Sunday 1 July 2012

तीस्ता सेतालवाद जावेद ने 2002 में गोधरा हत्याकांड के पश्चात और गुजरात दंगो के भडकने के पहले कहा की "हालांकि मैं आज के भीषण हमले की निंदा करती हूँ , लेकिन आप किसी ऐसी घटना को पृथक नहीं मान सकते । हमें यह नहीं भूलना चाहिए की ये (कार सेवक) भड़काऊ कार्य आकर रहे थे । ये किसी उदार जनसभा में नहीं जा रहे थे । ये एक सरासर अवैध मंदिर के निर्माण में लिप्त थे और जान बूझ कर भारत के मुसलमानों को भड़का रहे थे ।"


बेचारे निर्दोष मुसलमान , इन्होने 59 हिन्दुओं को जिन्दा जला के कोई जघन्य कृत्य नहीं किया ...कृपया समझिये की इन्हें तो 'भड़काया' गया था ।

ये श्री राम को खुलेआम गाली दें वो ठीक, ये हमारे देवताओं का नग्न चित्रांकन करें वो ठीक, वो जानबूझ कर हमारे मंदिरों को अपवित्र करें वहां गौमाता की हत्या करें वो ठीक.. लेकिन हम यदि अपने प्रभु श्रीराम के मंदिर का पुनर्निर्माण करना चाहें तो हम भड़काऊ क्रिया में लिप्त हैं और हम जीवित जला दिए जाने के अधिकारी हैं |

दोष तीस्ता सेतालवाद जावेद जैसे लोगों का नहीं , दोष हमारा है जो हम ऐसे वक्तव्य सुन लेते हैं और निष्क्रिय बैठे रहते हैं ।
हिन्दुओं, हथियार उठाने की आदात डाल लो नहीं तो ये आग जिस दिन तुम्हारे घर पहुंचेगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी ।


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