Monday 22 July 2013

कंधमाल में हिन्दू संत स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या का मुख्य आरोपी ईसाई धर्म स्वीकार कर चूका और अब फादर बन चूका फादर अजय कुमार सिंह को हिन्दुओ के उपर हमले का केंद्र सरकार ने पुरस्कार दिया ... हिन्दू संत स्वामी लक्ष्मणानंद का हत्यारा फादर अजय कुमार सिंह को केंद्र सरकार की अल्पसंख्यक आयोग "अल्पसंख्यक मैंन" का पुरस्कार देने जा रही है |


अजय कुमार सिंह के बारे में स्थानीय जिला प्रशासन भी नकारात्मक रिपोर्ट भेज चुकी है यह कहते हुए कि अगर अजय कुमार सिंह को पुरस्कृत किया जाता है तो कंधमाल में इसका गलत संदेश जाएगा क्योंकि आदिवासियों के बीच उनकी छवि अच्छी नहीं है। स्थानीय पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन ने संयुक्त रूप से अल्पसंख्य आयोग को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें कहा है कि अजय कुमार सिंह के बारे में आदिवासियों में स्पष्ट धारणा है कि वे इलाके में धर्मांतरण के काम में लगे हुए हैं। इसलिए अगर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है तो आदिवासियों को इससे धक्का पहुंचेगा।

लेकिन अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख वजाहत ह्जिबुल्लाह ने कहा की हमारे पास केंद्र सरकार ने दो नामो को भेजा था .. तीस्ता जावेद सेतलवाड और फादर अजय कुमार सिंह .. हमने कई पहलुओ पर विचार करने के बाद पाया की फादर अजय कुमार सिंह "माइनारिटी मैन" पुरस्कार के लिए सबसे उपयुक्त है |

सोचिये मित्रो, केंद्र की कांग्रेस सरकार को माइनारिटीमैन पुस्स्कार के लिए सिर्फ दो नाम ही दिखे ..पहला तीस्ता जावेद सेतलवाड जो सिर्फ और सिर्फ गुजरात और मोदी मोदी कहकर अपनी छाती कुटती है ..
और दूसरा नाम फादर अजय कुमार सिंह जिसने कंधमाल में सालो से चर्चो के इशारो पर गरीब आदिवासियों के धर्मांतरण में जुटा हुआ है ... और जिसने अपने रास्ते के सबसे बड़े रोड़े हिंदूवादी नेता स्वामी लक्ष्मणानंद जो कंधमाल में चर्चो को बेनकाब करने में जुटे हुए थे और बड़े पैमाने पर परिवर्तित ईसाईयों को वापस हिन्दूधर्म में ला रहे थे .. उनकी हत्या कर दी

मित्रो, मै अपने पहले वाले पोस्ट में एक कांग्रेस नेता के द्वारा मोदी जी का झाड़ू लगते हुए फोटो डाला था वो असल में कांग्रेसियो ने मोदी जी का उपहास और मजाक बनाने के लिए इस फोटो को मार्फ़ करके बनाया है | लेकिन क्या इन नीच कांग्रेसियो को किसी के मेहनत का मजाक उड़ाना अच्चा लगता है ?? क्या झाड़ू लगाने वाला व्यक्ति इन्सान नही होता ?? असल में ये नीच कांग्रेसी कभी मेहनत नही करते इनकी मालकिन जो घोटाला करती है उसमे से चंद टुकड़े इन कुत्तो के आगे भी फेक देती है .जिसे चबाकर ये कांग्रेसी अपना गुजरा करते है ..इसलिए इन्हें आम हिंदुस्थानी के मेहनत का पता ही नही होता |



अरे दोगलो ... भारत के खजाने को लुटकर इटली भेजने वाली डायन से ये झाड़ू लगता व्यक्ति ज्यादा पूज्यनीय है क्योकि ये अपने मेहनत का खा रहा है .. किसी घोटाले के पैसे से ये अमेरिका में अपने खुनी बवासीर का इलाज नही करवाने जाता

एक बड़े कांग्रेसी नेता ने मोदी जी के इस नकली मार्फ़ फोटो को डालकर उपहास उड़ा रहा है कि एक समय संघ कार्यालय में झाड़ू और पोछा लगाने वाला व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बनने की सोच भी जैसे रख सकता है |

मित्रो, मोदी जी का पूरा जीवन बहुत गरीबी और संघर्शो में बिता है .. उनको पढने का बहुत शौक था .. वो जब अहमदाबाद के संघ कार्यालय हेडगेवार भवन में रहते थे और साथ ही गुजरात कालेज में पढ़ते भी थे तब किताबे खरीदने और फ़ीस भरने के लिए उन्होंने कार्यालय में प्रमुख से कहा की आप किसी और से पुरे कार्यालय में झाड़ू पोछा लगवाते हो मै पुरे कार्यालय में हर रोज झाड़ू पोछा लगाऊंगा और जो पैसा आप दुसरे को देते हो उस पैसे से मै अपनी फ़ीस भरूँगा और किताब कापी खरीदूंगा |

फिर मोदी जी हर सुबह बड़े लगन से पुरे कार्यालय में सफाई करते थे फिर कालेज जाते थे फिर शाम को शाखा लगाते थे फिर रात को एक बार फिर पुरे कार्यालय की सफाई करते थे |

मित्रो, असल में आज दोगले और नीच कांग्रेसी भारत की मूल संस्कृति तो दूर अपने ही पुराने नेताओ के जीवन से प्रेरणा नही लेते है ... इन दोगलो को पता ही नही है की लाल बहादुर शास्त्री का जीवन कितनी गरीबी में बिता है .. उनके पास नाव वाले को देने के पैसे नही थे और वो अपने पीठ पर अपना स्कुल बैग बांधकर उफनती गंगा नदी को तैर कर पार करते थे .. किताबे खरीदने के लिए कई एकड़ गन्ने के खेतो को कुदाल से जोतते थे .. और एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बने |

इन दोगले कांग्रेसियो ने अपने ही नेता सरदार पटेल के जीवन को भी नही पढ़ा है .. की उन्होंने अपने जीवन में कितने संघर्ष किये है |

और तो और लगता है इन नीच कांग्रेसियो ने अपनी मालकिन सोनिया गाँधी का भी जीवन नही पढ़ा है .... बेचारी जब पैदा हुई तब उसके पिता चार सालो से जेल में बंद थे ,, वो तो उस समय ब्लुत्रुथ से बच्चे पैदा करने की तकनीक इटली में विकसित हो गयी थी ...

फिर उनके पिता इटली के जानेमाने अपराधी और शराबी थे ..इसलिए उनके घर पर हर रोज पुलिस का छापा पड़ता था .. जिससे पूरा परिवार तंग रहता था .. फिर एक दिन सोनिया के माँ को पता चला की कस्बे की कई लडकिया लन्दन में वेटर का काम करने के लिए जा रही है तो माँ ने सोनिया को भी उस ग्रुप के साथ भेज दिया ... सोनिया को कैम्बिज शहर के एक बार में वेटर की नौकरी मिल गयी क्योकि उस बार का मालिक सिर्फ लडकियों को ही इसलिए नौकरी पर रखता था ताकि लम्पट स्टूडेंट्स लडकियों के तरफ आकर्षित होकर उसके बार में आये |
आखिर हम मोदी को क्यों न बनाये अपना प्रधानमंत्री...?

मित्रो यह फोटो कांग्रेसियों ने आदरणीय मोदी जी का उपहास करने के लिए डाली थी.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था की मोदी जी की यह फोटो सामने आने के हम लोगो के दिलो में और सम्मान आदर बड जाएगा .

आज मोदी जी जिस मुकाम पर है ये उनकी मेहनत लगन और राष्ट्रभक्ति का ही नतीजा है ..
आज कांग्रेस्सियो को डर है कहीं मोदी जी गुजरात की तरह पुरे देश से कांग्रेस जेसी देशद्रोही पार्टियों का सफाया न कर दे ..

आज भारत में नरेन्द्र मोदी जी के सिवा और कोई विकल्प नहीं है हमारे पास, या कांग्रेस रूपी कचरे को साफ़ करने मोदी जी ही एकमात्र समाधान हैं ??

चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए - भारत के प्रधानमंत्री पद को नरेन्द्र भाई अवश्य सुशोभित करेंगे..!!

मेरे आका मेरा ईनाम ?? -- संजीव भट्ट ||| तुमको ईनाम नही मिलेगा बल्कि तुम्हारे साथ वही सुलूक होगा जो एक गद्दार के साथ होता है -- कांग्रेस



मित्रो, मुझे एक ऐतिहासिक घटना याद आ रही है ... जब महमूद गजनवी सोमनाथ पर हमला किया था तब उसे एक पुजारी ने ही ईनाम के लालच में बताया था की मन्दिर में किस जगह कितना सोना रखा है ..
जब वो लुटकर जाने लगा तब उस पुजारी ने कहा की मेरा ईनाम दो ..... फिर महमूद गजनवी के तलवार निकली और कहा की तुझ जैसे कौम के गद्दारों को ईनाम नही बल्कि तुम्हारा सर कलम होना चाहिए क्योकि जो इन्सान अपने धर्म का नही हुआ उसे जिन्दा रहने का हक नही है .. फिर गजनवी ने उसका सर कलम कर दिया |


ठीक ऐसा ही कांग्रेस की केंद्र सरकार ने संजीव भट्ट के साथ किया | आज सुबह सुबह गुजरात सरकार के पास केन्द्रीय गृहमंत्रालय का एक पत्र आया ..जिसमे केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने संजीव भट्ट के खिलाफ पद के दुरुपयोग, हिरासत में मौत और टार्चर को लेकर कड़ी करवाई करने की अनुमति दी ... केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने ये भी कहा की गृहमंत्रालय संजीव भट्ट को आईपीएस सेवा से बर्खास्त करने का अनुमोदन भी करता है |

बेचारे संजीव भट्ट .. चले थे सिंघम बनने ..चुइंगम बन गये !!

शहीदों का मजहब देखकर यूपी की सपा सरकार मुवावजा तय करती है ... यदि मरने वाला मुस्लिम है तो फिर सारे नियम कायदे कानून से परे बेईतिहा मुवावजा और परिवार के पांच लोगो को सरकारी नौकरी .. और यदि शहीद होने वाला हिन्दू है तो सिर्फ नियमानुसार मिलने वाला विभागीय मुवावजा और एक नौकरी



तारीख 24 जून है और दोपहर के डेढ़ बजे हैं. इलाहाबाद के कालिंदीपुरम इलाके में रहने वाली 36 वर्षीया राजरेखा द्विवेदी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के कमरे में अपने पति की मौत के बाद मिलने वाली विभागीय मदद की जानकारी ले रही हैं. 10 दिन पहले उस वक्त राजरेखा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब 14 जून को उनके पति और इलाहाबाद के बारा थाना प्रभारी 38 वर्षीय आर.पी. द्विवेदी की दोपहर साढ़े बारह बजे बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. द्विवेदी चोरी की गई इंडिगो कार बरामद करने के लिए बदमाशों का पीछा कर रहे थे. एसएसपी मोहित अग्रवाल एक कागज पर हिसाब लगाकर बताते हैं कि दिवंगत थाना प्रभारी को मिलने वाली सभी सेवा निधियों का कुल जोड़ 25 लाख रु. बैठता है, जिसमें ड्यूटी के दौरान शहीद होने पर सरकार से मिलने वाली विशेष अनुग्रह राशि भी शामिल है.
राजरेखा नौकरी के बारे में पूछती हैं तो एसएसपी जवाब देते हैं कि यह परिवार के किसी एक सदस्य को मिलेगी. राजरेखा ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं. दो बच्चे हैं. बेटा नौवीं क्लास में पढ़ता है और बेटी पांचवीं में. एसएसपी बताते हैं कि सरकारी नियमों के मुताबिक पांच साल बाद बेटे के बड़े हो जाने पर योग्यता के मुताबिक नौकरी दी जाएगी. करीब 15 मिनट बाद राजरेखा बाहर निकल आती हैं, लेकिन उनके चेहरे पर असंतुष्टि का भाव साफ झलक रहा है. राजरेखा तो ज्यादा कुछ नहीं कहतीं, लेकिन उनके साथ आए दिवंगत आर.पी. द्विवेदी के बड़े भाई संजय द्विवेदी कहते हैं, ‘हमें यकीन था कि सरकार परिवार के दो लोगों को नौकरी देने के साथ कम-से-कम 50 लाख रु. की सहायता भी देगी जैसा एक डिप्टी एसपी के मामले में हुआ था.’

संजय अपने भाई की शहादत पर कुछ वैसे ही सम्मान की आस सरकार से लगाए बैठे हैं, जैसा मार्च में प्रतापगढ़ की तहसील कुंडा के बलीपुर गांव में बदमाशों के हाथों मारे गए डिप्टी एसपी जिया उल हक के परिवार को मिला था. इस सनसनीखेज हत्याकांड ने सपा सरकार को इस कदर दबाव में ला दिया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने डिप्टी एसपी के परिवार को न सिर्फ 50 लाख रु. मुआवजा दिया, बल्कि दिवंगत जिया की पत्नी परवीन आजाद को लखनऊ पुलिस मुख्यालय में विशेष कार्याधिकारी और छोटे भाई सोहराब अली को गोरखपुर पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय में आरक्षी (कल्याण) का पद भी दिया.

हालांकि सरकार ने पहले उनके परिवार से पांच लोगों को नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन बाद में सिर्फ दो को ही नौकरी मिली. पति को खोने के सदमे के साथ बीडीएस की आखिरी साल की पढ़ाई और नौकरी के साथ न्याय की जंग लड़ रही परवीन भी तनाव में है. जुलाई में होने वाली परीक्षा और इंटर्नशिप पूरी करने के लिए परवीन ने पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री से एक साल के अवकाश के लिए आवेदन किया था, लेकिन उस पर फैसला अभी लंबित है. दिवंगत जिया उल हक के परिवार को देखकर इस बात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि घर के एक कमाऊ सदस्य के अचानक न रहने पर किस तरह की मुसीबतें आ खड़ी होती हैं, जिनके आगे फौरी तौर पर सरकारी मदद बौनी साबित होती है.

अगर जिया उल हक के परिवार का यह हाल है तो उन शहीद अधिकारियों और कर्मचारियों के पारिवारिक हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिन्हें मामूली मदद से ही संतोष करना पड़ा.

जिया की हत्या के बाद 30 मई को आगरा के ग्राम हथिया में क्राइम ब्रांच के आरक्षी सतीश, 5 जून को सहारनपुर के थाना चिलकाना क्षेत्र में आरक्षी राहुल राठी, 7 जून को बरेली के कैंट थाना क्षेत्र में आरक्षी चालक अनिरुद्ध यादव भी बदमाशों की धरपकड़ के दौरान गोलियों का शिकार हो गए थे. इन शहीद पुलिसकर्मियों के परिवारों के लिए भी अन्य सेवा निधियों के अलावा सरकार की ओर से 10 लाख रु. की ही अनुग्रह राशि मंजूर की गई.

पिछले कुछ दिनों से सरकार के मुआवजा बांटने के तौर-तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं. सरकार ने प्रतापगढ़ के बलीपुर गांव के पूर्व प्रधान नन्हे यादव और उनके छोटे भाई सुरेश यादव की हत्या के बाद उनके परिवार को 20-20 लाख रु. मुआवजा दिया, जबकि नन्हे यादव का बेटा योगेंद्र, भाई सुधीर और सुरेश यादव का भाई यादवेंद्र जिया की हत्या के आरोपी हैं.

सवाल मई में पुलिस हिरासत में कथित आतंकी खालिद मुजाहिद की मौत के बाद उसके परिवार को 6 लाख रु. मुआवजा देने पर भी उठ खड़े हुए हैं. हालांकि खालिद के ताऊ जहीर आलम फलाही ने सरकारी मदद लौटा दी. वे कहते हैं, ‘जितना पैसा सरकार दे रही है उससे सात गुना हम लोगों ने खालिद को छुड़ाने के लिए मुकदमेबाजी में खर्च किया है. जिया के कातिलों को भी सरकार ने 40 लाख रु. दिए और हमें छह लाख रु. देकर क्या कहना चाहती है? हम ये पैसा लेकर अपना सिर नहीं झुकाना चाहते.’

हिरासत में खालिद मुजाहिद की मौत से उपजे आक्रोश को थामने के लिए सरकार ने मुआवजे की घोषणा की, लेकिन पिछले दो महीने के दौरान हिरासत में मौत के करीब एक दर्जन मामले सामने आए और इनमें से किसी भी मृतक के परिवार को मुआवजा नहीं दिया गया.

राजनैतिक विश्लेषक इसे सपा की राजनैतिक मजबूरी करार दे रहे हैं. प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले मेरठ कॉलेज में अर्थशास्त्र के रीडर डॉ. मनोज सिवाच कहते हैं, ‘सपा को लगता है कि मुसलमान-यादव गठबंधन विधानसभा चुनाव में उनकी जीत का अहम कारण था. ऐसे में पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें किसी भी तरह नाराज नहीं करना चाहती.’ मुआवजे के इस मनमाने रवैये के विरोध में बीजेपी पूरे प्रदेश में प्रदर्शन कर चुकी है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी कहते हैं, ‘सपा सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण की हदें पार कर चुकी है. एक आतंकी की मौत पर उसके परिवार को मुआवजा देना इसका साफ उदाहरण है. शहीद पुलिस कर्मियों के परिवारों की जितनी मदद की जाए, कम है. लेकिन विशेष जाति के लिए खजाना लुटा देना जातिवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा देना है.’

जौनपुर निवासी 35 वर्षीया सीमा देवी के पति रमेश प्रसाद राजकीय इंटर कॉलेज में अध्यापक थे. 2011 में उनकी मृत्यु के बाद शिक्षा विभाग ने रमेश की पहली पत्नी को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी. सीमा रमेश की दूसरी पत्नी हैं. जिया के परिवार में दो लोगों को नौकरी देने के निर्णय को आधार बनाकर सीमा देवी ने मई में इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर कर रमेश की दूसरी पत्नी होने के नाते सरकारी नौकरी की मांग की. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ए.पी. साही ने सरकार से पूछा कि किन प्रावधानों के तहत जिया की पत्नी और भाई को सरकारी नौकरी दी गई है? छह जून को कोर्ट में मौजूद प्रमुख सचिव गृह आर.एम. श्रीवास्तव जिया उल हक के भाई सोहराब अली को नौकरी देने का कोई वाजिब जवाब कोर्ट को न दे सके. अब कोर्ट ने मुख्य सचिव जावेद उस्मानी को पक्षकार बनाते हुए उनसे जवाब मांगा है. आरटीआइ एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने भी हाइकोर्ट में याचिका दायर कर एक जैसे मामले में अलग सरकारी मदद दिए जाने को कठघरे में खड़ा किया है. नूतन ठाकुर कहती हैं, ‘सरकारी नियमों में शहीद पुलिस कर्मियों को उनके रैंक के आधार पर आर्थिक मदद देने का कोई प्रावधान नहीं है.’
इलाहाबाद की डॉ. मधुलिका पाठक ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कुछ सवाल उठाए हैं. उनके पति डॉ. मणि प्रसाद पाठक कानपुर में क्षेत्राधिकारी, कलेक्टरगंज के साथ प्रभारी स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के रूप में तैनात थे. 13 जून, 2007 को बहेलिया गैंग से मोर्चा लेते हुए वे शहीद हो गए थे. मधुलिका कहती हैं, ‘पुलिस विभाग ने मेरी शैक्षिक योग्यता को दरकिनार करते हुए दारोगा की नौकरी लेने को कहा. अगर सरकार जिया उल हक की पत्नी को पुलिस विभाग में ओएसडी बना सकती है तो उससे कम योग्यता न रखने पर मुझे भी ऐसे ही स्तर की नौकरी मिलनी चाहिए.’
मुआवजा बांटने में सपा सरकार ने जिस तरह से भेदभाव किया है उससे समाज में कुछ जातियों और समुदायों के बीच खिंची लकीर का रंग गहरा हो गया है. तार्किक, सुस्पष्ट और एक समान मुआवजा नीति बनाकर ही सरकार इस लकीर को हल्का कर सकती है. (साथ में कुमार हर्ष)

मुंह देखा मुआवजा
हर मौत बराबर नहीं होती. भारत में मुआवजे को लेकर सरकारी स्तर पर अराजकता इसका प्रमाण है. जब कोई घटना घट जाती है और चारों तरफ शोर मचता है तो प्रशासन मुआवजे की घोषणा कर अपना पिंड छुड़ा लेता है. लेकिन यहां भी दिक्कत यह है कि किसे कितना मुआवजा दिया जाएगा, इसके बारे में राज्य या केंद्र सरकार के पास कोई नीति नहीं है. बल्कि मुआवजों के ट्रेंड को देखें तो कई बार यह लगता है कि मीडिया के शोर और जनता के गुस्से को दबाने के लिए जब जितनी रकम सरकार की समझ में आती है, उतनी रकम तुरंत घोषित कर दी जाती है.

उत्तराखंड की मौजूदा त्रासदी में हजारों लोगों की मौत होने के बावजूद अभी तक यह साफ नहीं है कि मरने वालों को कितना मुआवजा दिया जाएगा. हां, केदारनाथ में 25 जून को वायु सेना के हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए 19 लोगों में से उत्तर प्रदेश निवासी दो सैनिकों अखिलेश कुमार सिंह और सुधाकर यादव को उत्तर प्रदेश सरकार ने 20-20 लाख रु. मुआवजा देने की घोषणा की. लेकिन बाकी सैनिकों को क्या मिलेगा, इसका अभी कुछ पता नहीं है. आदमी की जान तो खैर अनमोल है, लेकिन एक से मामलों में मुआवजे के अलग-अलग पैमाने क्या आदमी-आदमी की मौत में फर्क नहीं करते.

अभी बहुत दिन नहीं हुए जब उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस हिरासत में बीमारी की वजह से मारे गए आतंकवाद के आरोपी खालिद मुजाहिद के परिवार को 6 लाख रु. मुआवजा देने की घोषणा की. यह घटना 18 मई की है तो इससे महज एक दिन पहले 17 मई को छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार ने बीजापुर जिले में सीआरपीएफ की गोली से मारे गए 8 आदिवासियों में से प्रत्येक के परिवार को 8-8 लाख रु. देने की घोषणा की. एक दिन के अंतर पर घोषित दो मुआवजे जिंदगी की कीमत लगाने में एक लाख रु. का अंतर कर रहे हैं. 19 मार्च को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में बस दुर्घटना में 37 लोगों की मौत के मामले में परिजनों को प्रति व्यक्ति 2 लाख रु. मुआवजा दिया गया. दूसरी तरफ पिछले साल दिसंबर में दिल्ली गैंग रेप का शिकार हुई युवती के परिजनों को कुल मिलाकर 50 लाख रु. से ऊपर का मुआवजा दिया गया और उसके भाई को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी, रायबरेली में दाखिला भी दिया गया. हालांकि बलात्कार के मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने जो गाइड लाइन तैयार की है, उसके मुताबिक बलात्कार पीड़िता के घर का कमाऊ सदस्य होने की स्थिति में दो लाख रु. और सामान्य सदस्य होने पर एक लाख रु. मुआवजा देने का प्रावधान है. यह जान की एक और अलग कीमत है.

अपने संज्ञान में आने वाली ज्यादातर घटनाओं पर मुआवजे का निर्देश देने वाले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मुआवजा देने के लिए कोई तय प्रणाली अब तक नहीं बनाई है. ले-देकर अगर कहीं विधिवत मुआवजा प्रणाली है तो वह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के लिए बनार्ई गई है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आर.पी.एन. सिंह ने इस साल 30 अप्रैल को लोक सभा को बताया कि सीएपीएफ का कोई सदस्य अगर डयूटी के दौरान मारा जाता है तो उसके परिजन को एक मुश्त 15 लाख रु. मुआवजा देने का प्रावधान है. इसके अलावा परिवार को पेंशन भी दी जाएगी. वैसे भी सरकारी विभागों में कर्मचारी के मरने पर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की व्यवस्था है.

लेकिन आम नागरिक के बारे में सरकार कोई एक समान व्यवस्था बनाने की पहल करती नहीं दिखती. मीडिया की सुर्खियों से दूर होने वाली दुर्घटना मौत के मामले में मुआवजा तो दूर इस बात तक की व्यवस्था नहीं है कि बीमा दावे के लिए चलने वाली कानूनी कार्यवाही को कितने दिन में पूरा किया जाए. सड़क दुर्घटना के मामलों में मारे गए व्यक्ति का परिवार अकसर सालों साल मुकदमे की झंझट में पड़ा रहता है.

कई मामले ऐसे भी हैं जिनमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों अपने लिहाज से मुआवजे की घोषणा कर देती हैं. इसके साथ ही दबाव देखकर पेट्रोल पंप का लाइसेंस, परिवार के एक या एक से ज्यादा सदस्य को सरकारी नौकरी का वादा भी कर दिया जाता है. इस मुंह देखे सरकारी अंदाज से ऐसा लगता है कि सरकारी आंखों में आम आदमी की जिंदगी की कीमत दबाव के मोलभाव की मोहताज है.

कांग्रेसियो के पिताजी क्वात्रोची के इतिहास पर एक नजर :-



--16 अप्रैल 1987
: स्वीडिश रेडियो ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया। घोटाले में मार्टिन आर्दबो, हिंदुजा ब्रदर्स और विन चड्ढा भी आरोपी हैं।

--22 अक्तूबर, 1999: सीबीआई ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की।

--4 नवंबर, 1999: ट्रायल कोर्ट ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया।

--20 दिसंबर, 2000: मलयेशिया में क्वात्रोच्चि गिरफ्तार। मलयेशिया की अदालत ने क्वात्रोच्चि को भारत को प्रत्यर्पित करने से इंकार किया, बाद में वहां से रिहा कर दिया गया।

--25 मई, 2001: स्पेशल जज ने क्वात्रोच्चि का मुकदमा बाकी आरोपियों से अलग किया।

--25 मई, 2003: लंदन में क्वात्रोच्चि के दो खातों में 10 लाख यूएस डॉलर और 30 लाख यूरो मिले।

--31 मार्च, 2004: मलयेशिया की अदालत ने क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण का अनुरोध ठुकराया।

--25 अगस्त, 2005: सीबीआई ने अपनी वेबसाइट पर क्वात्रोच्चि की तस्वीर जारी की।

--22 दिसंबर, 2005: एडिशनल सॉलिसिटर जनरल क्वात्रोच्चि के खाते सील करने पर वार्ता के लिए लंदन में अफसरों से मिले।

--11 जनवरी, 2006
: सीबीआई ने ब्रिटिश अधिकारियों से कहा उसके पास कोई प्रमाण नहीं है, जिसके आधार पर ओतावियो क्वात्रोच्चि के दो बैंक खातों में जमा तीस लाख यूरो और 10 लाख अमेरिकी डॉलर की रकम का संबंध बोफोर्स तोप सौदे की दलाली से साबित करे।

--12 जनवरी, 2006: क्वात्रोच्चि के खातों को क्लीन चिट देने के सरकार के कदम के खिलाफ अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई।

--13 जनवरी, 2006: केंद्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली अजय अग्रवाल की याचिका पर शीघ्र सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार। कोर्ट ने इस संबंध में सभी जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा करने का निर्देश दिया।

--15 जनवरी, 2006: क्वात्रोच्चि के दोनों खातों पर लगी रोक लंदन हाई कोर्ट ने हटाई। (भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा ब्रिटेन के क्राउन प्रॉसीक्यूशन को क्वात्रोच्चि के खिलाफ सुबूत नहीं मिलने की जानकारी के बाद यह रोक हटाई।)

गौरतलब है की क्वात्रोची के बैंक खातो पर लगी रोक हटाने के लिए क्वात्रोची ने कोई मेहनत नही किया बल्कि भारत सरकार ने खुद अपने तत्कालीन कानून मंत्री हंसराज भरद्वाज को लन्दन भेज कर ब्रिटिश कोर्ट को बताया की क्वात्रोची एक संत महात्मा है उन्होंने कोई अपराध नही किया है इसलिए भारत सरकार दरखास्त करती है की माननीय क्वात्रोची जी के बैंक खातो पर लगी रोक हटाई जाये |

ये पूरी प्रक्रिया एकदम गुप्त रखी गयी थी ... जैसे ही क्वात्रोची के खातो से रोक हटी उसने एक मिनट के भीतर अपने तीनो बैंक खातो से बीस करोड़ डालर अपने बेटे के खाते में ट्रांसफर कर दिए ... जब भारत की सुप्रीमकोर्ट को पता चला तब उसने भारत सरकार को नोटिस दिया तब भारत सरकार ने कहा की उसके खातो में एक पाई भी नही है ..

बाद में लन्दन के अख़बार मिरर ने खुलासा किया की भारत सरकार के कानूनमंत्री खुद २० दिनों तक लन्दन में रुक क्र क्वात्रोची के खातो से रोक हटवाई थी


--16 जनवरी, 2006: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी कर क्वात्रोच्चि के खाते से लेन-देन नहीं होने के लिए जरूर कदम उठाने का निर्देश दिया।
सीबीआई मुझसे इटली में पूछताछ करे, गांधी परिवार के खिलाफ अभियान का शिकार हूं: क्वात्रोच्चि (फोन पर एक संवाद एजेंसी से कहा।)

--20 जनवरी, 2006: सरकार द्वारा क्वात्रोच्चि को क्लीन चिट दिये जाने के मामले में एनडीए प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से मिला और एक ज्ञापन सौंपा।

--23 जनवरी, 2006: क्वात्रोच्चि के खातों के तार स्विट्जरलैंड से जुड़े या नहीं इसकी जांच के लिए सीबीआई ने वहां जाने के लिए गृहमंत्रालय से अनुमति देने की गुजारिश की।

--6 फरवरी, 2007: क्वात्रोच्चि को अर्जेंटीना के इगुआजो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया।

--23 फरवरी, 2007: क्वात्रोच्चि को अर्जेंटीना सरकार ने जमानत दी।

--26 फरवरी, 2007: सीबीआई को जब तक गिरफ्तारी की खबर मिली, अर्जेंटीना सरकार उसे रिहा भी कर चुकी थी।

--8 मार्च, 2007: सीबीआई ने क्वात्रोच्चि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सफाई पेश करते हुए कहा कि उस पर लगाए गए आरोप निराधार है और उसने कोर्ट से कोई सूचना नहीं छुपाई थी।
सीबीआई ने कहा कि क्वात्रोच्चि की 23 फरवरी को हुई जमानत के बारे में उसे पहले से कोई जानकारी नहीं थी। ब्यूरो को इस बात की जानकारी 26 फरवरी को मिली थी।

--23 मार्च, 2007: अर्जेंटीना के कोर्ट में क्वात्रोच्चि ने अपने भारत प्रत्यर्पण का पुरजोर विरोध किया।

--13 अप्रैल, 2007: क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण के मामले में सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की। रिपोर्ट में सीबीआई ने क्वात्रोच्चि की सही पहचान का दावा किया।

--8 जून, 2007: अदालत ने क्वात्रोच्चि की अर्जेंटीना में गिरफ्तारी से संबंधित मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा।

--9 जून, 2007: अर्जेंटीना की एक अदालत ने क्वात्रोच्चि को भारत प्रत्यर्पित करने के आग्रह को अस्वीकार कर दिया। सीबीआई की क्वात्रोच्चि का भारत लाने की मुहिम को बड़ा झटका लगा।

--12 जून, 2007: क्वात्रोच्चि मामले में सीबीआई को एक और झटका लगा जब अर्जेंटीना की अदालत ने अभियोजन पक्ष को ओतावियो क्वात्राकी को मुकदमे का खर्च अदा करने का आदेश दिया।

--15 अगस्त, 2007: 6 फरवरी को अर्जेंटीना में गिरफ्तार क्वात्रोच्चि इटली रवाना, सीबीआई फिर प्रत्यर्पण कराने में विफल रही।

--18 अगस्त, 2007: क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण के लिए किए गए सरकार और सीबीआई के प्रयासों से संबंधित सारे दस्तावेज पेश कराने हेतु वकील अजय अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर किया।

--3 नवंबर, 2007: अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने कोर्ट में कहा कि जब भी कोर्ट क्वात्राकी के बारे में आदेश देता है, हमें विदेशी अदालतों में मुंह की खानी पड़ती है। ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि कोर्ट कोई आदेश न दे क्योंकि उनका पालन करवाना असंभव है।

--28 अप्रैल, 2009: क्वात्रोच्चि का नाम वांछित लोगों की सीबीआई की सूची से हटाया गया। इसके साथ ही सीबीआई के अनुरोध के बाद इंटरपोल ने क्वात्रोच्चि का नाम रेड कॉर्नर नोटिस से हटा दिया।

--26 अगस्त, 2010: सीबीआई ने सीएमएम कोर्ट में अर्जी देकर कहा था कि क्वात्रोच्चि के खिलाफ कोई भी सबूत मौजूद नहीं हैं। लिहाजा उनके खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई बंद कर देनी चाहिए। अदालत ने अर्जी पर सुनवाई के लिए 28 अगस्त की तारीख तय की है। जबकि तीस हजारी अदालत स्थित मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कावेरी बावेजा की अदालत में अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने एक बार फिर से अर्जी देकर कहा है कि मामला बंद नहीं करना चाहिए।

--4 जनवरी, 2011: बोफोर्स दलाली मामले में इटली के व्यापारी ओतावियो क्वात्रोच्चि के खिलाफ मामला बंद करने के लिए दबाव बनाते हुए सीबीआई ने दिल्ली की एक अदालत में कहा कि इनकम टैक्स अपीली ट्रिब्युनल के आदेश में कुछ भी नया नहीं है। तीस हजारी कोर्ट के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विनोद यादव की अदालत में सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने कहा कि मामले में केस बंद करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।

क्या कभी इन नीच नकली गांधियो ने ये खुलासा किया है की इन्हें क्या उपहार मिले ?? और वो कहाँ गये ?? 2012-13 में मोदी जी को कुल 8040 गिफ्ट मिले ..जिनकी नीलामी २९ से ३१ जुलाई तक होगी .. इन पैसो को हर बार की तरह कन्या केलवनी और शिक्षा ट्रस्ट को दान कर दिया जायेगा |


मोदी जी हर साल जुलाई में अपने मिले उपहारों की नीलामी करवाते है और उन पैसो को कन्या शिक्षा पर खर्च किया जाता है |
इस बार नीलामी अहमदाबाद, सुरत, भरूच, भावनगर, बड़ोदरा, दाहोद राजकोट के कलेक्टर ऑफिस में होगा .. और इस साल मोदी जी को सोने की तलवार, हीरे लगे पेपरवेट सहित जापान में कई महंगे गजैट भी गिफ्ट में मिले है ... इजरायल के राजदूत ने मोदी जी को सोने की पेन दी है तो कतर के सम्राट में मोदी जी को सोने की तलवार दी है |

साथ ही मोदी जी को ढेर सारी पगड़िया, कुर्ते, फोटो, पेन्टिग आदि भी मिले है ..

ये राजबब्बर जो आज कांग्रेसी बनकर गाँधी खानदान के तलवे चाट रहा है... एक जमाने में जब ये सपा में था तब इसी कांग्रेस को जी भरकर कोसा करता था ... कांग्रेस को नीच, भ्रष्ट, चमचो की जमात, भ्रष्टाचार की गंगोत्री कहा करता था





 आगरा में एक सभा में इसने कहा था की किसी भी कांग्रेसी का पैजामा खोलकर देख लीजिये.. आपको एक दूम जरुर दिखेगी जो कांग्रेसी होने का प्राकृतिक पहचान है क्योकि बिना दूम हिलाए कोई कांग्रेसी नही हो सकता 

फिर जब मुलायम ने इसे लातमारकर भगाया तो ये कुछ दिनों तक वीपी सिंह के साथ रहा .. और उस वक्त एक पत्रकार ने इससे सवाल पूछा था की वीपी सिंह की तबियत तो खराब रहती है फिर आप अपने भविष्य के लिए किस पार्टी में जायेंगे .. तो इस दोगले ने जबाब दिया था की मै कांग्रेस छोड़कर किसी अन्य पार्टी में जाना या फिर राजनीती से सन्यास लेकर वापस फ़िल्मी दुनिया में जाना पसंद करूंगा क्योकि मै सच्चा लोहियावादी हूँ और मैं अपने जीवन में यदि किसी के विचारो को आत्मसात किया है तो वो है लोकनायक जय प्रकाश नारायण ..जो अधिनायकवाद के खिलाफ थे और कांग्रेस में तो सिर्फ अधिनायकवाद है एक ही खानदान १०० सालो से इस पार्टी को चला रहा है और मेरे जैसा स्वाभिमानी इन्सान कभी कांग्रेस में शामिल होना तो दूर शामिल होने की सोच नही नही सकता |

और मित्रो, आज देखिये ... ये दोगला राजबब्बर उसी कांग्रेस का प्रवक्ता बना है जिस कांग्रेस को इसने पूरी जिन्दगी गाली दी ... और तो और खुद नीच नकली गांधियो को भी शर्म नही आई की जिस व्यक्ति ने पूरी जिन्दगी इन्हें गाली दिया ये उसी को थूककर चाट रहे है |

इतिहास गवाह है की भारत के सभी आतंकवादी संगठनो, अलगाववादी संगठनो और गुंडो को कांग्रेस ने ही पैदा किया , फिर उनका जमकर इस्तेमाल किया और मतलब निकल जाने पर बाद मे मारवा दिया....या फिर जेल में डाल दिया या फिर एकदम हाशिये पर धकेल दिया ...



शरद पवार जब कांग्रेस में हुआ करते थे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने दाउद को अपना दांया हाथ बना रखा था ..दाउद के गुंडे पुरे मुंबई और पश्चिम भारत में वसूली से लेकर स्मगलिंग करते थे ..फिर मतलब निकल जाने के बाद दाऊद को लात मार दिया |

जो भिंडरावलां कभी इंदिरा गाँधी का सबसे प्यारा था क्योकि इंदिरा को लगा की पंजाब में अकालियो की ताकत को भिंडरावाला ही खत्म कर सकता है .. इंदिरा ने खालिस्तानी अलगाववादीयो को खूब बढ़ावा दिया ...फिर जब भिंडरावाला कांग्रेस पर बोझ और नासूर  बन गया तो उसे मरवा दिया |

ठीक यही हाल जेकेएलएफ के साथ हुआ ..इंदिरा गाँधी कश्मीर की सत्ता के लिए जेकेएलएफ का समर्थन करती थी ..इंदिरा को कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस को कमजोर करने के लिए कोई मोहरा चाहिए था ..फिर इंदिरा ने मकबूल बट्ट और हाशिम कुरैशी को कश्मीर को अशांत करने की सुपारी दी ताकि फारुख अब्दुला की सरकार को बर्खास्त करने का बहाना मिल सके | और इन दोनों ने जेकेएलएफ [जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट] बनाया लेकिन जब जेकेएलएफ वालो ने पुरे कश्मीर ही नही बल्कि पुरे देश को हिला दिया एयर इंडिया के एक और इंडियन एयरलाइंस के एक प्लेन का अपहरण किया और बाद में लन्दन में भारत के उचायुक्त रविन्द्र म्हात्रे की हत्या की और जब पुरे देश में इंदिरा की थू थू होने लगी तब इंदिरा ने जेकेएलएफ के सह-संस्थापक मकबूल बट्ट को गिरफ्तार करके फांसी पर लटका दिया |

ठीक यही काम कांग्रेस ने लिट्टे के साथ किया ..इंदिरा ने और बाद में राजीव ने लिट्टे को खूब बढ़ावा दिया ..फिर राजीव के मन में अमेरिका की तरह लोकल दादा बनने की चूल मची और लिट्टे के ही खिलाफ भारतीय सेना भेज दी ..जिसका खामियाजा राजीव गाँधी को बाद में भुगतना पड़ा था |
ठीक यही निति कांग्रेस ने पूर्वोत्तर के राज्यों में भी अपनाई .. असम गण परिषद को खत्म करने के लिए उल्फा बनाया और बंगलादेशी मुसलमानों को आसाम में बसने की इजाजत दी .. नागालैंड में टी मुइवा और आइजक को पहले खूब बढ़ावा दिया फिर बातचीत करने के बहाने बैंकाक से बुलाकर दिल्ली हवाईअड्डे पर ही गिरफ्तार कर लिया | तबसे लेकर आजतक नागालैंड सुलग रहा है |

 ओवसी, सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर सब इसके उदाहरण है... जब राजीव को अपनी माँ की हत्या का बदला लेना था तब एच.के.एल भगत, सज्जन कुमार, जगदीश टाईटलर सरीखे प्यादों को इस्तेमाल करके सिखो का कांग्रेस ने खूब कत्लेआम करवाया ..उनके सम्पत्तियो को आग के हवाले करवा दिया | खुद राजीव गाँधी ने सिख्ख विरोधी दंगो का समर्थन करके हुए दूरदर्शन पर कहा था की जब भी जंगल में कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आसपास की जमीन हिल जाती है ..राजीव गाँधी का खुलेआम इशारा पाकर कांग्रेसी और भी ताकत से सिक्खों को खत्म करने में लग गये थे | 

फिर जब मतलब निकल गया तो इन हत्यारों को दूध में पड़ी मख्खी की तरह निकाल फेका .. 

ठीक यही शकील अहमद के मुंह से भी सत्य निकला कि इंडियन मुजाहिद्दीन का गठन गुजरात दंगो का बदला लेने के किये हुआ है ..लेकिन शकील के आधासत्य की कहा है ..सच्चाई ये है की इन्डियन मुजाहिदीन को भी कांग्रेस ने ही शकील और दुसरे कांग्रेसी मुस्लिम नेताओ के ईशारे पर पैदा किया है

***********जितेन्द्र प्रताप सिंह*******