Thursday, 26 July 2012

पिछले ३१ साल से हर समय प्रणव बाबू के साथ रहने वाली ओमिता पाल को प्रणव बाबू सारे नियम कानून ताक पर रखकर राष्ट्रपति पद का सचिव नियुक्त कर दिये | "ओ मेरी जोहरा जबीं .तू अभी तक है हसीं .. और मै जवां .. तुझ पे कुर्बान मेरी जान मेरी जान ." या प्रणव बाबू दूसरे एन डी तिवारी है ?




क्या ओमिता पाल से ज्यादा काबिल प्रणव मुखर्जी को दूसरा कोई नही मिला ?

"कुछ तो लोग कहेंगे .. लोगो का काम है कहना ..छोडो बेकार की बातों को .कही बीत न जाये रैना "

प्रणव मुखर्जी के वित्त मंत्री रहते ओमिता पाल और उनके पूरे खानदान ने लूट मचा रखी थी |   

पिछले इकत्तीस सालों से किसी न किसी रूप में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से चिपकी रहीं उनकी वर्तमान सलाहकार ओमिता पॉल हर तरफ से उठे विरोध के बावजूद आखिरकार अपने भाई जितेश खोसला को यूटीआई म्यूचुअल फंड का चेयरमैन बनवाने में कामयाब हो ही गयी थी | जितेश के उपर भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज थे ..

इंडियन एक्सप्रेस से लेकर इकनॉमिक टाइम्स जैसे धाकड़ अखबार तक खोसला की नियुक्ति की विसंगति पर पहले पेज पर लीड खबर लगाकर शोर मचा चुके हैं। कारण यह है कि जितेश खोसला को म्यूचुअल फंड उद्योग या वित्तीय जगत का कोई अनुभव नहीं है। फिर भी उन्हें यूटीआई म्यूचुअल फंड के शीर्ष पद पर महज इसलिए लाया जा रहा है क्योंकि वे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपनी मुठ्ठी में कसकर रखनेवाली ओमिता पॉल के भाई हैं। यहां तक कि अप्रैल में यूटीआई के नेतृत्व के लिए संभावित अभ्यर्थियों को शॉर्ट लिस्ट करनेवाली तीन सदस्यीय समिति ने जिन लोगों को छांटा था, उनमें खोसला का नाम ही नहीं था। लेकिन ओमिता पॉल ने जबरदस्ती बाद में उनका नाम डलवा दिया।


ओमिता पॉल आईआईएस (इंडियन इनफॉरमेशन सर्विस) अधिकारी हैं। वे पिछले इकत्तीस सालों से प्रणब मुखर्जी के निजी स्टाफ में शामिल रही हैं। 1980 के बाद प्रणब दा सरकार में जहां भी रहे हैं, श्रीमती पॉल उनके साथ रहीं। चाहे वो वित्त मंत्रालय हो या विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय वाणिज्य मंत्रालय अथवा योजना आयोग। यह साथ 1996 से 2004 तक तब छूटा, जब प्रणब मुखर्जी सरकार से बाहर पैदल थे। इन आठ सालों में श्रीमती पॉल ने चार विभाग बदल डाले। यहां तक 2002 में उन्होंने सरकारी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआएस) ले ली। 2004 में यूपीए की सरकार बनी तो वे वापस दादा के साथ जुड़ गईं।

दादा भी उनका पूरा ख्याल रखते हैं। मई 2009 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले दादा को चिंता लगी कि अगर वे मंत्री नहीं रहे तो श्रीमती पॉल का क्या होगा। इसलिए उन्होंने श्रीमती पॉल को केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी) की कुर्सी पर पांच सालों के लिए सुरक्षित नियुक्त करवा दिया। इसका भी विरोध हुआ था। लेकिन यूपीए जीतकर फिर से सत्ता में आ गया तो श्रीमती पॉल सीआईसी से मुक्त होकर फिर से दादा के साथ आ गईं। उन्होंने 26 जून 2009 को सीआईसी के पद से इस्तीफा दिया। इसके एक दिन पहले 25 जून 2009 को ही उन्हें वित्त मंत्री की सलाहकार बनाया जा चुका था।

अंत में एक फुलझड़ी और। इस साल के बजट में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के सदस्यों को कुछ भत्तों व सुविधाओं पर टैक्स की छूट दी गई है जो अभी तक मुख्य चुनाव आयुक्त, चुनाव आयुक्तों और सुप्रीम कोर्ट के जजों को हासिल थी। ये छूट तीन साल पहले 1 अप्रैल 2008 से लागू होगी। ओमिता पॉल के पति केके पॉल कभी पुलिस कमिश्नर हुआ करते थे। साल 2007 से यूपीएससी के सदस्य हैं। दो साल बाद 65 के हो जाने पर रिटायर होंगे। बाकी क्यों हुआ, कैसे हुआ, लिखने-बताने की जरूरत नहीं है।

इतना सारा कुछ कहने के बाद मेरा यही कहना है कि प्रणब मुखर्जी व्यक्तिगत जीवन में जो भी करें, यह उनका निजी मामला है, उनकी स्वतंत्रता है। लेकिन वे जब तक भारत सरकार में किसी ओहदे पर हैं, उन्हें निजी मसलों को सरकारी कामकाज में मिलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस समय वे देश के खजाने का जिम्मा संभाल रहे हैं तो उनकी जिम्मेदारी और जबावदेही बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। पिछले तीस-इकत्तीस सालों में जो भी हुआ, सो हो गया। आगे तो उन्हें थोड़ी-सी शर्म करनी चाहिए। नहीं तो यह देश उन्हें माफ नहीं करेगा।

वित्त मंत्रालय मे चर्चा चल रही थी कि अब तो प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बन गए अब ओमिता का क्या होगा ? दो हंसो का जोड़ा बिछड़ गयो राम जुल्म भयो राम ... सब सोच रहे थे कि प्रणव मुखर्जी तो नियम कानून तोडकर ओमिता को राष्ट्रपति भवन नही ले जायेंगे .. लेकिन कल शाम को केंद्रीय केबिनेट ने ओमिता पाल की राष्ट्रपति का प्रधान सचिव नियुक्त करने का आदेश जारी कर दिया |

चलो अच्छा है

"इन हवाओ मे, इन फिजाओ मे आजा आजा रे तुझको मेरा प्यार पुकारे "

[डिस्क्लेमर :- पोस्ट के बीच बीच मे गाना और पोस्ट का आपस मे अगर कोई सम्बन्ध है तो ये मात्र संयोग माना जाये ]






1 comment:

pankajakpb said...

ye india mere yaar