Saturday, 19 May 2012

गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल पर भ्रस्टाचार के एक दो नही बल्कि दसियों मामले है .





दो दशक पहले जयपुर में हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटियों द्वारा परोक्ष रूप से किए गए कई हजार करोड़ रुपए के घोटाले की गाज कमला बेनीवाल तक पहुंची.. और, हालात ये हुए कि तत्कालीन लोकायुक्त महेन्द्र भूषण शर्मा ने कमला को सीधे तौर पर आरोपित किया और सुप्रीम कोर्ट ने लोकायुक्त की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए तत्कालीन नगरीय विकास मंत्री कमला के जयपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर बने रहने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। तब यह बहस चली थी कि कमला मंत्री पद पर रहने के योग्य भी हैं या नहीं। उससे पांच साल पहले बीसलपुर के शिव मंदिर में कथित नीलम के शिवलिंग की चोरी की आंच कमला तक को लपेटने लगी।

..इस तरह की गंभीर घटनाओं के बावजूद कमला को जानने वालों ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि वे भ्रष्ट हो सकती हैं। राजस्थान की राजनीति में भ्रष्टाचार विरोधी नेताओं, जिनका नेतृत्व निस्संदेह भैरोंसिंह शेखावत करते रहे हैं, में कमला का भी अग्रणी नाम रहा है। इतना ही नहीं, भारतीय संस्कृति, संस्कृत और पुरातात्विक धरोहर से प्रेम रखने वाले राजस्थान के नेताओं में (वे किसी भी दल के क्यों न हों) कमला का नाम शीर्ष पर है ..भाजपा में भी वैसा खोजना चाहें तो तुरंत दूसरे नंबर का नेता ध्यान में नहीं आता। वे न केवल सादगी पसंद नजर आती हैं बल्कि उनका जीवन और व्यवहार भी उसका गवाह है। राजस्थान विधानसभा में कमला पर कभी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा।
वे ऐसी स्वाभिमानी नेता रही हैं कि जिन्होंने कांग्रेस के मोहनलाल सुखाडिय़ा जैसे मुख्यमंत्री के काल में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए मंत्री पद का त्याग कर दिया था और कुंभाराम आर्य-हरिश्चंद्र-दौलतराम सारण की पंक्ति में खड़ी हो गई थीं। राजस्थान की कांग्रेस में लोकतांत्रिक पद्धति लागू करने की मांग हरिदेव जोशी-नवलकिशोर शर्मा के नेतृत्व में उठाई गई तो कमला हरावल की पंक्ति में खड़ी थीं। इतने बड़े पद पर होते हुए भी व्यक्तिगत तौर पर उन्हें खुद के मकान पर कब्जा होने तक को लेकर परेशान होना पड़ता रहा है। अशोक गहलोत के पिछले मुख्यमंत्रित्व काल में एक बार कमला को मुख्यमंत्री बनाने तक की बात सोची गई थी और सोनिया गांधी ने दिल्ली बुलाकर उनसे बात की थी। लेकिन गहलोत की पहुंच इतनी मजबूत निकली कि विषय लीक हो गया और उन्हें बनवारीलाल बैरवा के साथ दूसरा उपमुख्यमंत्री बनकर संतोष करना पड़ा था।

हालांकि राजस्थान की कांग्रेस राजनीति से राज्यपाल बनकर गए कुछ राजनेता भ्रष्टाचार के आरोपों में बुरी तरह कैद रहे हैं.. एक पूर्व राज्यपाल के खिलाफ तो मंत्री रहने के दौरान किए घोटाले को प्रमाणित मानते हुए लोकायुक्त ने मुकदमा चलाने की अनुशंषा की थी और एक अन्य पूर्व में मुख्यमंत्री रहे पूर्व राज्यपाल को सीमेंट घोटाले सहित कई आरोपों में घसीटा जाता रहा है। लेकिन राजस्थान की परंपरा सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है।

राजस्थान के ही पं. नवलकिशोर शर्मा गुजरात में कमला से ठीक पहले राज्यपाल रहे हैं। दोनों को जानने वाले इस बात को स्वीकार करेंगे कि पं. नवलकिशोर कहीं अधिक तीक्ष्ण.. कहीं अधिक खुर्राट और कहीं अधिक बेबाक नेता हैं और उनको गुजरात का राज्यपाल बनाए जाते समय देशभर में यह माना गया था कि वे नरेन्द्र मोदी सरकार को बर्खास्त करने की कोशिश करेंगे।

लेकिन पं. नवलकिशोर ने लोकतांत्रिक मर्यादाओं को पुष्ट किया तथा राज्यपाल के पद को विवाद में डालने की दिशा में नहीं बढ़े। सूचना यहां तक है कि उन्होंने आलाकमान से साफ-साफ उनको भेजे जाने का मंतव्य पूछ लिया था और कांग्रेस आलाकमान भी यह नहीं चाहता था कि नरेन्द्र मोदी की सरकार अलोकतांत्रिक तरीके से गिराई जाए। कांग्रेस यह भी देख चुकी है कि गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले टीवी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन करके गुजरात दंगों का सूत्रधार नरेन्द्र मोदी को बता दिया था और उन खबरों को इस तरह लगातार दिखाया गया कि नरेन्द्र मोदी का कुछ बिगडऩा तो दूर रहा.. गुजरात की जनता भड़क गई और जिन नरेन्द्र मोदी का सत्ताच्युत होना लगभग सुनिश्चित मान लिया गया था उन्होंने चुनाव में जीत का परचम फहरा दिया।
जनता देख रही है। डॉ. कमला गलती पर हैं। उन्होंने गुजरात के लोकायुक्त कानून, 1986 की अवहेलना की है.. उनका यह कृत्य सीधे-सीधे संविधान की अवहेलना है। लोकायुक्त की नियुक्ति उस कार्य में आती है जिसके लिए राज्यपाल को मुख्यमंत्री की अनुशंषा पर काम करना होता है। यह न केवल परंपरा है बल्कि विधि भी है।

गुजरात के लोकायुक्त कानून का अनुच्छेद-3 (1) राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति करने से पूर्व हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और प्रतिपक्ष के नेता से परामर्श करने की शर्त रखता है। इसका अर्थ ही यह है कि लोकायुक्त की नियुक्ति वाया मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल होगी। यदि ऐसा नहीं होता तो दो साल से कमला ने लोकायुक्त क्यों नहीं बनाया; और उनसे पहले पं. नवलकिशोर ने भी लोकायुक्त नहीं नियुक्त किया। गुजरात सरकार का रिकॉर्ड इस बात का गवाह है कि लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर निर्वाचित मुख्यमंत्री और नियुक्त राज्यपाल में मतभेद रहे हैं और इसीलिए लोकायुक्त की नियुक्ति टलती रही है।

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