Wednesday 20 April 2011

राहुल सचमुच डब्बा और बोतल है !!!!!!!!!

राहुल सचमुच डब्बा और बोतल है !!!!!!!!!

यह हम नहीं कह रहे बल्कि कांग्रेस के अंदर राहुल गांधी के राजनीतिक कैरियर का देखभाल करनेवाले नेता कैप्टन सतीश शर्मा का एक राजनीतिक चमचा कह रहा है. वह भी हमसे आपसे नहीं बल्कि एक अमेरिकी राजनयिक से. वह राजनीतिक चमचा कोई और नहीं बल्कि वही नचिकेता कपूर है जिसने अमेरिकी राजनयिक से बातचीत में यह खुलासा किया था कि हम परमाणु बिल को पास कराने के लिए पैसा लेकर घूम रहे हैं और अमेरिका निश्चिंत रहे इस काम में सोनिया राहुल सब अमेरिका के साथ खड़े हैं.

इसी नचिकेता कपूर ने 23 अप्रैल 2007 को एक अमेरिकी राजनयिक से बात करते हुए कहा है कि "कांग्रेस के अंदरखाने में इस बात को लेकर बेहद बेचैनी है कि राहुल गांधी ऐसा कुछ नहीं है कि वे प्रधानमंत्री बन सकें. इसलिए इन नेताओं के लिए उम्मीद की किरण राहुल गांधी में नहीं बल्कि नेहरू गांधी परिवार की एक और सदस्य प्रियंका गांधी में नजर आ रही है. वे राजनीति में प्रियंका के आने का इंतजार कर रहे हैं."

अमेरिकी राजनयिक से नचिकेता कपूर की यह बातचीत उस वक्त हो रही है जब उत्तर प्रदेश में चुनाव थे और राहुल गांधी के रोड शो करवाये जा रहे थे. अमेरिकी राजनयिक इस सूचना के आधार पर यह निष्कर्ष निकालता है कि राहुल गांधी की राजनीतिक शुरूआत बहुत कमजोर और अनिच्छा से हुई है.

नचिकेता कपूर अमेरिकी राजनयिक से कहता है कि "राहुल गांधी के राजनीतिक बयान मनमानी होते हैं, वे पहले से तैयारी करके कोई बात नहीं बोलते हैं. राहुल गांधी अपने लिए तैयार किये गये राजनीतिक बयानों को बोलने से मना करते हैं." राजनयिक से नचिकेता कपूर यह भी कहता है कि राहुल गांधी का कोई नजदीकी मित्र या सलाहकार नहीं है क्योंकि वे बहुत घमण्डी और अड़ियल हैं. वे अपने स्टाफ से भी दूर ही रहते हैं." अमेरिकी राजनयिक से नचिकेता कपूर कहता है कि "राहुल गांधी का राजनीति में कोई भविष्य नहीं है. उनके अंदर राजनीतिक योग्यता बिल्कुल भी नहीं है, और वे कभी इस देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते." नचिकेता कपूर आगे कहता है कि "अगर कांग्रेस चाहे भी तो राहुल गांधी को कभी प्रधानमंत्री नहीं बना सकती क्योंकि कांग्रेस के पास केन्द्र में बहुमत नहीं है और वह अपने सहयोगियों पर निर्भर है." नचिकेता कपूर कहता है "राहुल का समय आकर जा चुका है." इसलिए कांग्रेस के कर्णधार अब प्रियंका गांधी की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं.
राहुल गाँधी का दलित प्रेम भी सचमुच एक नौटंकी है .. उनका स्टाफ पहले से ही गुपचुप तरीके से दलित के झोपड़े में मिनरल वाटर , फाइव स्टार होटल का खाना , नर्म बेड , आदि सुख सुबिधा का इंतजाम कर देता है.. फिर खरीदी हुई मीडिया को "बाइट" दे दी जाती है .. जो एक रास्ट्रीय ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है "राहुल गाँधी ने पूरी रात दलित के झोपड़े में गुजारी" .. लेकिन कैसे गुजारी ये किसी को नहीं पता ..

नचिकेता कपूर कुछ गलत तो नहीं कह रहा है?

नाच सोनिया नाच, पर देख ले, लग गया है जाम

नाच सोनिया नाच, पर देख ले, लग गया है जाम

: सोनिया गांधी को नाचते देखा है? नहीं न, तो लीजिए, यहां पर देख लीजिए : क्रिकेट के बुखार में पूरा देश तप रहा है. भारत जीत क्या गया, देश में मानो 1947 की आजादी सरीखी जश्न शुरू हो गया. क्या नेता, क्या जनता. सब मगन. सब नाचने-झूमने लगे. हद तो तब हो गई जो गंभीर दिखने वाली सोनिया गांधी भी नाचने लगीं

बताते हैं कि वे भी जमकर झूमीं-नाचीं. कांग्रेस अध्यक्ष के नाच को देखकर कई लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा लिया. कुछ का कहना था कि देश के नेताओं से ऐसे आचरण की उम्मीद नहीं थी, खासकर सोनिया गांधी से. यह सब हुआ कल रात 11 बजे. आईटीओ चौक के पास बहादुर शाह जफर मार्ग पर सोनिया के नाच के कारण बहुत बड़ा जाम लग गया. पर नेताओं को इससे क्या मतलब. वे तो भड़की हुई भावनाओं में गोते लगाने के आदी हैं.

सोनिया की इस नौटंकी के कारण आईटीओ चौराहे से दिल्ली गेट तक भयंकर जाम लग गया. गाड़ियां रेंगने लगीं. जाम में फंसे लोग क्रिकेट और सोनिया को गालियां दे रहे थे. पुलिस जाम से जबरन निजात पाने की कोशिश में लगे दिल्लीवालों से तू-तड़ाक कर रही थी और उन्हें उनकी औकात समझा रही थी. पर इससे सोनिया को क्या मतलब. सोनिया ने क्रिकेट के राजनीतिकरण का जो बेहद समझदार व सतर्क खेल खेला, उसे कुछ लोग समझ पा रहे हैं, और कुछ लोग ना-समझते हुए सोनियामय हुए जा रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही दिनों ट्रेन जाम करने वालों को फटकारा था और इसके लिए सरकारों को भी लताड़ा था. जाम लगाना अपराध है, तो यह नियम सब पर लागू होना चाहिए. सोनिया गांधी को अगर क्रिकेट जीत का जश्न मनाने का इतना ही शौक था तो वे अपने घर के आगे सबको बुलवा लेतीं और आराम से नाचती-गातीं. वहां टीवी वाले पहुंचकर पूरे देश को उनका नाच गाना लाइव दिखा देते. पर सोनिया ने बीच सड़क पर चल रहे जश्न में शरीक होकर न सिर्फ हजारों लोगों को जाम में फंसा डाला बल्कि अपने सतही व स्टंट वाले एप्रोच का भी परिचय दे दिया. घपलों-घोटालों-समस्याओं से घिरी केंद्र सरकार और सोनिया गांधी अगर नाच-गा कर या क्रिकेट के बुखार में तप रहे लोगों के साथ कदमताल करके खुद को बचाना या बरी करना चाहते हैं तो भूल जाएं. इस देश की जनता बहुत समझदार है. वोट के दिन आने पर वो सोनिया और मनमोहन की एक-एक करतूत का हिसाब करेगी.
सोनिया जी १० सालो से इस देश के प्रधानमंत्री और जनता को नाचती आ रही है तो उनका नाचना भी एक गुप्त रहस्य है .. जो मै आप को बताने जा रहा हूँ .. दरअसल देश की सारी मीडिया और जनता सारे घोटालो और भार्स्ताचार को भूल कर क्रिकेटमय हो गई है . लगता है जैसे देश से सारा भास्ताचार मिट गया .. क्रिकेट के बुखार में मीडिया ने कई अहम् खबरे नहीं दिखाई जैसे :::

1 - सीबीआई ने 2 G घोटाले में चार्जसीट दाखिल किया .. जिसमे 32 हज़ार करोड़ का नुकसान बताया गया है [ सीबीआई प्रधानमंत्री कार्यालय के अंडर होती है . कल तक कांग्रेस और प्रधानमंत्री किसी भी नुकसान से इंकार करते थे [कपिल सिब्बल ने तो 1 रूपये के नुकसान से इंकार किया ] तो क्या ये खबर कोई छोटी मोटी खबर है ???

2 -दिल्ली एअरपोर्ट पर त्रिदमुल कांग्रेस के सांसद केडी सिंह 60 लाख नगद रूपये के साथ पकडे गए जो कोलकाता चुनाव में बाटने के लिए जा रहे थे लेकिन 1 घंटे में छोड़ दिए गए ..[दो महीने पहले केडी सिंह के यहाँ छपा मारकर पुलिस ने 27 करोड़ नगद बरामद किया था ]

3 - गोवा के एक मंत्री मुंबई एअरपोर्ट पर 1 करोड़ डालर नगद जी हाँ डालर के साथ पकडे गए जो शरद पवार और राबर्ट बढेरा के काफी करीबी माने जाते है .. उनको दुबई फिर वहां से लिंचेस्तिन [ काले धन का स्वर्ग ] जाना था
4 - शरद पवार की बेटी सुप्रिया फुले और दामाद सदानंद फुले 1200 हज़ार करोड़ की जमीन फ्री में एक ट्रस्ट में नाम से हथिया लिया ... खुद महारास्त्र की कांग्रेस सरकार ने इसे स्वीकार किया और जाच के आदेश दिए .

5 - DLF से १००० करोड़ रूपये बिना किसी कागजात के राबर्ट बढेरा की कंपनी को दिए गए जो DLF उधार देने की बात कर रहा है [ हा हा हा DLF उधार बिना किसी जमानत और कागजात के देता है दोस्तों आप लोग भी मांगो ]

6 - महारास्ट्र कांग्रेस के नेता और पूर्व गृहमंत्री कृपाशंकर सिंह के बेटे के अकाउंट में शाहिद बलवा ने 23 करोड़
रूपये जमा किये [ कृपाशंकर सिंह सोनिया के काफी करीबी नेता है वो एक ज़माने में मुंबई में घूम घूम कर सब्जी बेचा करते थे आज 1500 करोड़ के आसामी है ]

7 - शाहिद बलवा के निजी जेट का उपयोग कांग्रेस और NCP के सारे नेता अपने बाप के जहाज की तरह करते थे
शरद पवार और प्रफुल पटेल ने तो शाहिद के साथ 14 बार उसके जेट में यात्रा किया ..

8 - सीबीआई ने नीरा राडिया और कई पत्रकार जैसे बरखा दत्त ,वीर संघवी का नाम चार्जसीट में नहीं डाला क्यों ???? जबकि वो इस घोटाले की सबसे अहम् कड़ी है क्या कांग्रेस और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में कोई डील हुई है ??

पता नहीं क्या मजबूरियां थी इलेक्ट्रानिक मीडिया की जिसने इतनी बड़ी खबर को अपने चैनल पर एक बार भी दिखाने लायक नहीं समझा. खैर इलेक्ट्रानिक मीडिया को अब अगर कोई खबर और सच्ची खबर से जोड़ कर देखता है तो ये उसकी नासमझी है क्योकि न्यूज़ चैनल अब खबर नहीं परोसते बल्कि परोसते हैं वैसी खबरें जिनका आम जन मानस से कोई सरोकार हो न हो, पर उस खबर से चैनल के लाला (मालिक) की जेब जरूर भरती हो.

वैसे, आपको क्या लगता है, सोनिया गांधी का इस तरह नाच-गाना और जाम लगाना ठीक था?
जी हाँ बिलकुल ठीक था !!! जब इस देश की जनता और मीडिया का मानस और जमीर सोनिया जी चंद पैसे में खरीद लेंगी तो उनका ही क्या किसी का भी दिल नाचने लगेगा !! वर्ल्ड कप की जीत तो एक बहाना है उसली नाचने का असली कारण यही है !!

सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से मर जाना

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से मर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों परगुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्या कांड के बाद वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।

0 अवतार सिंह पाश

विनोद दुआ के चुनावी प्रचार सभा के कवरेज का शीर्षक था बीजेपी के दो चेहरे.....

विनोद दुआ के चुनावी प्रचार सभा के कवरेज का शीर्षक था बीजेपी के दो चेहरे.....


आजकल लोगो की ब्रांडिंग करके पैसा बनाने की परंपरा चल पड़ी है ऐसी एक पाकिस्तानी परस्त चेनल एनडीटीवी ने विनोद दुआ को ब्रांड बनाया, जो बड़ी बड़ी भाषण बाजी करता है शर्म निरपेक्षता का और सीपीएम, खानग्रेस का प्रचार करता है साफ है की वाह बीजेपी का ही विरोध करता है आज सुबह ऐसा ही भाषण बाजी कर रहा था शीर्षक था बीजेपी के दो चेहरे -

1. शर्म निरपेक्ष प्रचारक विनोद दुआ कहता है की बीजेपी बांग्लादेशी मुसलमानों को घुट्पेठिए कहती है और वहाँ के हिन्दूओ को धारणार्थी और विस्थापितों का दर्जा देती है और उनके पुनर्वास की मांग करती है,तो इसमे गलत क्या है विनोद दुआ जी बांग्लादेश मे अल्पसंख्यक राजा नहीं होते जैसे भारत मे होते है ! वहाँ उन्हे आरक्षण पर मौत मिलती है उनके मंदिर तोड़े जाते है वे चुप रहते है यहाँ की तरह कोर्ट जाने का मौका नहीं मिलता है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हे मौका मिलता रहता है----- क्या ऐसा पाकिस्तान और बांग्लादेश मे होता है बताइये "दुआ" जी
2. कहता है की बीजेपी कश्मीर के लाल चौक मे तिरंगा फहरा रही है ऐसा क्यूँ कर रही है बीजेपी ? बीजेपी तिरंगा दँतेवाड़ा मे क्यूँ नहीं फहराती जहां उसकी सरकार है ? कश्मीर मे इससे दंगे फेलेंगे ! विनोद जी दांतेवाड़ा जिस राज्य मे है वहाँ बीजेपी की सरकार है वहाँ विधान सभा के सर पर क्या आपके देश पाकिस्तान का झण्डा है ? या बांग्लादेश का ? दंगे फेलेंगे तो क्यूँ फेलेंगे ! इसका मतलब तिरंगा कश्मीर के लोगो को चुभता है इसलिए की वह उनके देश का नहीं है ऐसा कश्मीरी कुत्ते मानते है इसलिए ही ना इसका कारण और तथ्य भी रख दीजिये विनोद जी ? ऐसी बहस कीजिये की कश्मीऋ क्यूँ नहीं फहराना चाहते है भारत का तिरंगा ? आप ऐसी बहस नहीं आयोजित करेंगे आपको पता है आपकी टीआरपी पाकिस्तान और भारत के गटर प्रदेशों मे और गिर जाएगी ! अबे अंधे जा के देख दंतेवाडा में तिरंगा लहराता है की नहीं ...
3. विनोद दुआ साहब बार बार येदिरूप्पा की सरकार के बारें मे ही बात कर रहे है, कहता है की सोनिया गांधी की सरकार ने अपने दागी मंत्रियों पर कार्यवाही की लेकिन बीजेपी ने नहीं की .. अबे चू...ये आज तक किसी ने यदुरप्पा के खिलाफ कोई सुबूत दिखाया ??? अगर यदुरप्पा भ्रष्ट है तो केंद्र सरकार उनको बर्खास्त क्यों नहीं कर देती ?? उनके पिछले 10-15 शो मे कभी 2g, राजा के बारें मे गहन चर्चा हुई है ? कभी तुने बरखा दत्त के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं उठाया ? बरखा के खिलाफ तो हजारो साबुत है फिर क्यों तेरा चैनल बरखा को ढो रहा है ?? क्या बरखा के अपने हिस्से के रूपये में से कुछ NDTV को दिया है ?? ऐसा क्यूँ विनोद दुआ साहब ऐसी भी क्या मजबूरी है, कभी अरुंधति के बारें मे भी टिप्पणी कीजिये जो आपके चेनल मालिक की संबंधी लगती है ताकि जनता को भी पता चले ? आपके दोहरे चरित्र के बारें मे ?
4. सबसे बहा कांटा चुभोया विनोद दुआ ने, कहा की बीजेपी अपने आप को भगवा आतंकवाद से दूर करने का प्रयास क्यू नहीं कर रही है अब स्वयं ही मीडिया आतंकवाद के रंग बता रही है तो दूसरों "doggyyo" के बारें तो क्या कहना ? दुआ और कहता है की संघ की मानसिकता हमेशा कट्टरपंथ की रही है और बीजेपी अपने आप को इनसे दूर करने का प्रयास नहीं कर रही है विनोद जी कभी 84 के दंगो, माओवाद, कॉंग्रेस के दामादो - कसाबों, अफजलों, इंडियन मुजाहिदीनों के बारें मे भी चर्चा कीजिये ?सवाल है आपसे की सम्झौता एक्स्प्रेस मे दो दो कबूलनामे आ रहे है तो किसे सच माने ? इसमे आतंकवाद का रंग कैसे ढूँढेंगे आप ? मीडिया वालों ? अबे पहले तू तो बरखा जैसी दलाल से दूर हो जा ....
5 - जब ये विनोद दुआ गुजरात चुनाव कवर करने गुजरात आया था तो इसने मोदी को गाली देने में कोई भी गाली नहीं छोड़ी ... इसने तो अपने एक्सिट पोल में बीजेपी को जबरजस्त हार बताया था .. इसे पुरे गुजरात में घूम -घूम कर गुजरात की सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक छबी पेश किया ... गुजरात के विकास को केंद्र के पैसे से किया गया विकास बताता था ... अबे चू ###ये तू कहा तक पढ़ा है बे ??? क्या कोई मुख्यमंत्री अपने पैसे से विकास करता है ?? केंद्र क्या सिर्फ गुजरात को पैसे देता है ??
6 - जब फ्रांस के बुर्के पर प्रतिबन्ध लगाया तो तू सरकोजी को कोसने लगा .. बोला कि सक्रोजी को इस्लाम का सम्मान करना चाहिए .. अबे साले जब भारत में बजरंग दल velentine डे के खिलाफ कोई काम करता है तो तू बजरंग दल को आधुनिकता का पाठ पढ़ाने लगता है ... सरकोजी ने भी तो आधुनिक काम किया ..
7 - तेरे चैनल के मालिक प्रणव रॉय ने कितने घोटाले किये है और दूरदर्शन को करोडो रूपये का चूना लगाया है कभी इस पर भी तो कोई प्रोग्राम दिखा ..प्रणव रॉय के खिलाफ २ दो बार सीबीआई जाच भी हुई और सीबीआई ने उसे दोषी माना लेकिन प्रणव रॉय आज भी आजाद है ..

इस शो मे ऐसा लग रहा था की कॉंग्रेस जैसे आने वाले चुनावों के लिए प्रचार प्रसार कर रही है अपने मुख चेनल के द्वारा ! थोड़ी देर के लिए लगा की ये चेनल चुनाव के लिए प्रचार कर रहे है खानग्रेस सीपीएम के पक्ष मे !

क्या ये दुआ जैसे लोग बाज आएंगे कॉंग्रेस और सीपीएम के प्रचार करने से ...ये एनडीटीवी सीपीएम पार्टी का सहयोगी चेनल है ...........



जाते जाते विनोद दुआ के लिए संदेश :::::::विनोद जी आप सिर्फ खबरें दीजिये कहा क्या हुआ अप खबरों पर मसल ना लगाये जनता इतनी भी मूर्ख नहीं है सब समझती है खैर आप अपनी और अपने चेनल की झोली भरते जाइए कॉंग्रेस सीपीएम के पैसे से और वैसे भी आपके चेनल को तो पाकिस्तान मे फ्री एंट्री है क्यूँ परेशान होते है आपके ही चेनल की एक रेपोर्टर पर कार्गिल के युद्ध के दौरान तीन फ़ौजियों की हत्या की दोषी है जिसे खान ग्रेस की सरकार ने पद्म श्री दिया है । आपकी ही बरखा डट है जिसे नीरा रडिया के मित्र के तौर पर जाना जाता है खास कर दलाल "बरखा दत" अब अपना मुह बंद करके बैठो क्यूँ की जनता सब जान चुकी है की पत्रकारिता एक दलाल का धंधा है खास कर एनडीटीवी आजतक जैसे चेनल जो ज्यादा कमाना चाहते है स्टिंग ऑपरेशन तक कर डालते है फिर अरब देशो से ब्लैंक चेक मिलते है ! शायद इसी को कहते है राष्ट्र भक्ति है ना विनोद जी

कुछ पत्रकार देश्ध्रोही, घोटालेबाज और हत्यारे होते है ! आप भी देख लीजिये by ShreshthBharat

कुछ पत्रकार देश्ध्रोही, घोटालेबाज और हत्यारे होते है ! आप भी देख लीजिये
by ShreshthBharat

देश में अब चैनलों के साथ साथ पत्रकारों की टी आर पी भी तय होने लगी है निश्चित तौर पर ख़बरों का सनसनीखेज होना भी इसलिए अनिवार्य होता जा रहा है ख़बरों की सनसनी के पीछे छुपा सच हमेशा चौंका देने वाला होता है,


इस वक़्त देश में बरखा दत्त की टी आर पी निस्संदेह बहुत ज्यादा है शायद ये बढ़ी हुई टी आर पी का ही नतीजा है कि वो कवरेज के अलावा अपने पत्रकारी दमखम का इस्तेमाल करना भी भली भांति जान गयी हैं ,कभी वो मंत्रालय में विभागों का बंटवारा कराती नजर आती हैं ,तो कभी खुद के खिलाफ लिखने वाले ब्लॉगर को मुक़दमे में खींचती हुई |नीरा राडिया मामले में बरखा दत्त ने कितना कुछ लेकर कितना कुछ किया होगा इसका तो सही सही लेखा जोखा शायद कभी सामने नहीं आये लेकिन ये बात साफ़ है कि बरखा ने राजनीति में अपने रसूख का इस्तेमाल बार बार किया है ,अगर ऐसा न होता तो पूर्व नौ सेना अध्यक्ष सुरेश मेहता द्वारा लगाये गए आरोप के बाद बरखा यूँ साफ़ नहीं बच जाती ,गौर तलब है कि एडमिरल सुरेश मेहता ने बरखा को कारगिल युद्ध के दौरान तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था जिसमे बरखा की लाइव कवरेज के दौरान बताये गए लोकेशन को ट्रेस कर पाकिस्तान ने तीन भारतीय जवानों को मार गिराया था,जबकि उन्हें ऐसा करने से मोर्चे पर मौजूद सैनिकों ने बार बार रोका था ,हैरानी ये कि उस वक़्त रक्षा मंत्रालय के जबरदस्त विरोध के बावजूद बरखा के खिलाफ कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकी थी |बहुत संभव है कि बरखा ने नीरा राडिया मामले में उसी रसूख का इस्तेमाल किया हो जिस रसूख का इस्तेमाल उन्होंने उस वक़्त किया था | 

लम्बे विवादों के बाद अपने पद से इस्तीफा देने वाले शशि थरूर समेत कांग्रेस के कई मंत्रियों और नेताओं से से जिनमे पी .चिदम्बरम और प्रियंका गाँधी तक शामिल हैं इनकी घनिष्ठता किसी से छुपी नहीं है ,बरखा खुद-बखुद कहती हैं कि मेरी पत्रकारिता को शशि थरूर बेहद पसंद करते हैं |एक पत्रकार मित्र कहते हैं “बरखा को पद्मश्री पुरस्कार यूँही नहीं मिल गया ,इन सबके पीछे उनका और एन डी टी वी का कांग्रेस के प्रति पोजिटिव अप्प्रोच रहा है जिसका इस्तेमाल वो कभी ए .राजा को मंत्रिमंडल में जगह दिलाने तो कभी अपने चैनल के हितों का पोषण करने में करती रही हैं |

बरखा दत्त के कई चेहरे हैं मै जब भी बरखा दत्त के बारे में सोचता हूँ मेरी आँखों के सामने २६/११ की बरखा घुमने लगती हैं है |लाइव कवरेज में बरखा एक बेहद फटेहाल व्यक्ति से पूछती हैं कहाँ है तुम्हारी पत्नी मार दी गयी तो क्या बंधक नहीं बना रखा है उसे ?जी नहीं वो वहां छुपी है उस जगह |दूसरा दृश्य लगभग ४ घंटे के आपरेशन के
बाद जैसे ही सेना का एक जनरल बाहर निकल कर आता है और खबर देता है कि और कोई बंधक ओबेराय में नहीं है बरखा कि ओर से एक और ब्रेकिंग न्यूज फ्लेश होती है अभी भी ओबेराय में १०० से अधिक बंधक मौजूद है |निस्संदेह हमेशा की तरह बरखा उस वक़्त भी अपनी टी आर पी बढ़ने के लिए सनसनी बेच रही होती हैं |उस वक्त जल रहे ताज के बजाय बरखा के चेहरे पर पड़ रहा कैमरे का फ्लेश इस सच को पुख्ता करता है| 


जब नीदरलैंड के एक अप्रवासी भारतीय चैतन्य कुंटे ने २६/११ के दौरान अपने ब्लॉग बरखा की इस पत्रकारिता पर सवाल खड़े किये तो बरखा और एन डी टी वी इंडिया ने पहले तो चैतन्य से माफ़ी मांगने को कहा और फिर उसके खिलाफ मुक़दमे की कार्यवाही शुरू कर दी|अंततः कुंटे को वो पोस्ट हटानी पड़ी कोलंबिया में पढ़ी लिखी और लाइम लाइट में रहने की की शौक़ीन बरखा को चैतन्य जैसे आम ब्लॉगर की आलोचना भला क्यूँकर स्वीकार होती | अफ़सोस इस बात का रहा कि उस वक्त किसी भी वेबसाईट या ब्लॉग पर बरखा दत्त की इस कार्यवाही को लेकर एक शब्द भी नहीं छापा गया लेकिन हाँ, उस एक घटना से ये साबित हो गया कि उनके भीतर एक ऐसी दम्भी महिला पत्रकार बैठी हुई है जो खुद अभिव्यक्ति की स्वतंत्र मालूम के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकती है |बरखा के सम्बन्ध में एक किस्सा शायद बहुत लोगों को नहीं मालूम हो ,बरखा दत्त नाम से एक इन्टरनेट डोमेन नेम हैदराबाद की एक फर्म ने ले रखा था ,बखा दत्त को जैसे ही इस बात का पता चला वो न्यायायल चली गयी और वाहन ये नजीर दी कि मेरा नाम हिंदुस्तान में बेहद मशहूर है अगर इस नाम से कोई वेबसाईट बनायीं जायेगी तो लोगों के दिमाग में मै ही आउंगी ,इसलिए ये डोमेन नेम निरस्त कर दिया जाए ,हालांकि बरखा ये मुकदमा हार गयी |ये बात कुछ ऐसी थी कि देश में बरखा दत्त नाम का कोई दूसरा हो ही नहीं सकता ,अगर हुआ तो उस पर बरखा मुकदमा कर देंगी |

बरखा द्वारा स्पेक्ट्रम घोटाले में अगर नीरा राडिया की मदद की गयी तो उसके पीछे सिर्फ व्यक्तिगत फायदा नहीं था बल्कि पूरे चैनल का हित भी उससे जुड़ा हुआ था ,इस बात की बहुतों को जानकारी नहीं होगी कि नीरा राडिया की ही फर्म वैष्णवी कारपोरेट कम्युनिकेशन के ही एक हिस्से विट्काम द्वारा एन डी टी वी इमेजिन का व्यवसाय देखा जा रहा है |ये नीरा राडिया और बरखा दत्त का ही कमाल था कि एन डी टी वी का व्यावसायिक घाट पिछले एक साल में ही बेहद कम हो गया ,इस घाटे को कम करने के लिए हाई प्रोफाइल इंटरव्यूज कवरेज किये गए वहीँ ,बेहद शर्मनाक तरीके से इन इंटरव्यूज के माध्यम से इमेज मकिंग का भी काम किया गया |अगर आप बतख दत्त द्वारा लिए गए साक्षात्कारों की सूची पर निगाह डालें तो ये सच अपने आप सामने आ जायेगा |बरखा दत्त की एन डीटी वी में जो पोजीशन है उसमे उनकी जवाबदेही खत्म हो जाती है ,वो चाहे ख़बरों का मामला हो चाहे अब ये घोटाला उनको लेकर एन डी टी वी कोई कार्यवाही करेगा ,नितांत असंभव है |फेसबुक में ‘Can you please take Barkha off air’ नामक ग्रुप चलने वाली निवेदिता दास कहती हैं “बरखा दत्त में,मे उस एक अति महत्वकांक्षी महिला को देखती हो जो खबरों की कवरेज के समय खुद को यूँ ब्लो उप करती है जैसे ये खबर ओस्कर के लिए चुनी जाने वाली है ,जब लोग डरे ,सहमे और मौत के बीच रहते हैं उस वक्त का वो अपने और पाने चैनल के लीये बखूबी इस्तेमाल करना जानती है ,जब वो ख़बरों की क्कोव्रेज नहीं कर रही होती है तब भी उसमे वही अति महत्वाकांक्षी महिला साँसे लेती रही थी ,जिसका सबूत इस एक घोटाले से सामने आया है आवेश की कृति




आज के जमाने मे जब क्रांतिकारियों की मीडिया मे पब्लिसिटी होती है तब से उनका ह्यास होना शुरू हो जाता है क्योकि अधर्मियों और देश्ध्रोहियों से भरा पड़ा है ये इंडिया, ये उन क्रांतिकारियों पर भारी पड़ते है इसलिए गुप्त ज्वालामुखी-रूपी क्रांति ही सर्व श्रेष्ठ है, बस आग बनाते जाओ और इसके फूटने का इंतजार करो, एक दिन सफलता मिलेगी !

इस महाचोर, झुट्ठा और मक्कार पवार से अब तो मुक्ति पाओ [ भड़ास 4 मीडिया से साभार ]

इस महाचोर, झुट्ठा और मक्कार पवार से अब तो मुक्ति पाओ
[ भड़ास 4 मीडिया से साभार ]

चीनी घोटाला हो या स्टांप घोटाल, 2जी स्पेक्ट्रम हो या महंगाई घोटाला... ज्यादातर में नाम है शरद पवार का. फिर भी यह चोट्टा अपनी कुर्सी पर बना हुआ है. हर घोटाले के बाद आरोप लगने पर कहता है कि उसका कोई लेना-देना नहीं है. और, अपने सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी ऐसे कमजोर नेता हैं कि सरकार चलाने की खातिर इस चोर, ठग और घोटालेबाज शरद पवार को कुछ नहीं कहते.

या हम यह भी कह सकते हैं कि शरद पवार घोटाले से कमाई गई रकम का एक बड़ा हिस्सा इन कांग्रेसी नेताओं को भी देता होगा, इसी कारण उसको सरकार से नहीं हटाते ये दिग्गज कांग्रेसी नेता. नीरा राडिया ने जो ताजातरीन खुलासा किया है, उससे शरद पवार फिर एक नए घोटाले के सरगना के रूप में सामने आया है. शरद पवार ने हमेशा की तरह इस बार भी घोटाले में कोई हाथ होने से इनकार किया है. परंतु अब जो रोज नए खुलासे हो रहे हैं, उससे पता चल रहा है कि यह शरद पवार नहीं, झुट्ठा पवार है. आईबीएन7 की वेबसाइट से एक स्टोरी हम यहां साभार प्रकाशित कर रहे हैं जिसे पढ़कर आपको लग जाएगा कि पवार कितना बड़ा चोर व झुट्ठा है.
दस्तावेज तो कुछ और ही कहानी कहते हैं पवार साहब!

नई दिल्ली। टेलीकॉम घोटाले की जांच कर रही सीबीआई से कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया ने कहा है कि डीबी-रियल्टी से शरद पवार के रिश्ते हो सकते हैं। इससे मचे बवाल के बाद पवार ने दावा किया कि उनका दागी कंपनी डीबी रियलिटी से आर्थिक तौर पर कोई लेना-देना नहीं है लेकिन दस्तावेज तो कुछ और ही कहानी बयान करते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खड़से ने बाकायदा विधानसभा में ये दस्तावेज पेश कर जांच की मांग की है।

पुणे के यरवाडा इलाके में बन रहा पांच सितारा होटल किसी और का नहीं बल्कि डीबी रियलिटी के मालिक शाहिद बलवा का है। पांच सितारा होटल की ये इमारत इस बात का सबूत है कि पवार और बलवा के रिश्ते हैं। और ये रिश्ते बेहद करीबी हैं। दरअसल शरद पवार जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने मुकुंद ट्रस्ट को ये जमीन दिलवाई थी। जमीन मिली थी करीब 3.26 एकड़। लेकिन मुकुंद ट्रस्ट ने फर्जीवाड़े से तीन दशमलव दो छह एकड़ के बजाए 326 एकड़ जमीन हथिया ली। मुकुंद ट्रस्ट किसी और का नहीं विनोद गोयनका परिवार का है जिसका नाम टू जी स्पेक्ट्रम में सामने आया है और इसी जमीन पर बन रही इमारतों से शरद पवार औऱ उनके परिवार के रिश्ते भी जुड़ते हैं।

होटल के करीब पंचशील टेकपार्क भी बनाया जा रहा है। ये टेक पार्क जो कंपनी बना रही है उसमें शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले औऱ उनके पति सदानंद सुले की भागीदारी रही है। इतना ही नहीं जिस मुकुंद ट्रस्ट को जमीन दिलाई गई उसके मालिकों में विनोद गोयनका शाहिद बलवा के अलावा डीबी रियलिटी का दूसरे पार्टनर भी शामिल हैं। इनमें से शाहिद फिलहाल दू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जेल में हैं। यानी सीधे तौर पर तो नहीं। लेकिन घुमा फिरा कर केंद्रीय मंत्री शरद पवार और उनके परिवार का कहीं न कहीं शाहिद बलवा औऱ विनोद गोयनका से रिश्ता जरूर है।

पवार और उनके परिवार के शाहिद बलवा औऱ विनोद गोयनका से रिश्तों की तस्दीक करते हैं वो दस्तावेज जो खड़से ने विधान सभा में पेश किए। दरअसल शाहिद बलवा जो पांच सितारा होटल बनवा रहा है। उसकी मंजूरी के लिए सरकारी विभागों में अर्जी शाहिद बलवा की तरफ से ही दी गई है। इसी शाहिद बलवा ने पंचशील टेक पार्क की मंजूरी के लिए भी सरकारी विभागों में अर्जी दी है। पंचशील टेक पार्क में शरद पवार की बेटी और दामाद की हिस्सेदारी भी थी। बात यही खत्म नहीं होती श्रीनिवास पाटिल नामके जिस कलेक्टर ने मुकुंद ट्रस्ट को जमीन दिलवाई वो बाद में शरद पवार की पार्टी एनसीपी से सांसद भी बन गया।

अब सवाल ये उठते हैं कि

1-अगर शरद पवार सही हैं तो फिर उनकी बेटी औऱ दामाद की उस कंपनी में कैसे हिस्सेदारी रही जो कि विनोद गोयनका के ट्रस्ट को मिली जमीन पर टेक पार्क बना रही है?

2-पंचशील टेक पार्क बना रही जिस कंपनी में पवार की बेटी औऱ दामाद की हिस्सेदारी थी उसके लिए सरकारी मंजूरी की अर्जी आखिर शाहिद बलवा ने कैसे दी।

3-शरद पवार के मुख्यमंत्री रहते विनोद गोयनका के ट्रस्ट को आखिर जमीन कैसे मिली?

4-आखिर जिस मुकंद ट्रस्ट को केवल तीन दशमलव छब्बीस एकड़ जमीन मिलनी थी उस 326 एकड़ जमीन कैसे मिल गई?

5-क्या इतने पेचीदे तरीके से विनोद गोयनका और शाहिद बलवा को मदद करने का मकसद असलियत को छुपाना था?

इस देश में नरेन्द्र मोदी की तारीफ करना मना है !! क्योकि सोनिया के अलावा इस देश में न कोई महान है और ना कोई होगा !!! लेकिन बेचारे कांग्रेसी क्या करे ? मोदी की तारीफ किये बना रह भी तो नही सकते !! उत्तराखंड मे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मोदी जी की खूब तारीफ की, हाईकमान ने जबाब तलब किया

इस देश में नरेन्द्र मोदी की तारीफ करना मना है !! क्योकि सोनिया के अलावा इस देश में न कोई महान है और ना कोई होगा !!!

आखिर सरकार कोई ऐसा कानून क्यों नहीं बना देती कि जो मोदी की तारीफ करेगा उसे देश निकला हो जायेगा .. इस देश के "शर्म निरपेक्षों " को दिल्ली के शिख्खो का नरसंहार और भागलपुर तथा मेरठ के दंगे क्यों नहीं याद आते है ?? आज हर बात पर मोदी जी की ख़ामोशी हमें याद दिला देती है कि "हाथी अपनी मस्त चाल में चुपचाप चलती जाती है और "खाजेले" कुत्ते भोकते ही रह जाते है "

आज क्यों इन शर्म निरपेक्षों को गुजरात का चतुर्दिक विकास नज़र नहीं आ रहा है ?? गुजरात एकमात्र देश का ऐसा राज्य है जहा पॉवर कट नहीं होती . अहमदाबाद ,बरोदा ,सूरत ,राजकोट सहित राज्य के बहुत से शहरो में "फ्लाई ओवर " के जाल बन रहे है . जो BRTS दिल्ली में अरबो रूपये खर्च करने के बाद भी फेल हो गया उसे अहमदाबाद ने सफल बना कर दिखा दिया ..

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ अच्छे-अच्छे धर्मनिरपेक्षों को शर्मनिपेक्ष बनने पर मजबूर कर देती है। चाहे वो कट्टरपंथियों के गले की फांस बने दारुल उलूम (देश में शिया मुस्लिम समुदाय की सबसे बड़ी संस्था) के नए कुलपति मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तनवी हों या भारतीय फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन। चाहे नक्सलियों के दलालों से घिरे प्रख्यात समाजसेवी गांधीवादी अन्ना हजारे। चाहे सपा नेता शाहिद सिद्दीकी हो या सीपीआई सांसद अब्दुल्ला कुट्टी | चाहे कांग्रेसी सांसद विजय दर्डा हो या सेनाउप प्रमुख हो  या फिर विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम हो या फिर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला हो |

मित्रों इतना ही नही गुजरात कांग्रेस की पत्रिका मे भी मोदी जी की खूब तारीफ की गयी थी |


इसी  कड़ी के ताजा नाम जुड़ा है उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का | उन्होंने राज्य के निवेशको और उद्योगपतियों के एक सम्मेलन मे मोदी जी की खूब तारीफ की और गुजरात के विकास माडल को देश का सर्वश्रेष्ठ बताया \

अन्ना ने नरेंद्र मोदी की तारीफ क्या कर दी इटलीपरस्त वफादारों को मानो हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया हो। गाँधी के नाम पर रोटी तोड़ रहे कांग्रेसियों ने अपनी आका (मैडम सोनिया) को खुश करने के लिए मोर्चा संभाल लिया। अब ऐसे समय में भला दिग्गी राजा कैसे चुप रहते। दिग्गिलिक्स के खुलासों ने अन्ना हजारे जैसे लोकतंत्र के नए वाहक (मिडिया की नज़रों में आधुनिक गांधी) को भी भीगी बिल्ली बनने पर मजबूर कर दिया।

अंततः अन्ना को धर्मनिरपेक्ष का तमगा हासिल करने के लिए पत्रकार वार्ता कर कहने पर मजबूर होना पड़ा कि उन्होंने विकास की तारीफ की थी मोदी की नहीं, जब अन्ना हजारे जैसा मजबूत रीढ़ का आदमी कांग्रेसी हमले पर कोना पकड़ जाता है तो वाकई शर्म की बात है। लगता है अन्ना में भी तुष्टिकरण वाला गांधीवादी विषाणु प्रत्यारोपित कर दिया गया है।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात से पहले ही वाकिफ हो चुके हैं, उन्होंने उसी समय समाजसेवी अन्ना हजारे से कहा कि ‘अन्ना आपने मेरे बारे में अच्छा क्यों बोला? आपको अब उन सामाजिक कार्यकर्ताओं का गुस्सा झेलना पड़ेगा जिन्हें गुजरात के नाम से ही चिढ़ है। ये लोग आपके खिलाफ दुष्प्रचार की मुहिम शुरू कर देंगे।’ यह बात उन्होंने हजारे को लिखे अपने खुले खत में कही है। मोदी ने लिखा है, ‘ कल मैंने मुझे और मेरे राज्य को दिए आपके आशीर्वाद के बारे में सुना। मुझे डर है कि अब आपके खिलाफ निंदा अभियान शुरू हो जाएगा। गुजरात के नाम से ही चिढ़ जाने वाला एक खास ग्रुप आपके प्यार, बलिदान, तपस्या और सच के प्रति समर्पण पर कालिख पोतने का मौका नहीं छोड़ेगा। वे आपकी छवि खराब करने की पूरी कोशिश करेंगे,सिर्फ इसलिए कि आपने मेरे और मेरे राज्य के बारे में कुछ अच्छा कहा।’

लोकतंत्र में अपने विचार प्रकट करने की सुविधा हर इंसान को है। अगर अन्ना हज़ारे ने मोदी के काम की तारीफ की तो किसी भी वर्ग (खासकर राजनीति को घर की खेती समझने वाली कांग्रेस पार्टी) को गुस्सा आने की जरूरत क्या है। अन्ना हज़ारे ने नीतीश कुमार के काम की भी तारीफ की है, अगर उनकी तारीफ से लोगों को एतराज़ नही है तो मोदी की तारीफ से क्यूँ? आज देश का विकास चाहने वाला यही कहेगा आप विकास कीजिए सारा देश आपके साथ है। जिन्हें कुछ नहीं करना है उन्हें केवल बोलने दीजिए।

मित्रों जिसने भी मोदी जी की तारीफ की उसे जमाने का कहर भुगतना पड़ा | जैसे मोदी की तारीफ करना कोई अपराध हो |

एक खास वर्ग है जिसे देशभक्ति में कट्टरवाद दिखता है, केसरिया रंग के कपड़े पहनने वाले भगवा आतंकी के रूप में नज़र आते हैं, अलगाववादिओं के साथ कश्मीर को पाकिस्तान को देने की वकालत करते है, पेज 3 की पार्टी और शराब मे डूबकर रोज घर जाना, उनकी आदत में शुमार है। ऐसे लोगों को नीतीश, मोदी जैसे नेता ओर उनका विकास नही चाहिए, उनको राजनैतिक चुहलबाजी के लिए लालू (नौटंकी बाज़), अमर सिंह (शायरीबाज़), मुलायम जैसे लोग, या फिर अपनी छवि निखारने के लिए इन मीडिया के दलालों को ऐश करवाने वाले नेता (युवा गांधी), अभिनेता और राजनेता चाहिए। राष्ट्रवाद और विकास की बात करने वालों के खिलाफ तथाकथित सेकुलर लोग ज़रूर बोलते हैं, लेकिन जब देशद्रोही लोग सरे आम अलगाववाद, और पाकिस्तान के गीत गाते है तब ये अपने बिलों में घुसे रहते हैं और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीतिक बिसात बिछाने में लग जाते है।

अब वक्त आ गया है दोस्तों हमें संगठित होना ही पड़ेगा .. नहीं तो हमारे आनेवाली पीढियो को "जजिया कर" देने की नौबत आयेगी ...


राहुल गाँधी को मानसिक इलाज की जरूरत !

राहुल गाँधी को मानसिक इलाज की जरूरत !

देश के युवाओ ने जिस तरह अन्ना हजारे के साथ खड़े हुए उसको देखकर राहुल गाँधी और उनकी "चांडाल चौकड़ी" ने मानसिक संतुलन खो दिया है..


लगता है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी चार छह साल काम करते-करते थक गए है। वे मानसिक और शारीरिक दोनों रुप से थके हुए साफ दिखाई दे रहे है। शायद यही काऱण है कि केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन उन्हें बुजूर्ग नजर आते है, जबकि तामिलनाडू के मुख्यमंत्री करूणानिधि नौजवान। हो सकता है युवराज को सिंकारा टानिक की जरूरत हो लेकिन यह बयान देकर उन्होंने साबित कर दिया कि वे अमूल बेबी ही हैं, जैसा कि केरल के सीएम अच्युतानन्दन ने उनके बारे में कहा है।
उनका तथाकतिथ जादू किसी भी प्रदेश में नहीं चला .. उलटे लगता है की ये कांग्रेस की लुटिया ही डूबा देंगे .. गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल सब जगह लोगो ने राहुल गाँधी को नकार किया . इतनी मेहनत करने के बाद भी किसी को यदि सफलता नहीं मिले तो मानसिक संतुलन खोना स्वाभाविक है .. लेकिन जिसकी कथनी और करनी में जमीं और आसमान का फर्क होगा उसे सफलता कैसे मिलेगी ?? राहुल हर चुनाव में भार्स्ताचार से लड़ने की बात करते है और दिल्ली लौटकर अपने मंत्रियो को वसूली का "टारगेट" देते है और उनके तथा सोनिया गाँधी के ही इशारे पर सारे घोटाले हो रहे है ..

कांग्रेस के अमेठी के सांसद राहुल गांधी वीएस अच्युतानंदन को केरल में चुनाव प्रचार के दौरान "बूढ़ा" कहा है। दिलचस्प बात है कि वे केरल में इस आधार पर सता में परिवर्तन की बात करते है। लेकिन पड़ोस के राज्य में ही एक दूसरे बुजूर्ग करूणानिधि के लिए वो वोट मांग रहे है। जबकि करूणानिधि भी उतने ही बुजूर्ग है। दिलचस्प बात है कि राहुल गांधी को बुजूर्गों की अहमियत नहीं पता है। तभी वे अजीब तरह के ब्यान दिए जा रहे है।

राहुल गांधी की केंद्र की सरकार भी बुजूर्ग ही चला रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बुजूर्ग है, प्रणव मुखर्जी भी बुजूर्ग है। अगर अच्युतानंदन को उम्र के तकाजा पर हटा दिया जाना चाहिए, तो मनमोहन सिंह भी बुजूर्ग होने के आधार पर हटा दिए जाने चाहिए। वहीं प्रणव मुखर्जी को भी बुजूर्ग होने के आधार पर हटा देने चाहिए। लेकिन हालात यह है कि आधे से ज्यादा मंत्रिमंडलीय समूहों के अध्यक्ष बुजूर्ग प्रणव मुखर्जी को युवराज की सरकार ने बना रखा है। बेचारे युवराज को यह नहीं पता है कि उनकी पार्टी ने जब आजादी हासिल की तो उसके नेता महात्मा गांधी भी बुजूर्ग हो चुके है। 1962 में चीन युद्व के समय उनके परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू भी बुजूर्ग हो चुके थे, जबकि वे भारत के प्रधानमंत्री थे।

राहुल गांधी की यह हालत होना जायज है। दरअसल उनकी नजर यूपी के चुनावों पर है। यूपी में अगले साल चुनाव होने है, पर यूपी में कांग्रेस पार्टी की कुछ बनती नजर नहीं आ रही। मुख्य लड़ाई मायावती और मुलायम सिंह के बीच नजर आ रही है। अगर बाबा रामदेव की पार्टी बन गई और वे चुनाव में उतर गए तो कुछ उनका कमाल हो सकता है। खुद कांग्रेसी अब अपनी हार मान चुके है। उनका कहना है कि यूपी के अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को कुछ हासिल नहीं होगा। हार का ठीकरा किस पर फोड़ा जाएगा, इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है।

हालांकि संभावना इस बात की काफी है कि हार का ठीकरा सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ही फोड़ा जाएगा, क्योंकि यूपी उनका गृह राज्य है। अगर यहां भी पार्टी हारती है तो इसके लिए प्रदेश की टीम नहीं, राष्ट्रीय टीम जिम्मेवार होंगे। वैसे भी जब राहुल के सबसे खास दिग्विजय सिंह पार्टी प्रभारी हो, और पार्टी हार जाए तो जिम्मेवारी किसकी बनती है। दिग्विजय सिंह ने पूरे देश में कांग्रेस को मजबूत करने का ठेका ले रखा है। कांग्रेस को फंसाने वाले ब्यान देने के लिए वे मशहूर है। फिर भी दिग्विजय सिंह के खास चंपुओं की सुने तो अमूल बेबी के इन बयानों से भी पार्टी को काफी फायदा होता है।

अब बेचारे कांग्रेस के युवराज को कौन समझाए कि हार भी बरदाश्त करने की क्षमता होनी चाहिए। उनकी दादी हार बरदाश्त कर सता में लौटना जानती थी, लेकिन लगता है अमूल बेबी को अभी उनके प्रशिक्षकों ने यह प्रशिक्षण नहीं दिया है.

सोनिया गांधी का बेनामी है हसन अली

सोनिया गांधी का बेनामी है हसन अली

जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले को सामने लाने में अहम भूमिका निभानेवाले सुब्रमण्यम स्वामी का कहना है कि हसन अली कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का बेनामी है. असल में स्विस बैंकों में जो पैसा है वह सोनिया गांधी का ही है जिसे हसन अली के नाम पर देश से बाहर जमा किया गया है. इसीलिए हसन अली को लगातार बचाने की कोशिश की जा रही है.

दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए स्वामी ने कहा कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि हसन अली ने स्वीकार किया है कि जो पैसा है वह सोनिया गांधी का है. प्रेस कांफ्रेस के बाद एक विशेष बातचीत में स्वामी ने यह खुलासा भी किया कि इस संबंध में एक सीडी है लेकिन केन्द्र सरकार उस सीडी को नष्ट करके सारे सबूत मिटा देना चाहती है. उन्होंने आशंका जताई कि सरकार उस सीडी को नष्ट करके हसन अली के इस बयान को हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर देने की कोशिश कर रही है. जब हमने उनसे यह पूछा कि इस संबंध में वे खुद कोई खुलासा क्यों नहीं करते? वह सीडी सार्वजनिक क्यों नहीं करते? तो स्वामी का कहना था कि वक्त आने पर वे ऐसा करेंगे.

पत्रकारों से बात करते हुए स्वामी ने सोनिया गांधी और उनके परिवार पर कई सनसनीखेज आरोप लगाये हैं. स्वामी का कहना है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा का यूनिटेक में 20 प्रतिशत शेयर है. यह यूनिटेक वही कंपनी है जो यूनिनॉर नाम से मोबाइल सेवा प्रदान करती है और इस कंपनी को स्पेक्ट्रम दिलाने में नीरा राडिया की संदिग्ध भूमिका सामने आयी थी. स्वामी का कहना है कि टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में 60 प्रतिशत से अधिक पैसा सोनिया गांधी के परिवार के पास पहुंचा है इसलिए यह सरकार सिर्फ ए राजा के सिर पर सारा ठीकरा फोड़कर इस मामले को दबा देना चाहती है. स्वामी ने गृहमंत्री चिदम्बरम को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि चिदम्बरम घोटाले के पैसे को खपाने की कानूनी सलाह देते हैं इसलिए गृहमंत्री बने हुए हैं. उन्होंने कहा कि टूजी घोटाले में चिदम्बरम की भूमिका की जांच होनी चाहिए. हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बचाव किया और कहा कि उनके हाथ में कुछ है नहीं, इसलिए वे कुछ कर ही नहीं सकते.

कालेधन पर अपने अभियान के तहत आगामी 1-2 अप्रैल को दिल्ली में एक सेमिनार का आयोजन किया गया है जिसके बारे में जानकारी देने के लिए यह प्रेस कांफ्रेस आयोजित की गयी थी.

“साम्प्रदायिक” तो था ही, अब NDTV द्वारा न्यायपालिका पर भी सवाल… NDTV Communal TV Channel, Anti-Judiciary, Anti-Hindu NDTV

“साम्प्रदायिक” तो था ही, अब NDTV द्वारा न्यायपालिका पर भी सवाल… NDTV Communal TV Channel, Anti-Judiciary, Anti-Hindu NDTV
विगत एक-डेढ़ माह में दो प्रमुख न्यायिक घटनाएं हुई हैं, जिनका जैसा व्यापक और सकारात्मक प्रचार होना चाहिये था वह हमारे महान देश के घृणित (यानी सेकुलर) चैनलों द्वारा जानबूझकर नहीं किया गया। इसके उलट इन दोनों न्यायिक निर्णयों को या तो नज़र-अन्दाज़ करने की अथवा इन्हें नकारात्मक रूप में पेश करने की पुरज़ोर कोशिश की गई। हमेशा की तरह इस मुहिम का अगुआ “चर्च-पोषित” चैनल NDTV ही रहा…

पहला महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय आया था कर्नाटक में, जहाँ जस्टिस सोमशेखर आयोग ने यह निर्णय दिया कि 2008 में कर्नाटक के विभिन्न इलाकों में चर्च पर हुए हमले में संघ परिवार का कोई हाथ नहीं है… यह घटनाएं एवेंजेलिस्टों द्वारा हिन्दू देवताओं के गलत चित्रण के कारण उकसाये जाने का परिणाम हैं एवं इसमें शामिल लोगों का यह कृत्य पूर्णतः व्यक्तिगत था, जस्टिस सोमशेखर (Justice Somshekhar Report of Karnataka Church Attack) ने स्पष्ट लिखा है कि “ऐसा कोई सबूत नहीं है कि इन हमलों में राज्य सरकार अथवा इसके किसी मुख्य कार्यकारी का सीधा या अप्रत्यक्ष हाथ हो…” । परन्तु वह “सेकुलर” ही क्या, जो भाजपा या हिन्दुओं के पक्ष में आये हुए किसी फ़ैसले को आसानी से मान ले… जस्टिस सोमशेखर की रिपोर्ट आने के तुरन्त बाद NDTV ने अपना घृणित खेल खेलना शुरु कर दिया…

उल्लेखनीय है कि बिनायक सेन (Binayak Sen Verdict) के मामले में भी “लोअर कोर्ट” और “हाईकोर्ट” के निर्णय की सबसे अधिक आलोचना और हायतौबा NDTV ने ही मचाई थी… बिनायक सेन और चर्च का नापाक गठबन्धन भी लगभग उजागर हो चुका है…। बहरहाल बात हो रही थी NDTV द्वारा चलाई जा रही घटियातम पत्रकारिता की…(NDTV Hate and False Campaign)

जस्टिस सोमशेखर की आधिकारिक रिपोर्ट (जिन्हें राज्य सरकार ने नियुक्त किया था और जिन्होंने 2 साल में 754 गवाहों, 1019 आवेदनों और 34 वकीलों की जिरह-बहस और बयानों के आधार पर सुनवाई की) आने के तुरन्त बाद NDTV ने अपने चैनल और साईट पर एक अन्य रिटायर्ड जज एमएफ़ सलधाना की रिपोर्ट प्रकाशित करना और प्रचारित करना शुरु कर दिया। स्वयं NDTV और जस्टिस सलधाना के अनुसार चर्च पर हुए हमलों की यह जाँच “पूर्णतः व्यक्तिगत और स्वतन्त्र” थी… यानी एमएफ़ सलधाना साहब ने खुद ही अपने “विवेक”(?) से चर्च पर हुए इन हमलों की जाँच करने का निर्णय ले लिया और कर भी ली…। रिटायर्ड जस्टिस सलधाना साहब अपनी इस “व्यक्तिगत” रिपोर्ट में फ़रमाते हैं, “चर्च पर हुए इन हमलों में राज्य की पुलिस भी शामिल थी, तथा बजरंग दल के नेता महेन्द्र कुमार ने सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर चर्चों पर हमले किये…” (यह अजीबोगरीब निष्कर्ष जस्टिस सलधाना साहब ने किस गवाह, बयान आदि के आधार पर निकाले, यह बात NDTV ने अभी तक गुप्त रखी है)।

लेकिन कर्नाटक सरकार को बदनाम करने और हिन्दूवादी संगठनों को निशाना बनाने की अपनी इस घृणित कोशिश में NDTV ने जानबूझकर कुछ तथ्य छिपाये, क्यों छिपाये… यह आप इन तथ्यों को पढ़कर ही समझ जायेंगे –

1) जस्टिस एमएफ़ सलधाना यानी जस्टिस “माइकल एफ़ सलधाना”।

2) जस्टिस माइकल सलधाना दक्षिण कन्नडा जिले के कैथोलिक एसोसियेशन के अध्यक्ष हैं… (अब खुद ही सोचिये कि कैथोलिक एसोसियेशन के अध्यक्ष द्वारा की गई “व्यक्तिगत” जाँच कितनी निष्पक्ष हो सकती है)। मजे की बात तो यह है कि जस्टिस सलधाना खुद कहते हैं कि “सरकार द्वारा बनाये गये आयोग के नतीजे निष्पक्ष नहीं हो सकते…” (क्या यह नियम उन पर लागू नहीं होता…? वे भी तो कैथोलिक एसोसियेशन के अध्यक्ष हैं, फ़िर उन्हें न तो ढेर सारे गवाह उपलब्ध थे और न ही कागज़ात, फ़िर भी उन्होंने अपनी “व्यक्तिगत निष्पक्ष” रिपोर्ट पेश कर दी?… न सिर्फ़ पेश कर दी, बल्कि उनके सेकुलर चमचे NDTV ने वह तुरन्त प्रसारित भी कर डाली?)

(चित्र में जस्टिस माइकल सलधाना Justice Saldhana in Christian Association Programme, उडुपी जिले के यूनाइटेड क्रिश्चियन एसोसियेशन के कार्यक्रम में एक पुस्तिका का विमोचन करते हुए)

जस्टिस “माइकल” सलधाना की निष्पक्षता की पोल तो उसी समय खुल चुकी थी, जब कर्नाटक सरकार ने गौ-हत्या का बिल विधानसभा में पेश किया था। माइकल सलधाना ने उस समय एक “ईसाई-नेता” की हैसियत से गौहत्या बिल (Karnataka Cow Slaughter Bill Opposed) का विरोध किया था और कहा था कि “कर्नाटक सरकार द्वारा यह कानून अल्पसंख्यकों की भोजन की आदतों को बदलने की साजिश है, और यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है कि वे क्या खाएं और क्या न खाएं…”।

जस्टिस माइकल की “कथित निष्पक्षता” का एक और नमूना देखिये – “इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर रिलिजीयस फ़्रीडम” (International Institute of Religious Freedom) की भारत आधारित रिपोर्ट में “जस्टिस माइकल सलधाना लिखते हैं – “मंगलोर एवं उडुपी जिले के उच्चवर्णीय हिन्दू ब्राह्मण समूचे कर्नाटक में हिन्दुत्व की विचारधारा के प्रसार में सक्रिय हैं, चूंकि ब्राह्मण जातिवादी व्यवस्था बनाये रखना चाहते हैं और ईसाई धर्मान्तरण का सबसे अधिक नुकसान उन्हें ही होगा, इसलिये वे “हिन्दुत्व” की अवधारणा को मजबूत रखना चाहते हैं, और इसी कारण वे “क्रिश्चियानिटी” से लड़ाई चाहते हैं, जबकि ईसाई धर्म एक पवित्र और भलाई करने वाला धर्म है…”।

एक हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से ऐसी “साम्प्रदायिक” टिप्पणी की आशा नहीं की जा सकती, एक तरफ़ तो वे खुद ही “ईसाई धर्मान्तरण” की घटना स्वीकार कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ ब्राह्मणों को गाली भी दे रहे हैं कि वे दलितों-पिछड़ों को ईसाई बनने से रोकने के लिये “हिन्दुत्व” का हौआ खड़ा कर रहे हैं… क्या एक “निष्पक्ष” जज ऐसा होता है? और NDTV जैसा घटिया चैनल इन्हीं साहब की रिपोर्ट को हीरे-मोती लगाकर पेश करता रहा, क्योंकि…

1) कर्नाटक में भाजपा की सरकार है, जो इन्हें फ़ूटी आँख नहीं सुहा रही,

2) हिन्दूवादी संगठनों को जस्टिस सोमशेखर ने बरी कर दिया, जबकि NDTV की मंशा यह है कि चाहे जैसे भी हो, संघ-भाजपा-बजरंग दल-विहिप को कठघरे में खड़ा रखे… न्यायपालिका का इससे बड़ा मखौल क्या होगा, तथा इससे ज्यादा नीच पत्रकारिता क्या होगी?

दूसरी महत्वपूर्ण न्यायिक घटना थी गोधरा ट्रेन “नरसंहार” (Godhra Massacre Judgement) के बारे में आया हुआ फ़ैसला… लालू जैसे जोकरों और यूसी बैनर्जी (U.C. Banerjee Commission on Godhra) जैसे भ्रष्ट जजों की नापाक पुरज़ोर कोशिशों के बावजूद जो “सच” था आखिरकार सामने आ ही गया। सच यही था कि “जेहादी मानसिकता” वाले एक बड़े गैंग ने 56 ट्रेन यात्रियों को पेट्रोल डालकर जिन्दा जलाया। गोधरा को शुरु से सेकुलर प्रेस और मीडिया द्वारा “हादसा” कहा गया… “गोधरा हादसा”… जबकि “हादसे” और “नरसंहार” में अन्तर होता है यह बात कोई गधा भी बता सकता है। इसी NDTV टाइप के सेकुलर मीडिया ने गोधरा के बाद अहमदाबाद और गुजरात के अन्य हिस्सों में हुए दंगों को “नरसंहार” घोषित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। तीस्ता सीतलवाड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में फ़र्जी केस लगाये गये, नकली शपथ-पत्र (Fake Affidavit by Teesta Setalvad) दाखिल करवाये गये, तहलका, NDTV से लेकर सरकार के टुकड़ों पर पलने वाले सभी चैनलों ने पत्रकारिता को “वेश्या-बाजार” बनाकर बार-बार गुजरात दंगे को “नरसंहार” घोषित किया। पत्रकारिता को “दल्लेबाजी” का धंधा बनाने वाले इन चैनलों से पूछना चाहिये कि यदि गुजरात दंगे “नरसंहार” हैं तो कश्मीर से हिन्दुओं का सफ़ाया क्या है?, मराड में हुआ संहार क्या है? दिल्ली में कांग्रेसियों ने जो सिखों (Anti-Sikh Riots in Delhi) के साथ किया वह क्या था? भोपाल का गैस काण्ड और बेशर्मी से एण्डरसन को छोड़ना (Anderson Freed by Rajiv Gandhi) नरसंहार नहीं हैं क्या? इससे पहले भी भागलपुर, मेरठ, बरेली, मालेगाँव, मुज़फ़्फ़रपुर के दंगे क्या “नरसंहार” नहीं थे? लेकिन सेकुलर प्रेस को ऐसे सवाल पूछने वाले लोग “साम्प्रदायिक” लगते हैं, क्योंकि आज तक किसी ने इनके गले में “बम्बू ठाँसकर” यही नहीं पूछा कि यदि गोधरा न हुआ होता, तो क्या गुजरात के दंगे होते? लेकिन जब भी न्यायपालिका ऐसा कोई निर्णय सुनाती है जो हिन्दुओं के पक्ष या मुस्लिमों के विरोध में हो (चाहे वह बाबरी मस्जिद केस हो, रामसेतु हो या शाहबानो तलाक केस) NDTV जैसे “भाड़े के टट्टू” चिल्लाचोट करने में सबसे आगे रहते हैं…। गोधरा फ़ैसला आने के बाद सारे सेकुलरों को साँप सूँघ गया है, उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अब इसकी व्याख्या कैसे करें? हालांकि तीस्ता सीतलवाड और बुरका दत्त जैसी “मंथरा” और “पूतना”, गोधरा नरसंहार और गुजरात दंगों को “अलग-अलग मामले” बताने में जुटी हुई हैं।

गोधरा काण्ड के फ़ैसले के बाद भी NDTV अपनी नीचता से बाज नहीं आया, विनोद दुआ साहब अपनी रिपोर्ट में (वीडियो देखिये) 63 “बेगुनाह”(?) (जो सिर्फ़ सबूतों के अभाव में बरी हुए हैं) मुसलमानों के लिये चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं, लेकिन विनोद दुआ साहब ने कभी भी उन 56 परिवारों के लिये अपना “सेकुलर सुर” नहीं निकाला जो S-6 कोच में भून दिये गये, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। शायद जलकर मरने वाले 56 परिवारों का दुख कम है और इन नौ साल जेल में रहे इन 63 लोगों के परिवारों का दुख ज्यादा है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कश्मीर से खदेड़े गये लाखों हिन्दुओं का दुख-दर्द उतना बड़ा नहीं है, जितना फ़िलीस्तीन में इज़राइल के हाथों मारे गये मुसलमानों का…, यही NDTV की “साम्प्रदायिक मानसिकता” है। (Atrocities and Genocide of Kashmmiri Hindus)

दूसरों को “साम्प्रदायिक” कहने से पहले NDTV और प्रणब रॉय को अपनी गिरेबान में झाँकना चाहिये कि वह खुद कितनी साम्प्रदायिक खबरें परोस रहा है, बुरका दत्त जैसी सत्ता-कारपोरेट की दलालों को अभी भी प्रमुखता दिये हुए है। चैनल चलाने के लाइसेंस और तथाकथित पत्रकारिता करने के गरुर में उन्होंने देशहित और सामाजिक समरसता को भी भुला दिया है…
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चलते-चलते - "वेटिकन के मोहरे NDTV" को यह तो पता ही होगा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन (KGB) (जो अपने बेटों और दामाद के कारनामों और बेवकूफ़ी की वजह से अब भ्रष्टाचार के मामलों में घिर गये हैं) खुद को दलित कहते नहीं थकते, जबकि केरल की SC-ST फ़ेडरेशन के अध्यक्ष वी कुमारन के खुल्लमखुल्ला आरोप लगाया है कि KGB साहब एक फ़र्जी ईसाई हैं और वेटिकन द्वारा भारतीय न्याय-व्यवस्था में घुसेड़े गये हैं। KGB की बेटी और दामाद श्रीनिजन को लन्दन में उच्च शिक्षा हेतु वर्ल्ड काउंसिल ऑफ़ चर्च ने "प्रायोजित" किया था, श्रीनिजन ने SC/ST सीट पर "अजा" बताकर चुनाव लड़ा, जबकि वह "खुल्लमखुल्ला" ईसाई है…। भारत के सारे दलित-ओबीसी संगठन और नेता मुगालते में ही रह जाएंगे, जबकि KGB तथा श्रीनिजन जैसे "दलित से ईसाई बने हुए लोग", असली दलितों का हक छीन ले जाएंगे…

मीडिया घरानों को खरीद रही है कांग्रेस

मीडिया घरानों को खरीद रही है कांग्रेस

दस जनपथ उलझन में है। सत्ता का गुरूर टूटा है। जिस दलदल में कांग्रेस-नीत सरकार फंसी है उससे उबरने के रास्ते सीमित हैं। बिहार चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। जिन मुद्दों के सहारे वो चुनाव में उतरी। वो बैतरनी पार करने में नाकाफी साबित हुई। इस बीच घोटालों की बौछार ने उसे बेदम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मजबूर कांग्रेस ने अब छवि सुधारने के लिए सीधे मीडिया घरानों को खरीदना शुरू कर दिया है।

ये मुहिम दो स्तरों पर है और इसे हिंदी पट्टी के सभी राज्यों में आजमाया जा रहा है। पहला संगठनात्मक स्तर पर और दूसरा नितीश शैली की मीडिया मैनेजमेंट के जरिये। संगठन को कहा गया है कि वो केंद्र सरकार के उद्देश्यों और घोटालों पर पार्टी की राय को लोगों के बीच स्पष्टता से उजागर करे। कांग्रेस का थिंक-टैंक छवि निर्माण को बेहद अहम् मान रहा है। यही कारण है कि मीडिया के वशीकरण के नीतीश के फार्मूले को तबज्जो दिया जा रहा है।

पार्टी को अहसास है कि छवि बनाने में नीतीश ने मीडिया का किस खूबी से इस्तेमाल किया। हालत ये है कि बिहारीपन के प्रकटीकरण में जुटी मीडिया के सारे प्रयास अपने आप नीतीश की आभा से तारतम्य स्थापित करते नजर आ रहे। यहाँ तक कि किसी बिहारी की व्यक्तिगत उपलब्धि के किस्से मीडिया में इस तरह परोसे जा रहे हैं मानो ये सब नीतीश के कारण ही हासिल हुआ हो। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत कहाँ.....यही कोई एक-डेढ़ साल पहले नीतीश ने पत्रकारों से बिहार की छवि निखारने की गुजारिश की थी। पत्रकार गदगद हुए। नीतीश सरकार के " पीआर " के रोल में अपने को फिट करने में इन्हें कोई झिझक नहीं हुई। पत्रकारों का इस तरह निहाल होना समाज के लिए बड़ी खबर थी। ये सदमा देने जैसी थी। राम विलास पासवान जैसों का मानना है कि नीतीश की "लार्जर देन लाइफ इमेज" बुलबुला है जो कि फूटेगा। कांग्रेस को लगता है कि ऐसा होने में समय भी लगता है और ये अक्सर " रिजनल क्षत्रपों ' पर असर डालता है। कांग्रेस की छवि का बुलबुला भी फूट सकता है। इस पर कांग्रेसी रणनीतिकार सचेत हैं और मान कर चल रहे हैं कि इसको बर्दाश्त करने के लिए उसके पास विशाल संगठन है। वैसे भी कांग्रेसी कवायद अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर है जिसका ट्रेलर यूपी चुनाव में दिखेगा। पार्टी समझती है कि राहुल की ताजपोशी के लिए हिन्दी पट्टी में स्वीकार्यता जरूरी है। यही कारण है कि सकारात्मक छवि निर्माण पर भरोसा जताया गया है।

जानकारी के मुताबिक़ हिन्दी पट्टी के स्थापित रीजनल न्यूज चैनलों से " डील " की गई है। ये चैनल मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, इंदिरा आवास, इंदिरा गांधी वृधावस्था पेंशन जैसी योजनाओं पर स्टोरी बनाएँगे और न्यूज स्लॉट में दिखायेंगे। ये विशेष ख़बरें सकारात्मक होंगी। इनका टोन सफलता की कहानी जैसा होगा। ये दिखाया जाएगा कि वंचितों के जीवन में इन योजनाओं के कारण कैसे खुशहाली आई है। जोर इस बात पर है कि इन योजनाओं के तहत जो भी निर्माण कार्य हुए हैं या हो रहे हैं , उसके अच्छे हिस्से को दिखाया जाए। जहाँ काम बंद है वहां स्थानीय मुखिया की मदद से कैमरे के सामने काम होता दिखाया जा रहा है। मजदूरों को ये बताना होता है कि कैसे उनकी किस्मत बदली है। इन मैनेज्ड स्टोरीस के लिए रिसर्च टीम है। रिसर्च टीम के प्रमुखों को कान्ट्रेक्ट पर लाया गया है जो संभवतः केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय से टिप्स पाते हैं।

जानकारी के मुताबिक़ हिन्दी पट्टी के स्थापित रीजनल न्यूज चैनलों से " डील " की गई है। ये चैनल मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, इंदिरा आवास, इंदिरा गांधी वृधावस्था पेंशन जैसी योजनाओं पर स्टोरी बनाएँगे और न्यूज स्लॉट में दिखायेंगे। ये विशेष ख़बरें सकारात्मक होंगी। इनका टोन सफलता की कहानी जैसा होगा। ये दिखाया जाएगा कि वंचितों के जीवन में इन योजनाओं के कारण कैसे खुशहाली आई है।

खबर के मुताबिक रिजनल न्यूज चैनल के सबसे बड़े खिलाड़ी को बिहार सहित सात राज्यों का जिम्मा मिला है। इसके एवज में चैनल को ६० करोड़ रुपये मिलेंगे। एक अन्य स्थापित हिन्दी चैनल को छः राज्यों की जिम्मेवारी सौंपी गई है। इस चैनल के साथ ४० से ५० करोड़ के लेन-देन की बात है। इसके अलावा एक भोजपूरी चैनल को दो राज्यों में काम सौंपा गया है। उसे २० से ३० करोड़ के बीच मिलेगा। स्टोरी के स्तर पर खासा ध्यान रखा जा रहा है जिस कारण इन चैनलों की प्रोग्रामिंग टीम के सदस्य शूट पर निकल रहे हैं।

जी हाँ ! ये पेड़ न्यूज से आगे की शक्ल है जो अखबारों के साथ चैनलों में भी झाँक रहा है। यहाँ राजनीतिक चेहरों के आख्यान की जगह आम आदमी की खुशहाली का विमर्श है। इसमें स्वार्थ और छल का सामाजीकरण किया जाता है। ये मानवीय दिखता है लिहाजा " डिसेपटिव " है। आपको अख्यास हो गया होगा कि चैनलों के खांटी स्वभाव को बदलने के किसिम-किसिम के दखल कितने रंग लाने लगे हैं। याद करिए अर्जुन सिंह के मुख्या-मंत्रित्व काल को। इस दौरान सरकार को सकून देने देने की जिस पत्रकारिता के बीज बोये गए अब उसका प्रचंड विस्तार सामने है। मध्य भारत में इस विकृति को " विकास की पत्रकारिता " कही गई। पत्रकार जमात के चतुर खिलाड़ी खूब फले-फूले। पंजाब को भी याद करना चाहिए जहां पत्रकारिता की कब्र खोदने के लिए नए-नए प्रयोग हुए।

इस दारुण परिदृश्य के निहितार्थ हैं। पत्रकारिता " हर क्षण के इतिहास का गवाह " नहीं रहा.....अब वो इसका साझीदार है। समाज और घटना के बीच " इंटरफेस " की बजाय पत्रकार अब कारक हैं। अब आप कुत्ते को नहीं काटेंगे तो भी न्यूज बनेंगे। पानी में रहकर नहीं भींगने की कला दम तोड़ रही है। पत्रकार अब पानी में भींग भी रहे हैं और नंगे भी हो रहे हैं। वे इतने से संतुष्ट नहीं कि पत्रकारिता उन्हें " रिफ्लेक्टिव पावर " देती है....चांदनी जैसी आभा। अब वो सूरज की तरह ना सही , उल्का पिंड की रौशनी के लिए ठुनक रहा है।

नतीजा सामने है। कई पत्रकार खूब पैसे पा रहे हैं। वे " ब्रांड " भी बन रहे हैं। इन्हें देख बांकी के पत्रकार आपा-धापी में हैं। सफल होने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार। ये बात उन्हें नहीं सालती कि वे खुद न्यूज बन रहे हैं। कांग्रेस को पत्रकारीय कौशल के इस अवतार पर खूब भरोसा है। उसे पता है कि दिल्ली के नामचीन पत्रकारों ने एक दिन में ही मंदी को कैसे छू-मंतर कर दिया था। याद है न पिछली दिवाली। भूल गए हों तो दिवाली के अगले दिन के अखबार फिर से पलट लें। दिल्ली के इन पत्रकारों की माया देखिये पिछले लोकसभा चुनाव से लेकर झारखण्ड चुनाव तक मंदी, महंगाई, काला-धन कभी मुद्दा नहीं बन सके। तब दिल्ली की सत्ता खूब खिलखिलाई थी। झारखण्ड चुनाव के पांच-दस दिनों बाद ही महंगाई सुर्खियाँ बनने लगी। अब बारी है रिजनल मीडिया के भरपूर दोहन की। कांग्रेस अपने इसी अभियान पर थैलियां भरकर निकल पड़ी है।
[यह लेख श्री संजय मिश्र के द्वारा लिखा गया है ..]

ओह !!! वोट के लिए कांग्रेस इतना नीचे गिर सकती है ??? आज हम सबका सर शर्म से झुक गया ..

गृहमंत्री ने लोकसभा में स्वीकार किया कि अफजल गुरु की दया की फाइल अभी तक सरकार ने राष्ट्रपति के पास नहीं भेजी है .... ओह !!! वोट के लिए कांग्रेस इतना नीचे गिर सकती है ??? आज हम सबका सर शर्म से झुक गया ..

इससे अधिक विचित्र और कुछ नहीं हो सकता कि केंद्रीय गृह मंत्रालय संसद पर हमले के मामले में मौत की सजा पाने वाले आतंकी अफजल की दया याचिका पर कुंडली मारे बैठा रहे और फिर भी गृहमंत्री चिदंबरम संसद में यह सफाई पेश करें कि उनके स्तर पर कोई देर नहीं हो रही है। क्या कोई यह बताएगा कि यदि गृहमंत्री मामले को नहीं लटकाए हैं तो वह कौन है जो इसके लिए उन्हें विवश कर रहा है? अफजल की दया याचिका पर राष्ट्रपति तो तब कोई फैसला लेंगी जब वह उनके सामने जाएगी। अफजल की दया याचिका जिस तरह पहले दिल्ली सरकार ने दबाई और अब गृह मंत्रालय दबाए हुए है उससे तो यह लगता है कि उसे फांसी की सजा से बचाने के लिए अतिरिक्त मेहनत की जा रही है? यह क्षुब्ध करने वाली स्थिति है कि एक ओर संकीर्ण राजनीतिक कारणों से आतंकी को मिली सजा पर अमल करने से जानबूझकर इंकार किया जा रहा है और दूसरी ओर देश को यह उपदेश दिया जा रहा है कि ऐसे मामलों में कोई समय सीमा नहीं? यह कुतर्क तब पेश किया जा रहा है जब उच्चतम न्यायालय की ओर से यह स्पष्ट किया जा चुका है कि सजा में अनावश्यक विलंब नहीं किया जाना चाहिए। आखिर जो सरकार अफजल सरीखे आतंकी को सजा देने में शर्म-संकोच से दबी जा रही है वह किस मुंह से यह कह सकती है कि उसमें अपने बलबूते आतंकवाद से लड़ने का साहस है? अफजल के मामले में केंद्रीय सत्ता जैसी निष्क्रियता का परिचय दे रही है उससे न केवल इस धारणा पर मुहर लग रही है कि वह एक कमजोर-ढुलमुल सरकार है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी जगहंसाई भी हो रही है। भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभर रहा है जो देशद्रोही तत्वों से निपटने के बजाय तरह-तरह के बहाने बनाने में माहिर है।

अफजल के मामले में पहले यह बहाना बनाया जा रहा था कि फांसी की सजा देने से उसे आतंकियों के बीच शहीद जैसा दर्जा मिल जाएगा। अब यह कहा जा रहा है कि ऐसे मामलों के निपटारे की कोई अवधि नहीं। यह लगभग तय है कि हाल-फिलहाल इस बहानेबाजी का अंत नहीं होने जा रहा है। इस पर भी आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए कि जिन नक्सलियों को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है उनके ही समक्ष उड़ीसा सरकार ने घुटने टेक दिए और केंद्र सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ा। यह वह स्थिति है जो देश के शत्रुओं का दुस्साहस बढ़ाएगी। अब इसका अंदेशा और बढ़ गया है कि मुंबई हमले के दौरान रंगे हाथ पकड़े गए हत्यारे कसाब को भी सजा देने में देर होगी। 


हालांकि अभी उसकी फांसी की सजा की पुष्टि उच्चतम न्यायालय से होना शेष है, लेकिन उसका मामला जिस तरह तमाम देरी से हाई कोर्ट तक पहुंचा है उससे यही संकेत मिलता है कि वह कुछ और समय तक जेल की रोटियां तोड़ता रहेगा और उसकी सुरक्षा में करोड़ों रुपये फूंके जाते रहेंगे। कसाब को सजा देने में हो रही देरी को लेकर भारतीय न्यायपालिका की महानता का जो बखान किया जा रहा है उसका कोई औचित्य नहीं। यह शर्मनाक है कि कोई भी इसके लिए तत्पर नजर नहीं आ रहा कि इस खूंखार आतंकी को जल्दी से जल्दी उसके किए की सजा मिले।

*शायद ज़िंदगी बदल रही है**!!*

*शायद ज़िंदगी बदल रही है**!!*



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**जब मैं छोटा था**, **शायद दुनिया*




*बहुत बड़ी हुआ करती थी**..*




*




**मुझे याद है मेरे घर से** "**स्कूल**" **तक*




*का वो रास्ता**, **क्या क्या नहीं था वहां**,*




*चाट के ठेले**, **जलेबी की दुकान**, *




*बर्फ के गोले**, **सब कुछ**,*




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**अब वहां** **"**मोबाइल शॉप**", *




*"**विडियो पार्लर**" **हैं**, *




*फिर भी सब सूना है**..*




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**शायद अब दुनिया सिमट रही है**...**




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*जब मैं छोटा था**, *




*शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं...*




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**मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े**, *




*घंटों उड़ा करता था**, *




*वो लम्बी** "**साइकिल रेस**",




**वो बचपन के खेल**, *




*वो हर शाम थक के चूर हो जाना**,*




*




**अब शाम नहीं होती**, **दिन ढलता है *




*और सीधे रात हो जाती है**.*




*




**शायद वक्त सिमट रहा है**..**




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**जब मैं छोटा था**, *




*शायद दोस्ती *




*बहुत गहरी हुआ करती थी**,*




*




**दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना**, *




*वो दोस्तों के घर का खाना**, *




*वो लड़कियों की बातें**, *




*वो साथ रोना**... *




*अब भी मेरे कई दोस्त हैं**,*




*पर दोस्ती जाने कहाँ है**, *




*जब भी** "traffic signal" **पे मिलते हैं *




*"Hi" **हो जाती है**, *




*और अपने अपने रास्ते चल देते हैं**,*




*




**होली**, **दीवाली**, **जन्मदिन**, *




*नए साल पर बस** SMS **आ जाते हैं**,




**शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं**..**




.*




*.*








*जब मैं छोटा था**, **




**तब खेल भी अजीब हुआ करते थे**,*




*छुपन छुपाई**, **लंगडी टांग**, **




**पोषम पा**, **कट केक**,




**टिप्पी टीपी टाप**.*




*अब **internet, office, **




**से फुर्सत ही नहीं मिलती**..*




*शायद ज़िन्दगी बदल रही है**.*




*.*




*.*




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*जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है**.. **




**जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर **




**बोर्ड पर लिखा होता है**...*




*"**मंजिल तो यही थी**, **




**बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी **




**यहाँ आते आते**"*




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*.*




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*ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है**.*..




*कल की कोई बुनियाद नहीं है*




*और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है.. *




*अब बच गए इस पल में**..*




*तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में **




**हम सिर्फ भाग रहे हैं**..




**कुछ रफ़्तार धीमी करो**,




**मेरे दोस्त**, *




*और इस ज़िंदगी को जियो...**




**खूब जियो मेरे दोस्त**,** **




**और औरों को भी जीने दो..**.*

...तब अंग्रेज, आज कांग्रेस!

...तब अंग्रेज, आज कांग्रेस!

एसएनदेश सावधान हो जाए। एक बार फिर सांप्रदायिक आधार पर देश को बांटने की तैयारी हो रही है। बिल्कुल ब्रिटिश शासकों की तर्ज पर। इस मामले में दु:खद यह कि ताजा प्रयास गुलाम भारत में अंग्रेजों की तरह नहीं, बल्कि आजाद भारत में अपने ही लोगों द्वारा हो रहा है। वह भी, वोट और सिर्फ वोट की राजनीति के लिए। अंग्रेजों ने शासन कायम रखने के लिए वह पाप किया था, आज राजनीतिक दल सत्ता में बने रहने के लिए ऐसा पाप कर रहे हैं। अगर कांग्रेस की दृष्टि में लश्कर-ए-तैयबा से कहीं अधिक खतरनाक कट्टरवादी हिंदू संगठन हैं, तो क्षमा करेंगे, इस दल के नए नेतृत्व को न तो हिंदुस्तान की पहचान है और न ही हिंदुस्तानी सोच की। देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी को प्रस्तुत करनेवाली कांग्रेस दु:खद रूप से स्वयं अपने इतिहास को भूल रही है। भविष्य के लिए लक्ष्य निर्धारित करने की प्रक्रिया में अतीत की याद की जाती है। समझदार अतीत से सबक भी लेते हैं। समझ में नहीं आता कि ऐसे शाश्वत सत्य को कांगे्रस नजरअंदाज क्यों कर रही हैं? पार्टी के नीति निर्धारक इतने नासमझ कैसे हो गए? मैं यह मानने को कतई तैयार नहीं कि केंद्रीय सत्ता पर काबिज पार्टी की कमान मूर्खों की कोई मंडली संभाल रही है।

मैं चाहूंगा कि मेरा आकलन गलत साबित हो। लेकिन फिलहाल यह शब्दांकित करने के लिए विवश हूँ कि कहीं कोई शातिर दिमाग है जो देश के इस अभिभावक दल के कंधों पर बंदूक रख लक्ष्य साध रही है। इस अदृश्य शक्ति की पहचान जरुरी है। इतिहास गवाह है कि व्यापार के नाम पर भारत पहुंचे अंग्रेजों ने अपनी कुटिलता, साजिश और अत्याचार के हथियार से भारत को गुलाम बनाया तथा धर्म संप्रदाय के विष का फैलाव कर फूट डालो और राज करो की नीति अपनाकर हम पर शासन करते रहे।

कोई दो...चार...दस साल नहीं, लगभग 200 वर्षों तक धूर्त अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाए रखा। इस बीच उन्होंने सांप्रदायिक आधार पर समाज को जिस तरह बांटा उसकी परिणति आजादी के साथ देश विभाजन के रूप में हुई, यही नहीं लगभग 10 लाख लोग उस आग की बलि चढ़ गए थे। आजादी के 63 वर्षों बाद भी उसकी तपिश समय-समय पर हमें झुलसा जाती है।

विकिलिक्स के खुलासे के अनुसार, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत को बताया था कि ''लश्कर-ए-तैयबा जैसे इस्लामिक आंतकी संगठनों को कुछ मुसलमानों का समर्थन मिला हुआ है। लेकिन देश को उससे बड़ा खतरा कट्टरपंथी हिंदू संगठनों से है। ये संगठन धार्मिक तनाव व राजनैतिक वैमनस्य पैदा कर रहे हैं।'' ध्यान रहे इसी क्रम में राहुल ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे भाजपा नेताओं द्वारा फैलाए जा रहे तनाव का भी जिक्र किया था। देश में ''भावी प्रधानमंत्री कांग्रेस की नजर में'' की यह सोच तो निंदनीय है ही, आपत्तिजनक भी कि उन्होंने अपनी ऐसी सांप्रदायिक सोच की जानकारी अमेरिका को दी। कांग्रेस की ओर से दिया गया स्पष्टीकरण बचकाना है। राहुल ने सिर्फ हिन्दू संगठनों और भाजपा की चर्चा की है।

इससे तो साफ तौर पर प्रमाणित होता है कि कांग्रेस बिल्कुल ब्रिटिश शासकों की तर्ज पर देश में सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाना चाहती है - धर्म व जाति के आधार पर समाज को बांटने पर तत्पर है। क्या यह देशद्रोही आचरण नहीं। पिछले दिनों मुंबई में 26/11 के शहीद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की शहादत को एक अन्य कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कथित हिंदू सांप्रदायिकता से जोडऩे की कोशिश की थी। इसके पहले राहुल गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना प्रतिबंधित मुस्लिम आतंकी संगठन ''सिमी'' से कर चुके हैं। इस पार्श्‍व में राहुल गांधी या कांग्रेस को संदेह का लाभ भी नहीं दिया जा सकता। राहुल गांधी को ''राहुल बाबा'' निरुपित कर क्षमा करना एक बड़ी भूल होगी। अगर वे सचमुच ना-समझ या भोले हैं, तब यह संदेह और भी प्रगाढ़ हो जाता है कि कहीं कोई अदृश्य ताकत उनका इस्तेमाल कर रही है।

दोनों ही हालत में देश इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। क्योंकि दिग्विजय सिंह के रूप में कांग्रेस के अंदर लंबी हो रही चाटुकारों की पंक्ति 'राहुल सोच' को पार्टी की नीति-सिद्धांत मान आगे बढऩे को उद्दत है। भगवा आतंक और हिंदुवादी भाजपा का मंत्रजाप कर कांग्रेस सिर्फ वोट की राजनीति ही नहीं कर रही, एक और देश विभाजन का मार्ग प्रशस्त कर रही है। इसे रोकना होगा और तत्काल रोकना होगा।

जल्द शुरू होने वाले एक न्यूज़ चैनल के लिए आवश्यकता है !!!!!

जल्द शुरू होने वाले एक न्यूज़ चैनल के लिए आवश्यकता है !!!!!

जल्द ही शुरू होने जा रहे हिन्दी के एक न्यूज़ चैनल के लिए देश के गांव-गांव से लेकर शहरों के गली मोहल्ले तक टीवी रिपोर्टर यानी टीवी पर खबरें देने वाले संवाददाताओं की आवश्यकता है, जो अपने शहर या मोहल्ले में होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग कर सकें। आवेदक के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं है। कोई भी थोड़ा पढा-लिखा आवेदन दे सकता है। लेकिन आवेदक के शहर के अपराधियों से लेकर पुलिसवालों से अच्छे संबंध होने चाहिए, ताकि उसे अपराध जगत की खबरें आसानी से मिल सकें। अगर आवेदक खुद ब्लैकमैलिंग, चोरी, लूट बलात्कार जैसे अपराध में जेल जा चुका है या किसी दुश्मन द्वारा फंसाया जा चुका है तो उसके आवेदन पर तत्काल विचार किया जाएगा। ऐसे आवेदक को अपने ऊपर चल रहे मुकदमों, पुलिस में अपने खिलाफ दर्ज रिपोर्ट, अखबार में अपने खिलाफ छपी खबरों की कतरनें आदि प्रमाण के रूप में भेजनी होंगी। अपने आवेदन के साथ चैनल को हत्या, बलात्कार, लूट, धोखाधड़ी जैसे अपराध करने वालों की सूची, उनके द्वारा किए गए सफल अपराधों की सूची और वे किस अपराध में पारंगत हैं इसका पूरा ब्योरा भेजना होगा, ताकि इस तरह के अपराधों पर चैनल उनसे तत्काल संपर्क कर उनसे इस तरह के अपराध पर विस्तार में चर्चा कर उनकी विशेषज्ञता का फायदा ले सके।

आवेदक को चाहिए कि वो अपने शहर या गांव में होने वाली हर छोटी बड़ी घटना पर नजर ही नहीं रखें, बल्कि किसी भी घटना के होने के तत्काल बाद बढ़ा-चढ़ाकर उसकी खबर दें। किसी खबर को जितनी जल्दी भेजा जाएगा, उस संवाददाता को उतना ही योग्य माना जाएगा। शहर में होने वाली चोरियां, हत्या, बलात्कार, अपहरण, अवैध शराब के अड्डे, किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या मेले में होने वाले फूहड़ नाच-गाने जैसी खबरें प्रमुखता से चैनल पर प्रसारित की जाएंगी। अगर कोई रिपोर्टर साहित्यिक, सांस्कृतिक या धार्मिक रुचियों की खबरें भेजेगा तो ऐसी खबरें कतई स्वीकार नहीं की जाएगी। किसी साहित्यिक आयोजन की बजाय आपके शहर में कोई फिल्मी या टीवी अभिनेत्री किसी ब्यूटी पॉर्लर का शुभारंभ करे, किसी गली मोहल्ले में कहीं कोई फैशन शो हो रहा हो, ऐसी खबरों को प्रमुखता दें।

टीवी चैनलों पर सास बहू के नकली झगड़ों को देखकर लोग अब बोर हो चुके हैं। हमारे द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि लोग अब असली झगड़े देखना चाहते हैं। इसके लिए आप अपने गली मोहल्ले से लेकर आसपास के मोहल्लों में ऐसे परिवारों की सूची बनालें जहां आए दिन सास-बहू, देवरानी-जेठानी ननंद-भौजाई के बीच लड़ाई झगड़े होते हों। इन झगडों को आप सीधे चैनल पर भी प्रसारित कर सकते हैं और अगर आप चाहें तो इन सास बहू को या ननद-भौजाई या देवरानी-जेठानी को अपने स्टूडियो में भी ला सकते हैं। हम इनसे सीधी चर्चा कर इसका सीधा प्रसारण करेंगे, ताकि लोग समझ सकें कि घरों में आखिर ये झगड़ें क्यों होते हैं और इनको कैसे सुलझाया जा सकता है। इनसे बात करने के साथ ही हम देश के जाने माने मनोवैज्ञानिकों से, देश की जानी-मानी सासुओं और बहुओं से भी बात करेंगे। लेकिन यह ध्यान रहे कि आप हर बार अलग अलग मोहल्ले की सास-बहुओं के झगड़ें कवर करें। एक ही मोहल्ले की एक घटना का प्रसारण एक बार ही किया जाएगा। एक ही मोहल्ले से दूसरे परिवार को 'मौका' नहीं दिया जाएगा।

अगर आप सास बहुओं के झगड़ों को कवर नहीं कर सकते हैं तो गली मोहल्ले में केल खेल में लड़ने वाले बच्चों के झगडो़ से फभी अपनी रिपोर्टिंग की शुरुआत कर सकते हैं। बच्चों के लड़ाई-झगड़ों में बड़े भी कूद पड़ते हैं और कई बार बच्चों की लडा़ई महाभारत की लडा़ई को भी मात कर देती है। आप चाहें तो गली मोहल्ले में खेलेन वाले बच्चों को उकसाकर भी उनको आपस में लड़ा सकते हैं और टीवी पर लाईव दिखा सकते हैं। टीवी पर बच्चों की लडा़ई दिखाने के बाद उनके माँ-बाप, मोहल्ले वाले और फिर उनकी जाति और समुदाय वाले भी बीच में कूद जाएंगे और इस तरह हम अपने चैनल पर बार बार यह चेतावनी देते रहेंगे कि यह झगड़ा सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले सकता है। इस तरह आप चाहें तो एक छोटी सी घटना को बड़ी घटना में वदलकर पूरे प्रशासन को और सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकते हैं।

आप चाहें तो ऐसी किसी घटना की रिपोर्टिंग करने के दो-चार दिन पहले बच्चों के आपसी झगड़े को दिखाकर यह चेतावनी दे सकते हैं कि ये झगड़ा कभी भी हिंसक रूप ले सकता है, जाहिर है प्रशासन आपकी इस बात को कतई गंभीरता से नहीं लेगा। इस खबर के प्रसारण के दो चार दिन बाद आप बच्चों को अच्छी तरह भड़काकर उनको लड़ा सकते हैं। इस संबंध में अगर किसी तरह के मार्गदर्शन की जरुरत हो तो तत्काल स्टुडियो से संपर्क कर सकते हैं। शीघ्र ही आने वाले देश के एक सबसे तेज न्यूज़ चैनल के लिए आपराधिक मानसिकता में जीने वाले, अपराधियों और ब्लैकमेलरों से संपर्क रखने वाले होशियार, तेजतर्रार और खबर को सूंघकर पहचान सकने वाले तत्काल आवेदन करें।

न्याय को नकारता चर्च

न्याय को नकारता चर्च

अब तक चर्च संगठन अपने खिलाफ किसी भी न्यायिक प्रशासनिक निर्णय को मानने से इंकार करता रहा है. चर्च कहता रहा है कि जस्टिस नियोगी की रिर्पोट को हम नही मानते, धर्मांतरण विरोधी कानून हमारी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला हैं। डीपी वाधवा आयोग की रिर्पोट झूठ बोलती है। कंधमाल में हुए साप्रदायिक दंगों के बाद बनाए गए जस्टिस एस़सी मोहपात्रा आयोग की रिर्पोट दक्षिणपंथी संगठनों के प्रभाव में बनाई गई लगती है इसलिए यह विचार करने योग्य ही नही है। और अब ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बेटों की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो विद्वान न्यायधीशों द्वारा ग्राहम स्टेन्स के काम-काज और धर्मांतरण पर की गई टिप्पणीयों पर नराजगी जाहिर करते हुए इसे फैसले से हटाने की मांग की जा रही है। चर्च का तर्क है कि इससे कंधमाल के मामलों पर असर पड़ेगा।

भारत का चर्च आज हर उस चीज को नकारने में लगा हुआ है जो उसके काम-काज पर अंगुली उठाती हो। देश भर में मिशनरियों के काम-काज के तरीकों और धर्म-प्रचार को लेकर स्वाल उठते रहे है और कई आयोगों और जांच एजेंसियों ने ईसाई समुदाय और बहूसंख्यकों के बीच बढ़ते तनाव को मिशनरियों की धर्मांतरण जैसी गतिविधियों को जिम्मेवार माना है परन्तु भारतीय चर्च नेता ऐसी रिर्पोटों को सिरे से ही खारिज कर देते है। पर हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बेटों की हत्या के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उसके गंभीर मायने है और चर्च नेताओं को अब आत्म-मंथन की जरुरत है।

ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बेटों की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दारा सिंह को मृत्यु दंड दिए जाने की केन्द्रीय सरकार की मांग को नमंजूर करते हुए उसकी उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा है। दारा सिंह के सहयोगी महेंद्र हेंब्रम को भी उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। अन्य 11 अभियुक्तों को कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया है। केन्द्रीय जांच ब्यूरों सीबीआई ने इस मामले में मृत्यु दंड की मांग की थी। ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो नाबलिग बेटों फिलिप और टिमोथी को ओडिशा के क्योंझर जिले के मनोहरपुर गांव में 22 जनवरी 1999 को भीड़ ने जिंदा जला दिया था। स्टेंन्स पिछले तीन दशकों से कुष्ठ रोगियों के साथ काम कर रहे थे. वे कई सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल थे. इसी के साथ क्षेत्र में उनकी गतिविधियों को लेकर तनाव भी लम्बे समय से बरकरार था क्षेत्र के गैर ईसाइयों का आरोप था कि सामाजिक गतिविधियों की आड़ में वह धर्मांतरण करवा रहे थे।


ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स की हत्या की गंभीरता को देखते हुए एक सप्ताह के भीतर ही केन्द्र सरकार ने मामले की जांच के लिए जस्टिस डी पी वधवा की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन कर दिया था। ओडिशा सरकार ने एक महीने के अंदर स्टेन्स हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। भारतीय चर्च संगठनों और गैर सरकारी सगंठनों ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय तूल देने में कोई कसर बाकी नही रखी। जिस तरह से स्टेन्स और उनके दो नाबालिग बेटों की हत्या की गई थी मानवता में विश्वास रखने वाला कोई भी व्यक्ति इसे जायज नही ठहरा सकता। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक स्टेन्स ने कार से निकलकर भागने की कोशिश की लेकिन भीड़ ने उसे भागने नही दिया। और पिता-पुत्रों को जिंदा ही जला दिया।


जस्टिस पी सतशिवम और जस्टिस बीएस चौहान की बेंच ने सजा सुनाते हुए कहा कि फंासी की सजा ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ मामले में दी जाती है। और यह प्रत्येक मामले में तथ्यों और हालात पर निर्भर करती है। मौजूदा मामले में जुर्म भले ही कड़ी भर्त्सना के योग्य है। फिर भी यह दुर्लभत्म’ मामले की श्रेणी में नही आता है। अतः इसमें फांसी नही दी जा सकती। विद्ववान न्यायाधीशों ने अपने फैसले में यह भी कहा कि लोग ग्राहम स्टेन्स को सबक सिखाना चाहते थे। क्योंकि वह उनके क्षेत्र में धर्मांतरण के काम में जुटा हुआ था।


सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स की हत्या पर फैसला सुनाते हुए कहा गया कि किसी भी व्यक्ति की आस्था और और विश्वास में हस्तक्षेप करना और इसके लिए बल का उपयोग करना, उतेजना का प्रयाग करना, लालच का प्रयोग करना, या किसी को यह झूठा विश्वास दिलावना की उनका धर्म दूसरे से अच्छा है और ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करते हुए किसी व्यक्ति का धर्मातरंण करना (धर्म बदल देना) किसी भी आधार पर न्यायसंगत नही कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के धर्मांतरण से हमारे समाज की उस संरचना पर चोट होती है जिसकी रचना संविधान निर्माताओं ने की थी। विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि हम उम्मीद करते है कि महात्मा गांधी का जो स्वप्न था कि धर्म राष्ट्र के विकास में एक सकारात्मक भूमिका निभाएगा वो पूरा होगा...किसी की आस्था को जबरदस्ती बदलना या फिर यह दलील देना कि एक धर्म दूसरे से बेहतर है उचित नही है।


अगर चर्च नेता चाहें तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मार्गदर्शक बन सकता है। चर्च खुद भी यह जानता है कि उसके धर्म प्रचार करने और ईसाइयत को फैलाने का क्या तरीका है? आज मणिपुर, नागालैड, आसम आदि राज्यों में मिशनरियों द्वारा अपना संख्याबल बढ़ाने के नाम पर खूनी खेल खेला जा रहा है। क्षेत्र के एक कैथोलिक बिशप ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ में जाकर -बैपटिस्ट मिशनरियों से कैथोलिक ईसाइयों की रक्षा करने की गुहार लगा चुके है। गैर ईसाइयों की बात न भी करे तो ईसाई मिशनरियों के अंदर ही अपना संख्याबल बढ़ाने की मारामारी चलती रहती है। हालही में मध्य प्रदेश के कैथोलिक और कुछ गैर कैथोलिक चर्चो ने तय किया है कि वह ‘भेड़-चोरी’ को रोकेगे और दूसरे मिशनरियों के सदस्यों को अपने साथ नही मिलायेगे।


आज चर्च का पूरा जोर अपना साम्राज्यवाद बढ़ाने पर लगा हुआ है इस कारण देश के कई राज्यों में ईसाइयों एवं बहुसंख्यक हिन्दुओं के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। धर्मांतरण की गतिविधियों के चलते करोड़ों अनुसूचित जातियों से ईसाई बने लोगों का जीवन चर्च के अंदर दायनीय हो गया है। चर्च नेता उन्हें अपने ढांचे में अधिकार देने के बदले सरकार से उन्हें पुनः अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने की मांग कर रहे है। धर्मांतरित लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के बदले भारतीय चर्च तेजी से अपनी संपदा और संख्या को बढ़ता जा रहा है। चर्च लगातार यह दावा भी करता जा रहा है कि वह देश में लाखों सेवा कार्य चला रहा है पर उसे इसका भी उतर ढूढंना होगा कि सेवा कार्य चलाने के बाबजूद भारतीयों के एक बड़े हिस्से में उसके प्रति इतनी नफरत क्यों है कि 30 सालों तक सेवा कार्य चलाने वाले ग्राहम स्टेन्स को एक भीड़ जिंदा जला देती है और उसके धर्म-प्रचारकों के साथ भी टकराव होता रहता है। ऐसा क्यों हो रहा है इसका उतर तो चर्च को ही ढूंढना होगा।

Monday 18 April 2011

क्या कोई राज्यपाल बन जाने से कोई व्यक्ति भगवान बन जाता है ??

क्या कोई राज्यपाल बन जाने से कोई व्यक्ति  भगवान बन जाता है ??

मित्रो अन्ना हजारे ने जिस लोकपाल के लिए अनशन किया था उसमे सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी की पुलिस या कोई अन्य जाच एजेंसिया किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति से बिना किसी की अनुमति लिए पूछताछ कर सकती है ..  

नेताओ ने कानून को अपनी सुबिधा के अनुसार ही बनाया है .. जैसे किसी मंत्री ,बिधायक , सांसद ,राज्यपाल और राष्ट्रपति से पुलिस या कोई भी अन्य जाँच एजेंसिया बिना अनुमति के पूछताछ नहीं कर सकती .. और तो और राष्ट्रपति  पद पैर बैठे व्यक्ति से तो बिना उसके इस्तीफा दिए पूछताछ नहीं सो सकता .. चाहे इनका गुनाह कितना भी संगीन क्यों न हो ..
लेकिन क्यों ?? क्या ये इन्सान नहीं होते ? क्या इनके अन्दर मानवीय कमजोरिया जैसे काम [sex ], क्रोध [anger ], मद [igo ] और लोभ [greed ] नहीं होती ??

अभी ताजा मामला पांडिचेरी के राज्यपाल इक़बाल सिंह का है . ये जनाब गाँधी नेहरु परिवार के बहुत ही करीबी माने जाते है . इन्होने अपने जीवन में कभी भी कोई चुनाव नहीं जीता फिर भी ये जनाब मैडम की कृपा से कई बार राज्य सभा के सांसद बने . फिर कार्यकाल पूरा होने पर मैडम ने इनकी वफ़ादारी से खुश होकर पांडिचेरी का राज्यपाल बना दिया .. ये जब सांसद थे तब इनकी ही सिपरिशी चिठ्ठी पर हसन अली और उसकी पत्नी का पासपोर्ट बना था .. आखिर इनका हसन अली का पासपोर्ट बनवाने में क्यों रूचि थी ? क्या सोनिया गाँधी के कहने पर इन्होने सिपरिशी चिठी लिखी ? इनसे ED और सीबीआई सहित कई जाँच एजेंसिया पूछताछ करना चाहती है लेकिन ये जनाब तो "लाट साहब " है इनसे बिना राष्ट्रपति की मंजूरी से पूछताछ नहीं हो सकती .. और मंजूरी की ये प्रक्रिया बहुत ही जटिल है , पहले जाँच एजेंसी को गृह मंत्रालय में निवेदन करनी होती है फिर गृह मंत्रालय उस निवेदन को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजता है . इसमें कई महीने या कई साल लग जाते है और राष्ट्रपति चाहे तो माना भी कर सकते है ..

 बहुत से मित्रो ने मेरे से कहा था की क्या अन्ना हजारे के अनशन से भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा ? अन्ना हजारे के अनशन से भ्रष्टाचार खत्म हो या न हो लेकिन किसी भी व्यक्ति से पूछताछ की अनुमति की गन्दी और सामन्तवादी प्रथा जरूर खत्म होगी ... आमीन ....

कांग्रेस के "खुनी पंजे " की कहानी , कांग्रेस की जुबानी !!


पढिये कांग्रेस के खुनी पंजे  कहानी , कांग्रेस की जुबानी

मैं कांग्रेस हूँ.मेरा जन्म २८ दिसंबर,१८८५ को तेजपाल संस्कृत विद्यालय,मुम्बई में हुआ.मेरे पिता एक अंग्रेज ए.ओ.ह्युम थे जो एक नौकरशाह थे.तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने मेरे जन्म में अच्छी-खासी अभिरुचि ली थी.मेरी माता थी अंग्रेजों का भय कि देश में फ़िर से १८५७ जैसी क्रांति न भड़क उठे.उन्होंने मुझे इसलिए जन्म दिया ताकि उन्हें मालूम हो सके कि गुलाम भारत के लोग क्या चाहते हैं.मेरे जन्म के समय मात्र ७२ लोग मेरे परिवार में थे.लेकिन १८८८ आते-आते मेरे परिवार में इतने लोग जुड़ गए कि अंग्रेज डर गए और नौकरशाहों के मेरे अधिवेशन में शामिल होने पर रोक लगा दी गई.शुरू में मेरे परिवार के लोग डरे-सहमे थे और उनकी भाषा याचकों की भाषा थी.तब मैं भी बच्ची थी.२५ साल की तरुनाई आते-आते मेरे अन्दर इतना बल आ चुका था मैं अधिकार के साथ अंग्रेजों के समक्ष अपनी मांगे रख सकूँ.मेरे एक पुत्र तिलक ने तो अंग्रेजों से साफ-साफ कह दिया कि स्वाधीनता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा.मेरे चाचा दादा भाई नौरोजी ने अंग्रेजों की देश को लूटने की नीति को समझा और देशवासियों को भी समझाया.अंग्रेज मेरे बढती ताकत से डरने लगे और उन्होंने सांप्रदायिक कार्ड खेलना शुरू कर दिया.उनके ही इशारों पर १९०६ में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई.उन्होंने बंगाल को भी सांप्रदायिक आधार पर १९०५ में बाँटना चाहा.मैंने पूरी ताकत से इस विभाजन का विरोध किया और उन्हें झुका भी दिया.लेकिन इसी बीच १९०७ में अंग्रेजों के बहकावे में आकर उदारवादियों ने कांग्रेस से अपने उग्रपंथी भाईयों को बाहर निकाल दिया.


१९१५ तक मैं दो भागों में बँटी रही और कुछ खास नहीं कर सकी.१९१५ में मेरा सबसे महान बेटा मेरे परिवार में शामिल हुआ.उसका नाम था मोहन दास करमचंद गांधी.सत्य और अहिंसा उसके अस्त्र-शस्त्र थे.उसने मुझे शक्तिशाली बनाया लेकिन १९१६ में उसने लखनऊ में मुश्लिम लीग से समझौता कर उसे मान्यता भी प्रदान कर दी.१९२० में असहयोग आन्दोलन मेरे ही झंडे तले प्रारंभ किया गया.लेकिन इसके हिंसक हो जाने और मुस्लिम लीग द्वारा मुझे धोखा देने के कारण आन्दोलन वापस लेना पड़ा.१९२३ में मेरे परिवार के कुछ लोगों ने गांधी की सहमति से स्वराज पार्टी की स्थापना की और चुनावों में भाग लिया.उद्देश्य था केंद्रीय विधान सभा और प्रांतीय विधान परिषदों में घुसकर सरकार के कुत्सित इरादों को बेनकाब करना.बाद में इनमें से कई सत्ता सुख के लिए सरकार के सहयोगी बन गए.गांधी को मर्मान्तक पीड़ा हुई और उसने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की घोषणा कर दी.हालांकि उसने इससे पहले अंग्रेजों से बातचीत का भी प्रयास किया.अंग्रेज आन्दोलन को मिल रहे व्यापक जनसमर्थन से डर गए और १६ अगस्त,१९३२ को सांप्रदायिक एवार्ड की घोषणा कर दी.उनका इरादा दलितों को बांकी हिन्दुओं से अलग करने का था.इससे पहले वे १९०९ में मुसलमानों को पृथक निर्वाचक मंडल के द्वारा हिन्दुओं से अलग करने का प्रयास कर चुके थे और इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली थी.गांधी उनकी चाल को समझ गया और अनशन पर बैठ गया.२५ सितम्बर,१९३२ को दलित नेता अम्बेदकर मान गए और पूना समझौता के द्वारा अंग्रेजों के इस कुत्सित प्रयास को निरस्त कर दिया गया.लेकिन अब गांधी की मेरे संगठन पर पकड़ कमजोर पड़ गई थी

.निराश होकर उसने १९३४ में मेरी सदस्यता का परित्याग कर दिया.मेरे ऊपर अब नेहरु,प्रसाद और पटेल की तिकड़ी का शासन था.गांधी अब सामाजिक कार्यों में सक्रिय हो गया.इसी बीच १९३७ के चुनावों में मुझे अपार सफलता हाथ लगी लेकिन नेहरु ने चुनाव हार चुकी लीग को शासन में भागीदारी नहीं देकर बहुत बड़ी गलती कर दी.जोश में गलती हो ही जाया करती है.लीग के नेता जिन्ना ने मेरे खिलाफ मुसलमानों को यह कहकर भड़काना शुरू कर दिया कि आजाद भारत में भी हिन्दू राज स्थापित हो जाएगा.२४ मार्च,१९४० को लाहौर में लीग ने पहली बार पाकिस्तान नाम के अलग देश की मांग की.उधर यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ चुका था.गांधी ने मेरे सामने भारत छोडो आन्दोलन छेड़ने का प्रस्ताव रखा.जब मेरे युवा पुत्रों ने आनाकानी की तो गांधी ने धमकी देते हुए कहा कि मैं साबरमती तट के बालू से कांग्रेस से भी बड़ा संगठन खड़ा कर दूंगा.गांधी कांग्रेस सरकारों में पनप रहे भ्रष्टाचार से भी क्षुब्ध थे.मेरी सभी सरकारों ने आन्दोलन की घोषणा के साथ ही इस्तीफा दे दिया.कुछ भागों को छोड़कर कुछ दिनों के लिए पूरे देश में अंग्रेजी शासन समाप्त हो गया.लेकिन अंग्रेज सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी को आसानी से आज़ाद कैसे कर देते?पूरे देश में आन्दोलन को बन्दूक के बल पर दबा दिया गया.पूरा भारत एक जेलखाने में बदल गया.परिणामस्वरूप आन्दोलन कमजोर पड़ गया.अब लीग मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र से कम पर मानने को तैयार नहीं था.उसने १६ अगस्त,१९४६ को हिन्दुओं पर हमला शुरू कर दिया.पूरे देश में भीषण दंगे भड़क उठे.लाखों लोग मारे गए और गांधी को भी भरे मन से विभाजन के लिए तैयार होना पड़ा.मैं इसके लिए सिर्फ लीग को ही दोषी नहीं मानती १९१६ में गांधी और १९३७ में नेहरु द्वारा की गई गलतियाँ भी कम गंभीर नहीं थीं.१५ अगस्त को देश की आजादी का दिन निर्धारित हो गया.तब तक गांधी मेरे संगठन में उभर रही गलत प्रवृत्तियों से सशंकित हो चुके थे और इसलिए कि कोई जनता में मेरे प्रति बनी हुई सदाशयता बेजा लाभ नहीं उठाया जा सके उसने मेरी समाप्ति का प्रस्ताव रखा.लेकिन नेहरु,प्रसाद और पटेल चुनावों में मेरी स्वर्णिम योगदान से लाभ उठाना चाहते थे सो उन्होंने उनके आग्रह तो निष्ठुरता से ठुकरा दिया.

चुनावों के बाद भी मेरी बागडोर नेहरु के हाथों में थी.उसने कश्मीर और तिब्बत में कई गलतियाँ की.उसने व्यापक पैमाने पर निर्माण कार्य कराया.ठेकेदारों के वारे-न्यारे हो गए.पूरे देश में भ्रष्टाचार पनपने लगा लेकिन अभी वह डरा-सहमा था.नेहरु एक स्वप्न-द्रष्टा था और सपने को सच मान लेने के कारण कश्मीर में एक के बाद एक कई गलतियाँ करता गया,१९६२ में उसे चीन के आगे मुंह की खानी पड़ी.१९६४ में उसके देहावसान के बाद नाटे कद का लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बना.गजब का जीवट था उसमें.सीमित साधनों से उसने १९६५ में पाकिस्तान को धूल चटा दी.तब मेरे संगठन में भ्रष्टाचार का घुन लगना शुरू तो हो गया था लेकिन स्थिति नियंत्रण में थी.१९५९ में जब जवाहरलाल नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी जो घोर महत्वकांक्षी महिला थी मेरी अध्यक्ष बनी तब मैं इस आशंका से सिहर उठी कि मेरे ऊपर एक ही परिवार का वर्चस्व कायम हो जानेवाला तो नहीं है.लेकिन एक साल बाद ही आलोचनाओं से घबराकर नेहरु ने नीलम संजीव रेड्डी को मेरा अध्यक्ष बनवा दिया.१९६६ में मेरे ईमानदार पुत्र लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हो गया.उसकी मृत्यु स्वाभाविक थी या हत्या आज तक रहस्यों के घेरे में है और शायद आगे भी रहेगी.इंदिरा को कांग्रेसी बेबी डौल समझ रहे थे और उन्हें लग रहा था कि इसके द्वारा उनका हित आसानी से सध सकेगा.इसलिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष कामराज समेत बहुमत ने इंदिरा का साथ दिया और इंदिरा मोरारजी भाई को पछाड़कर प्रधानमंत्री बन बैठी.अगले कुछ सालों में ही उसने तमाम तिकड़मों का इस्तेमाल कर पार्टी संगठन पर भी पकड़ मजबूत कर ली.उसकी तानाशाही प्रवृत्ति से नाराज होकर मेरे परिवार के कई लोग मुझसे अलग हो गए और मेरा विभाजन हो गया.इसी बीच उसने गरीबी हटाने के वादे के साथ १९७१ का चुनाव लड़ा जीत भी हासिल की.आज तलक कितनी सरकारें बदल गईं लेकिन यह नारा और वादा बना हुआ है.

१९७१ में पाकिस्तान पर जीत के बाद वह पूरी तरह से निरंकुश हो गई.इस चुनाव में भारी पैमाने पर धांधली की गई थी और स्वयं इंदिरा गांधी के निर्वाचन पर भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा चल रहा था.१२ जून,१९७५ को न्यायालय ने इंदिरा के खिलाफ निर्णय दिया जिससे वह घबरा गई और २६ जून,१९७५ को देश में आतंरिक आपातकाल लगा दिया गया.सारे मौलिक अधिकार निरस्त कर दिए गए और मानवाधिकारों की जमकर धज्जियाँ उडाई गई.ऐसे समय में मेरा ही एक वृद्ध बेटा बीमार रहने के बावजूद सामने आया देश के नवजात लोकतंत्र को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी.पूरे देश में आपातकाल का व्यापक विरोध हुआ.१९७७ में जब चुनाव हुए तो मुझे इंदिरा की गलतियों का खामियाजा भुगतना पड़ा और मैं पहली बार सत्ता से बाहर हो गई.अब मैं आजादी के पहले वाली कांग्रेस नहीं रह गई थी.मेरे नाम पर अनगिनत पाप किए जा रहे थे,देश को बेचा जा रहा था.१९८० में विपक्षी सरकार की गलतियों की वजह से मेरी सत्ता में वापसी हुई.लेकिन इंदिरा के रंग-ढंग में कोई खास बदलाव नहीं आया.१९८४ में अतीत में की गई गलतियों और पंजाब में भिन्दरवाले को दिए गए समर्थन के कारण इंदिरा की हत्या कर दी गई.लेकिन अब मेरे ऊपर उसके परिवार का वर्चस्व इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि वह मेरा पर्याय बन गया था.यानी कांग्रेस मतलब गांधी-नेहरु परिवार.१९७५ में मेरे अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा भी था कि इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया.३१ अक्तूबर,१९८४ को इंदिरा का बेटा प्रधानमंत्री बना और बाद में माँ की जगह अध्यक्ष भी.हत्या के समय इंदिरा मेरी अध्यक्ष भी थी.राजीव एक भोला-भाला इन्सान था.भारतीय राजनीति की उसे समझ ही नहीं थी.वह अपने चापलूसों के कहने पर चलने लगा और श्रीलंका में अपने ही देश से गए तमिल विद्रोहियों के खिलाफ सेना भेजने की गलती कर दी.उस पर भ्रष्टाचार सम्बन्धी भी कई आरोप लगे और १९८९ के चुनाव में मैं एक बार फ़िर सत्ता से बाहर हो गई.२ सालों तक मेरे विरोधियों ने किसी तरह शासन चलाया.१९९१ के मध्यावधि चुनाव के समय मेरी सत्ता में वापसी निश्चित लग रही थी.मैं बहुत खुश थी क्योंकि राजीव अब परिपक्व नेता की तरह व्यवहार कर रहे थे.लेकिन २१ मई,१९९१ को तमिल विद्रोहियों ने उसकी हत्या कर दी.पी.वी.नरसिंह राव मेरी जीत के बाद प्रधानमंत्री बना.वह एक अनुभवी और विद्वान नेता था लेकिन भ्रष्ट भी था.उसका ज्यादातर समय न्यायालय में भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब देने में गुजरता था.उसकी काली करतूतों के कारण मुझे एक बार फ़िर १९९६ में हार का सामना करना पड़ा और फ़िर से विपक्षी गठबंधन सत्ता में आ गया जिसे बाहर से मेरा ही समर्थन प्राप्त था.१९९८ में हुए मध्यावधि चुनाव करवाना पड़ा जिसमें फ़िर से मेरी हार हुई.अब भारतीय इतिहास में तीसरी बार बिना मेरे समर्थन के सरकार बनी.चुनाव के तत्काल बाद राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी को मेरे तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी को अपमानित तरीके से हटाते हुए अध्यक्ष बना दिया गया.मेरे वरिष्ठ पुत्रों का मानना था कि बिना इंदिरा परिवार के नेतृत्व के मैं सत्ता में नहीं आ सकती.कितनी गलत सोंच थी!सत्ता काम के आधार पर भी मिल सकती है,नाम कोई जरुरी नहीं होता.विपक्षी एन.डी.ए. गठबंधन ने इस दौरान (१९९८-२००४) देश को शानदार नेतृत्व और शासन दिया.लेकिन उसके शासन में आम आदमी अपने को उपेक्षित महसूस करने लगा था.किसानों द्वारा आत्महत्या की ख़बरें सामने आने लगी थीं.सोनिया ने मौके को भुनाया और आम आदमी से आम आदमी की सरकार बनाने का आह्वान किया.२००४ में मेरी फ़िर से सत्ता में वापसी हुई.लेकिन इस बार सोनिया का उद्देश्य सिर्फ सत्ता में बने रहना था,देश हित से उसका कुछ भी लेना-देना नहीं था.देश में महंगाई बढ़ने लगी,भ्रष्टाचार चरम सीमा तक पहुँचने लगा.आज ६ सालों में मैं सत्ता में हूँ.मनमोहन सिंह नाम मात्र के प्रधानमंत्री बने हुए हैं.वास्तविक सत्ता सोनिया के हाथों में है.किसान अब भी आत्महत्या कर रहे हैं.गोदामों में अनाज सड़ रहे हैं और देश में अन्न-उत्पादन गिर रहा है.चपरासी से लेकर सचिव तक और वार्ड आयुक्त से लेकर मंत्री तक भ्रष्ट है और डंके की चोट पर भ्रष्ट है.मेरी सरकार के २००९ में दोबारा सत्ता सँभालने के बाद हर महीने कोई-न-कोई घोटाला सामने आ रहा है.हद तो यह है कि कोई मंत्री इस्तीफा भी नहीं दे रहा.

उच्चतम न्यायालय को टिपण्णी करनी पड़ रही है कि ऐसे मंत्री को हटाया क्यों नहीं जा रहा?साथ ही उसने यह भी कहा है कि जब सरकार भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास नहीं कर रही तो इसे वैधानिक मान्यता क्यों नहीं दे देती?देश के एक तिहाई हिस्से पर लोकतंत्र विरोधी नक्सलियों ने कब्ज़ा कर लिया है.मेरे पुत्र नेहरु और राजीव द्वारा की गई गलतियाँ कश्मीर में नासूर बन गई हैं.अब फ़िर से इतिहास से सबक नहीं लेते हुए कश्मीर मे मेरी सरकार गलतियाँ करने पर आमादा है.मेरे भीतर अब आतंरिक लोकतंत्र भी नहीं रहा.सोनिया ही सारे फैसले ले रही है.२०२० तक देश को विकसित भारत बनाने का वाजपेयी का सपना पृष्ठभूमि में जा चुका है.अब तो मेरे घर के लोग २० सालों तक मेरे नाम पर सिर्फ सत्ता में बने रहने के प्रयास में लगे हैं.चीन से मेरे प्यारे देश को प्रतियोगिता का तो सामना करना पड़ ही रहा है,खतरा भी उत्पन्न हो गया है.कोई स्वतंत्र नीति अपनाने के बदले मेरी सरकार अमेरिका की गोद में जा बैठी है और भारत अमेरिका का ५१वां राज्य बनकर रह गया है.देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पुष्टि की जाने लगी है.मेरी अध्यक्ष पर भी वर्धा रैली के समय मुख्यमंत्री से पैसा लेने के आरोप लगे हैं.


आज मै हिन्दुओ की दुश्मन बन चुकीं हूँ | मेरा मकसद भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है | मेरी वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने इस बारे मे पहला कदम बढाते हुए हिन्दुओ को भारत मे दोगले दर्जे का नागरिक बनाने के लिए एक काला कानून बनाया जिसे "साम्प्रदायिकता हिंसा निवारण बिल" कहते है | असल मे ये हिंदू निवारण बिल है |

कभी मेरे अध्यक्ष भारत की गुलामी और दुर्दशा पर रोते थे और आज मेरी अध्यक्ष सोनिया गाँधी आतंकवादियों के मरने पर छाती पीट पीट कर दहाडे मारते हुए रोती है | क्योकि उनको रोते हुए इस देश का कानून मंत्री ने देखा है और भारत का कानूनमंत्री तो कभी झूठ नही बोल सकता |

आज मै शर्मिदा हूँ कि कभी मेरा सदस्य अम्बेडकर जैसा विद्वान इस देश का कानून मंत्री हुआ करता था और आज उसी पद पर एक ऐसा इंसान बैठा है जिसका मकसद सिर्फ मुसलमानों को आरक्षण दिलाना है |
पार्टी फंड लबालब भरा हुआ है और पदाधिकारियों को महँगी गाड़ियाँ बांटी जा रही है.बिहार के चुनाव में जनता के बीच भी मेरे परिवार द्वारा पैसे बांटने के मामले सामने आ रहे हैं.
देश रसातल की ओर जा रहा है और वह भी मेरे नेतृत्व में.मैं शर्मिंदा हूँ लेकिन मेरी कोई नहीं सुन रहा.

काश आजादी के तत्काल बाद गांधी की सलाह पर अमल करते हुए मुझे मृत्यु-दान दे दिया गया

“आप सोनिया गाँधी को कितना जानते हैं”

“आप सोनिया गाँधी को कितना जानते हैं”

“आप सोनिया गाँधी को कितना जानते हैं” की पहली कडी़, अंग्रेजी में इसके मूल लेखक हैं एस.गुरुमूर्ति और यह लेख दिनांक १७ अप्रैल २००४ को “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में – अनमास्किंग सोनिया गाँधी- शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ।

भारत की खुफ़िया एजेंसी “रॉ”, जिसका गठन सन १९६८ में हुआ, ने विभिन्न देशों की गुप्तचर एजेंसियों जैसे अमेरिका की सीआईए, रूस की केजीबी, इसराईल की मोस्साद और फ़्रांस तथा जर्मनी में अपने पेशेगत संपर्क बढाये और एक नेटवर्क खडा़ किया । इन खुफ़िया एजेंसियों के अपने-अपने सूत्र थे और वे आतंकवाद, घुसपैठ और चीन के खतरे के बारे में सूचनायें आदान-प्रदान करने में सक्षम थीं । लेकिन “रॉ” ने इटली की खुफ़िया एजेंसियों से इस प्रकार का कोई सहयोग या गठजोड़ नहीं किया था, क्योंकि “रॉ” के वरिष्ठ जासूसों का मानना था कि इटालियन खुफ़िया एजेंसियाँ भरोसे के काबिल नहीं हैं और उनकी सूचनायें देने की क्षमता पर भी उन्हें संदेह था । सक्रिय राजनीति में राजीव गाँधी का प्रवेश हुआ १९८० में संजय की मौत के बाद । “रॉ” की नियमित “ब्रीफ़िंग” में राजीव गाँधी भी भाग लेने लगे थे (“ब्रीफ़िंग” कहते हैं उस संक्षिप्त बैठक को जिसमें रॉ या सीबीआई या पुलिस या कोई और सरकारी संस्था प्रधानमन्त्री या गृहमंत्री को अपनी रिपोर्ट देती है), जबकि राजीव गाँधी सरकार में किसी पद पर नहीं थे, तब वे सिर्फ़ काँग्रेस महासचिव थे । राजीव गाँधी चाहते थे कि अरुण नेहरू और अरुण सिंह भी रॉ की इन बैठकों में शामिल हों । रॉ के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने दबी जुबान में इस बात का विरोध किया था चूँकि राजीव गाँधी किसी अधिकृत पद पर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गाँधी ने रॉ से उन्हें इसकी अनुमति देने को कह दिया था, फ़िर भी रॉ ने इंदिरा जी को स्पष्ट कर दिया था कि इन लोगों के नाम इस ब्रीफ़िंग के रिकॉर्ड में नहीं आएंगे । उन बैठकों के दौरान राजीव गाँधी सतत रॉ पर दबाव डालते रहते कि वे इटालियन खुफ़िया एजेंसियों से भी गठजोड़ करें, राजीव गाँधी ऐसा क्यों चाहते थे ? या क्या वे इतने अनुभवी थे कि उन्हें इटालियन एजेंसियों के महत्व का पता भी चल गया था ? ऐसा कुछ नहीं था, इसके पीछे एकमात्र कारण थी सोनिया गाँधी । राजीव गाँधी ने सोनिया से सन १९६८ में विवाह किया था, और हालांकि रॉ मानती थी कि इटली की एजेंसी से गठजोड़ सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है, राजीव लगातार दबाव बनाये रहे । अन्ततः दस वर्षों से भी अधिक समय के पश्चात रॉ ने इटली की खुफ़िया संस्था से गठजोड़ कर लिया । क्या आप जानते हैं कि रॉ और इटली के जासूसों की पहली आधिकारिक मीटिंग की व्यवस्था किसने की ? जी हाँ, सोनिया गाँधी ने ।

सीधी सी बात यह है कि वह इटली के जासूसों के निरन्तर सम्पर्क में थीं । एक मासूम गृहिणी, जो राजनैतिक और प्रशासनिक मामलों से अलिप्त हो और उसके इटालियन खुफ़िया एजेन्सियों के गहरे सम्बन्ध हों यह सोचने वाली बात है, वह भी तब जबकि उन्होंने भारत की नागरिकता नहीं ली थी (वह उन्होंने बहुत बाद में ली) । प्रधानमंत्री के घर में रहते हुए, जबकि राजीव खुद सरकार में नहीं थे । हो सकता है कि रॉ इसी कारण से इटली की खुफ़िया एजेंसी से गठजोड़ करने मे कतरा रहा हो, क्योंकि ऐसे किसी भी सहयोग के बाद उन जासूसों की पहुँच सिर्फ़ रॉ तक न रहकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हो सकती थी । जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब सुरक्षा अधिकारियों ने इंदिरा गाँधी को बुलेटप्रूफ़ कार में चलने की सलाह दी, इंदिरा गाँधी ने अम्बेसेडर कारों को बुलेटप्रूफ़ बनवाने के लिये कहा, उस वक्त भारत में बुलेटप्रूफ़ कारें नहीं बनती थीं इसलिये एक जर्मन कम्पनी को कारों को बुलेटप्रूफ़ बनाने का ठेका दिया गया । जानना चाहते हैं उस ठेके का बिचौलिया कौन था, वाल्टर विंसी, सोनिया गाँधी की बहन अनुष्का का पति ! रॉ को हमेशा यह शक था कि उसे इसमें कमीशन मिला था, लेकिन कमीशन से भी गंभीर बात यह थी कि इतना महत्वपूर्ण सुरक्षा सम्बन्धी कार्य उसके मार्फ़त दिया गया । इटली का प्रभाव सोनिया दिल्ली तक लाने में कामयाब रही थीं, जबकि इंदिरा गाँधी जीवित थीं । दो साल बाद १९८६ में ये वही वाल्टर विंसी महाशय थे जिन्हें एसपीजी को इटालियन सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रशिक्षण दिये जाने का ठेका मिला, और आश्चर्य की बात यह कि इस सौदे के लिये उन्होंने नगद भुगतान की मांग की और वह सरकारी तौर पर किया भी गया । 

यह नगद भुगतान पहले एक रॉ अधिकारी के हाथों जिनेवा (स्विटजरलैण्ड) पहुँचाया गया लेकिन वाल्टर विंसी ने जिनेवा में पैसा लेने से मना कर दिया और रॉ के अधिकारी से कहा कि वह ये पैसा मिलान (इटली) में चाहता है, विंसी ने उस अधिकारी को कहा कि वह स्विस और इटली के कस्टम से उन्हें आराम से निकलवा देगा और यह “कैश” चेक नहीं किया जायेगा । रॉ के उस अधिकारी ने उसकी बात नहीं मानी और अंततः वह भुगतान इटली में भारतीय दूतावास के जरिये किया गया । इस नगद भुगतान के बारे में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बी.जी.देशमुख ने अपनी हालिया किताब में उल्लेख किया है, हालांकि वह तथाकथित ट्रेनिंग घोर असफ़ल रही और सारा पैसा लगभग व्यर्थ चला गया । इटली के जो सुरक्षा अधिकारी भारतीय एसपीजी कमांडो को प्रशिक्षण देने आये थे उनका रवैया जवानों के प्रति बेहद रूखा था, एक जवान को तो उस दौरान थप्पड़ भी मारा गया । रॉ अधिकारियों ने यह बात राजीव गाँधी को बताई और कहा कि इस व्यवहार से सुरक्षा बलों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और उनकी खुद की सुरक्षा व्यवस्था भी ऐसे में खतरे में पड़ सकती है, घबराये हुए राजीव ने तत्काल वह ट्रेनिंग रुकवा दी,लेकिन वह ट्रेनिंग का ठेका लेने वाले विंसी को तब तक भुगतान किया जा चुका था । राजीव गाँधी की हत्या के बाद तो सोनिया गाँधी पूरी तरह से इटालियन और पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों पर भरोसा करने लगीं, खासकर उस वक्त जब राहुल और प्रियंका यूरोप घूमने जाते थे । सन १९८५ में जब राजीव सपरिवार फ़्रांस गये थे तब रॉ का एक अधिकारी जो फ़्रेंच बोलना जानता था, उनके साथ भेजागया था, ताकि फ़्रेंच सुरक्षा अधिकारियों से तालमेल बनाया जा सके । लियोन (फ़्रांस) में उस वक्त एसपीजी अधिकारियों में हड़कम्प मच गया जब पता चला कि राहुल और प्रियंका गुम हो गये हैं । भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को विंसी ने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है, दोनों बच्चे जोस वाल्डेमारो के साथ हैं जो कि सोनिया की एक और बहन नादिया के पति हैं । विंसी ने उन्हें यह भी कहा कि वे वाल्डेमारो के साथ स्पेन चले जायेंगे जहाँ स्पेनिश अधिकारी उनकी सुरक्षा संभाल लेंगे । भारतीय सुरक्षा अधिकारी यह जानकर अचंभित रह गये कि न केवल स्पेनिश बल्कि इटालियन सुरक्षा अधिकारी उनके स्पेन जाने के कार्यक्रम के बारे में जानते थे । जाहिर है कि एक तो सोनिया गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के अहसानों के तले दबना नहीं चाहती थीं, और वे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों पर विश्वास नहीं करती थीं । इसका एक और सबूत इससे भी मिलता है कि एक बार सन १९८६ में जिनेवा स्थित रॉ के अधिकारी को वहाँ के पुलिस कमिश्नर जैक कुन्जी़ ने बताया कि जिनेवा से दो वीआईपी बच्चे इटली सुरक्षित पहुँच चुके हैं, खिसियाये हुए रॉ अधिकारी को तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था ।

 जिनेवा का पुलिस कमिश्नर उस रॉ अधिकारी का मित्र था, लेकिन यह अलग से बताने की जरूरत नहीं थी कि वे वीआईपी बच्चे कौन थे । वे कार से वाल्टर विंसी के साथ जिनेवा आये थे और स्विस पुलिस तथा इटालियन अधिकारी निरन्तर सम्पर्क में थे जबकि रॉ अधिकारी को सिरे से कोई सूचना ही नहीं थी, है ना हास्यास्पद लेकिन चिंताजनक… उस स्विस पुलिस कमिश्नर ने ताना मारते हुए कहा कि “तुम्हारे प्रधानमंत्री की पत्नी तुम पर विश्वास नहीं करती और उनके बच्चों की सुरक्षा के लिये इटालियन एजेंसी से सहयोग करती है” । बुरी तरह से अपमानित रॉ के अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ । अंतरराष्ट्रीय खुफ़िया एजेंसियों के गुट में तेजी से यह बात फ़ैल गई थी कि सोनिया गाँधी भारतीय अधिकारियों, भारतीय सुरक्षा और भारतीय दूतावासों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती हैं, और यह निश्चित ही भारत की छवि खराब करने वाली बात थी ।

राजीव की हत्या के बाद तो उनके विदेश प्रवास के बारे में विदेशी सुरक्षा एजेंसियाँ, एसपीजी से अधिक सूचनायें पा जाती थी और भारतीय पुलिस और रॉ उनका मुँह देखते रहते थे । (ओट्टावियो क्वात्रोची के बार-बार मक्खन की तरह हाथ से फ़िसल जाने का कारण समझ में आया ?) उनके निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज सीधे पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के सम्पर्क में रहते थे, रॉ अधिकारियों ने इसकी शिकायत नरसिम्हा राव से की थी, लेकिन जैसी की उनकी आदत (?) थी वे मौन साध कर बैठ गये । 

संक्षेप में तात्पर्य यह कि, जब एक गृहिणी होते हुए भी वे गंभीर सुरक्षा मामलों में अपने परिवार वालों को ठेका दिलवा सकती हैं, राजीव गाँधी और इंदिरा गाँधी के जीवित रहते रॉ को इटालियन जासूसों से सहयोग करने को कह सकती हैं, सत्ता में ना रहते हुए भी भारतीय सुरक्षा अधिकारियों पर अविश्वास दिखा सकती हैं, तो अब जबकि सारी सत्ता और ताकत उनके हाथों मे है, वे क्या-क्या कर सकती हैं, बल्कि क्या नहीं कर सकती । 

हालांकि “मैं भारत की बहू हूँ” और “मेरे खून की अंतिम बूँद भी भारत के काम आयेगी” आदि वे यदा-कदा बोलती रहती हैं, लेकिन यह असली सोनिया नहीं है । समूचा पश्चिमी जगत, जो कि जरूरी नहीं कि भारत का मित्र ही हो, उनके बारे में सब कुछ जानता है, लेकिन हम भारतीय लोग सोनिया के बारे में कितना जानते हैं ?