ली पर हावी होती जा रही है ..इनका अक्ल ठिकाने लगाना जरूरी था"

कांग्रेसी सांसद के के बिरला का अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स ने भी अपने सम्पादकीय मे लिखा था कि "पाकिस्तान से आये सीख लोग भारत के हिन्दुओ से उनका हक छिनकर पूंजीपति हो गये है इस दंगे ने अब बराबर कर किया है जिसका हक था उसने अपना हक वापस ले लिया तो क्या गुनाह किया"

मित्रो, सोचिये ये सभी बाते कभी मीडिया में नही आई ये तो आज रवीश कुमार के प्रोग्राम में चितम्बरम को जूतियाने वाले पत्रकार और लेखक जनरैल सिंह और दंगो के दो पीड़ित और चश्मदीद गवाह भी थे तब ये बाते आज लोगो को पता चली |

वाह रे नीच और दोगली मीडिया .. आज तक गुजरात दंगे की उस महिला को सामने नही ला पाई जिसका पेट चीरकर बच्चे को बाहर निकला गया था क्योकि ये झूठी बात फैलाई गयी .. खुद दो दो आयोगों ने कहा है की ये बात कुछ लोगो के द्वारा सिर्फ सनसनी फ़ैलाने के लिए फैलाई गयी ..
लेकिन आज तक किसी भी मीडिया ने कांगेस विशेषकर राजीव गाँधी द्वारा प्रायोजित सीख विरोधी दंगो पर इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी नही बनाई


और तो और इस दंगे के तीन मुख्य आरोपी है एचकेएल भगत, जगदीश टाईटलर, और सज्जन कुमार .. कांग्रेस ने इन्हें इनके काम का खूब ईनाम दिया .. राजीव गाँधी ने एचकेएल भगत को 84 से लेकर 90 तक सुचना और प्रसारण मंत्री बनाया ताकि अखबारों को मैनेज किया जा सके | सज्जन कुमार और जगदीश टाईटलर को भी केबिनेट मंत्री बनाया गया ताकि इसी बहाने सिखों के जख्मो पर नमक छिड़का जा सके | जगदीश टाईटलर आज भी कांग्रेस सेवा दल का राष्ट्रिय अध्यक्ष है |

मित्रो आज सरकार बनाने के लिए 272 सांसद चाहिए जबकि राजीव गाँधी के पास उस समय 407 सांसद थे ... लेकिन उन्होंने कभी भी सिखों को न्याय दिलाने के लिए कुछ नही किया ..और उन्होंने दिल्ली के सीख विरोधी दंगो की कभी निंदा तक नही की और न ही उसके लिए कभी माफ़ी मांगी | उलटे 4 नवम्बर 1984 को दूरदर्शन पर उन्होंने कहा की "जब भी जंगल में कोई बड़ा बरगद का पेड़ गिरता है तो आसपास की जमीन हिलने लगती है और इससे छोटे छोटे पेड़ भी गीर जाते है " ये फुटेज आज भी दूरदर्शन की आर्काइव में मौजूद है |

और तो और संसद में एक उदाहरण देते हुए राजीव गाँधी के कहा था कि सोचिये आप किसी टैक्सी से जा रहे हो और अचानक पता चले की आपके टैक्सी का ड्राइवर सरदार है तो क्या आपकी रूह कांप नही जाएगी ?


खैर ... कहते है न की उपर वाला सब देखता है और उपर वाले की बेआवाज लाठी किसी को भी नही छोडती .और जब पाप का घडा भर जाता है तो उपर वाला उस पापी को ऐसा सजा देता है की रूह तक कांप जाती है .. सिखों के नरसंहार करने के लिए राजीव गाँधी को भले ही धरती की किसी भी अदालत में पेश तक नही होना पड़ा लेकिन उपर की अदालत में तो सबका हिसाब होता है ... भगवान ऐसी कुत्ते जैसी मौत किसी को न दे जैसी मौत राजीव गाँधी को मिली ..असल में राजीव गाँधी को सिखों के नरसंहार के लिए उपर वाले ने सजा दी .. उनके चीथड़े चीथड़े उड़े और ऐसे उड़े की कि कैनवास के जूतों के आधार पर माना गया की इस विस्फोट में राजीव गाँधी के चीथड़े उड़े है |

धन्य हो भगवान ..धन्य हो वाहे गुरु .. तुम्हारी जांच आयोग और तुम्हारी अदालत सर्वोच्च है ..तुम्हारे अदालतों से कोई पापी भले ही तो ४०७ सिटे क्यों न जीता हो वो भी बच नही सकता

Tuesday 9 April 2013

दिग्विजय सिंह .... मोदी जी की शादी नही हुई थी .. सगाई हुई थी और वो भी सिर्फ चार साल की उम्र में .. लेकिन इससे देश को कुछ लेना देना नही है ... देश को अगर लेना देना है तो इन नापाक, गंदे और घिनौने रिश्तो से .... जरा इन पर भी जबाब देना



१- सोनिया गाँधी से क्वात्रोची का क्या रिश्ता था ? जहाँ तक पूरी दुनिया जानती है वो सोनिया गाँधी के रिश्ते में दूर दूर तक कुछ नही लगता था ... फिर वो किस रिश्ते से सोनिया गाँधी के घर में १० सालो तक रहा ??

२- सोनिया का आखिर क्वात्रोची से कौन सा रिश्ता था की उसे बचाने ले लिए सोनिया ने पूरी भारत के कानून का मजाक बना दिया था ?

३- अगर रिश्ते की बात करते हो तो मेनका गाँधी तो इंदिरा गाँधी की सगी बहु थी .. उनके एक साल के बच्चे के साथ इंदिरा ने रात को क्यों हमेशा के लिए घर से बाहर निकाल दिया ?

४- जवाहरलाल नेहरु अपनी पत्नी जो टीबी की मरीज थी उन्हें इलाहबाद में क्यों रखते थे ? उन्हें कभी भी अपने पास क्यों नही रखा ? नेहरु दिल्ली में एडविना से इश्क फरमाते थे | इस बात का जिक्र खुद इंदिरा गाँधी ने अपनी किताब में भी किया है ..
इंदिरा गाँधी की सहेली पुपुल जयकर ने भी लिखा है की इंदिरा अपने बाप जवाहर के द्वारा अपनी माँ की उपेछा और एडविना के साथ उनके अवैध सम्बन्ध से बहुत परेशान रहती थी |

५- खुद इंदिरा गाँधी जब प्रधानमन्त्री बन गयी तब अपने पति फिरोज को लात मारकर घर से भगा दिया और उनके मरने पर उसके अंतिम संस्कार तक में नही गयी | दिग्गी राजा क्या कोई एक भी भारतीय नारी का नाम बता सकते हो जो अपने पति के अंतिम संस्कार ने न जाये ??

७- खुद इंदिरा ने पहली शादी अपने साथ पढने वाले मुहम्मद युनुस से लन्दन की एक मस्जिद में मैमुदा बेगम बनकर की थी ... मुसलमानों के मसीहा जवाहर बहुत परेशान हुए क्योकि उनकी इकलौती बेटी इस्लाम कुबूल करके मुसलमान बन गयी थी ... फिर गाँधी के द्वारा इंदिरा को समझाया गया और सर तेज बहादुर सप्रू के द्वारा इलाहबाद हाईकोर्ट में एक एफिडेविट इंदिरा के तरफ से डाला गया की मैने जो मैमुदा बेगम बनकर निकाह किया है उसे फेक घोषित किया जाये ..


८- दिग्गी राजा सारा दिन अब दुसरो पर बोलते रहते हो .. कभी कांग्रेस के दामाद राजा पर भी बोला करो ..

आखिर क्या कारण रहा की प्रियंका गाँधी के शादी के बाद राबर्ट बढेरा ने बकायदा पेपर में विज्ञापन देकर जिसमे उसने अपने बाप का फोटो तक छपवाया था घोषणा किया की मेरे सगे बाप से मेरा कोई सम्बन्ध नही है ...
फिर एक के बाद राबर्ट की बहन एक्सीडेंट में मरी , भाई और बाप होटल में मरे पाए गये ..माँ छत से गिरकर मरी .. एक भाई का आजतक कुछ पता नही की जिन्दा है भी या नही


दिग्विजय सिंह ... ठीक है की तुम्हारी पार्टी ने मीडिया को खरीद लिया है जो तुम्हारे बकवास को दिखाती रहती है ....
लेकिन काश वही मीडिया तुमसे कभी इन सवालों पर भी पूछने की हिमत्त करती

**********जितेन्द्र प्रताप सिंह ***********

आखिर नरेद्र मोदी ने गीर फारेस्ट में महिला फारेस्ट गार्ड भर्ती करने का क्रांतिकारी और विश्व में अपने तरह का अनूठा फैसला क्यों लिया था ?




मित्रो, जब मोदी जी ने गुजरात की सत्ता सम्भाली तब भूकम्प पुनर्वास के बाद उन्होंने दुसरे कामो पर ध्यान दिया | वो चौक गये जब उन्हें बताया गया की गीर ने अब सिर्फ 56 एशियाटिक बब्बर शेर बचे है | उन्होंने इस मसले पर फारेस्ट विभाग के सभी अधिकारियो और कई वन्यजीवों के विशेषज्ञ की मीटिंग बुलाई |
उन्होंने सबकी बाते सुनी ... सब समझा .. उन्हें बताया गया कि शिकारी फारेस्ट गार्डो को पैसा देकर शेरो का शिकार करते है.. और शेरो की खाले, नाख़ून व् अन्य कई चीजे चीन भेजी जाती है जहां इनकी बहुत मांग है |

फिर बैठक के अंत में नरेंद्र मोदी जी ने गीर फारेस्ट के चीफ कंजरवेटर डा अमित कुमार से कहा कि आप 70 फारेस्ट गार्ड और बीट गार्ड और 20 रेंजर की वैकेंसी निकालिए ...

लेकिन दो शर्ते डालिए --

१- प्रार्थी सासन गीर या उससे आसपास का रहने वाला हो
२- महिला हो

मित्रो, "महिला" सुनते ही बैठक में मौजूद सभी बड़े बड़े खोपड़ी वाले विशेषज्ञ चौक उठे ... किसी ने विरोध नही किया क्योकि मुख्यमंत्री के फैसले का विरोध करने की हिम्मत बड़े बड़े अधिकारियो में नही होती .. फिर थोड़ी देर के बाद डा अमित कुमार ने कहा सर क्या महिलाओ के शेरो के जंगल में काम ओर रखना ठीक होगा ? उनकी हिम्मत होगी ..

मोदी जी ने कहा अभी आप उनको नियुक्त करिये फिर मै आपको एक साल के बाद बताऊंगा की आखिर मै महिलाओ को ही इस काम पर क्यों रखना चाहता हूँ | लेकिन जब उनकी नियुक्ति हो जाये तब आप उनको मेरे से मिलाने जरुर लाइयेगा |

फिर 70 महिला फारेस्ट गार्ड, और 20 महिला फारेस्ट रेंजर की नियुक्ति के बाद जब वो मोदी जी से मिलने आई तब मोदी जी ने उनसे पूछा कि क्या आप जानती है की मैंने आपको ही क्यों इस नौकरी पर रखा .. तब किसी भी महिला से संतोषजनक जनक जबाब नही दिया |

फिर मोदी जी ने कहा की मशहूर लेखक शिवानी ने लिखा है की "सृजन का दर्द और सुख वही महसूस कर सकता है जिसने सृजन का दर्द सहा है"

आज शिकारी चंद पैसे देकर शेरो के बच्चों को और शेरो को मार रहे है ... मुझे विश्वास है की आप अब महिला है आपको पता होगा की अब किसी शेर को मारा जाय तब शेरनी का दर्द क्या होगा या जब किसी शेरनी का शिकार हो तब उसके बच्चों का दर्द क्या होता होगा | ये पुरुष फारेस्ट गार्ड चंद सिक्को की खनक से अंधे हो सकते है लेकिन मुझे विश्वास है की आपको खरीदने वाला नोट दुनिया के किसी भी टकसाल में नही छपा होगा क्योकि आपके ममता है जिसे पैसे से नही ख़रीदा जा सकता |

मित्रो, धीरे धीरे गीर ने शेरो की संख्या बढती चली गयी ... और आज 512 शेर है और अब केंद्र सरकार गीर के शेरो को कान्हा नेशनल पार्क और रणथमबौर नेशनल पार्क में भी स्थानान्तरण करना चाहती है |

मित्रो, आज महिला फारेस्ट गार्ड कभी घड़ी देखकर अपनी ड्यूटी नही निभाती बल्कि वो गीर के शेरो को अपने परिवार के सदस्यों जैसा मानती है ..

गीर में शेरो की बढती संख्या पर रिसर्च करने आज दुनिया भर के प्रकृतिप्रेमी आते है .. और नेशनल जियोग्राफिक ने भी इस पर एक डोक्युमेंट्री दिखा चूका है .. और मोदी जी के इस फोर्मुले को आज अफ्रीका और अमेरिका का वनविभाग भी अपना रहा है |

लेकिन भारत की मीडिया ???? अरे उनकी सुई तो आज भी 2002 पर अटकी पड़ी है |