जो लोग यह सोचते हैं कि मनमोहन सिंह सरकार ने बोफोर्स तोपों की खरीद में 73 लाख डालर की दलाली लेने वाले इटली के व्यवसायी ओेतावियो क्वात्रोची से आपराधिक मामले वापस लेने का जो निर्णय लिया उससे बोफोर्स घोटाले के ताबूत में आखिरी कील गड़ गई है वे गलती पर हैं। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस आलाकमान से अपनी नजदीकी के लिए चर्चित क्वात्रोची, जो भारत के करदाताओं का पैसा लेकर रफूचक्कर हो गया, के खिलाफ मामला वापस लेने का सरकार का यह शर्मनाक फैसला देश की न्याय व्यवस्था के ताबूत में आखिरी कील है। आजादी के बाद यद्यपि देश में अनेक घोटाले हुए हैं, किंतु एक भी घोटाले में सरकार ने बड़ी बेचैनी से वर्र्षो तक यह सुनिश्चित करने का प्रयास नहीं किया कि खुद उसके जांचकर्ता एक ऐसे व्यक्ति को नहीं पकड़ पाएं जो रक्षा सौदे में दलाली लेने का आरोपी है। न ही किसी सरकार ने इतने दृढ़ निश्चय और प्रतिबद्धता के साथ न्याय व्यवस्था में जनता के विश्वास को डिगाने के लिए पुरजोर मेहनत की है।
कांग्रेस के प्रवक्ता और कुछ व्यक्तियों, जिनमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल हैं, की दलीलें भी सच्चाई को मिटा नहीं पाई हैं। हमें इस मामले के तथ्यों पर नजर डालनी चाहिए। 1980 के अंत में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब भारत ने स्वीडन की कंपनी एबी बोफोर्स से तोपें खरीदीं। करार पर हस्ताक्षर होने के एक साल बाद स्वीडन के रेडियो ने प्रसारित किया कि सौदा हासिल करने के लिए बोफोर्स ने भारत के राजनेताओं को घूस दी। सरकार की तरफ से मध्यस्थता करने वाले बिचौलियों को मोटा कमीशन दिया गया। राजीव गांधी ने इन आरोपों का खंडन किया और आरोपों की जांच के लिए एक जांच समिति बना दी, जिसमें उनके विश्वासपात्र भरे हुए थे। इस समिति ने यह दावा करके संसद के नाम पर बट्टा लगा दिया कि इस सौदे में बोफोर्स द्वारा कोई कमीशन या घूस नहीं दी गई थी। खोजी मीडिया ने इस दावे की धज्जिायां उड़ा दीं। उसने अनेक स्विस बैंक खातों का हवाला देते हुए दस्तावेज पेश किए, जिनसे साफ हो जाता था कि बोफोर्स ने कमीशन दिया है। इनमें से दो खाते ओतावियो क्वात्रोची और उनकी पत्नी मारिया के नाम से थे। 1989 में राजीव गांधी चुनाव हार गए और वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल नीत गठबंधन सरकार सत्ता में आ गई। इस सरकार ने जांचकर्ताओं को बाहर भेजा और उन्होंने बोफोर्स द्वारा किए गए भुगतान के पक्के साक्ष्य हासिल कर लिए। जैसे ही जांच आगे बढ़ी, क्वात्रोची गायब हो गया और भारत ने उसे खोजने के लिए इंटरपोल को रेड कार्नर नोटिस जारी करने को कहा। इंटरपोल ने इस बात की पुष्टि की कि क्वात्रोची ने बोफोर्स से मिला पैसा स्विट्जरलैंड से लंदन स्थित दो बैंकों में स्थानांतरित करा लिया है। मनमोहन सिंह के पूर्ववर्तियों ने इन साक्ष्यों पर कार्रवाई करते हुए इंग्लैंड के अधिकारियों से इन बैंक खातों को सील करा लिया।
कांग्रेस आलाकमान के करीबी समझे जाने वाले क्वात्रोची की सहायता करने के लिए मनमोहन सिंह ने अनेक कार्य किए। उन्होंने दिसंबर 2005 में एक अधिकारी को लंदन भेजा, जिसने इंग्लैंड के अधिकारियों को सूचित किया कि इन खातों से प्रतिबंध हटाने में भारत सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। जब यह धोखेबाजी का कृत्य सामने आया तो जनवरी 2006 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि जब तक सरकार के इस अजीब कदम के कारणों का खुलासा न हो, यह सुनिश्चित किया जाए कि क्वात्रोची बैंक से पैसा न निकाल पाए। हालांकि जब तक कोर्ट यह आदेश जारी करता, क्वात्रोची ने इन दो खातों से रकम करीब-करीब साफ कर दी।
इसके बाद फिर छल किया गया। इंटरपोल का रेड कार्नर नोटिस वैध रहने के दौरान 6 फरवरी, 2007 को क्वात्रोची को अर्जेटीना में पकड़ लिया गया था। 8 फरवरी को सीबीआई को इसकी सूचना मिल गई थी। सरकार की प्रतिक्रिया देखकर ऐसा लगा कि जैसे अर्र्जेटीना की मुस्तैदी से क्वात्रोची से अधिक भारत को सदमा लगा। सरकार का दोहरा आचरण इस तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि उसने 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उससे यह तथ्य छिपाए रखा। सीबीआई ने क्वात्रोची की हिरासत का खुलासा 23 फरवरी को तब किया जब क्वात्रोची को जमानत पर रिहा कर दिया गया। सरकार ने क्वात्रोची की हिरासत को 17 दिनों तक क्यों छिपाए रखा? इसका सूत्र इसमें है कि 10 से 15 फरवरी के बीच इटली के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर थे। यह एक सुखद संयोग है कि क्वात्रोची का बेटा मैसिमो क्वात्रोची को भी उनके साथ आने का सौभाग्य मिला। 22 फरवरी को अपने पिता की हिरासत की सूचना भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक किए जाने से एक दिन पहले वह वापस चला गया।
इस घोषणा के बाद समय बर्बाद करने का दौर तब तक चलता रहा जब तक अर्जेंटीना की अदालत ने वैध दस्तावेज पेश न करने और क्वात्रोची को इटली जाने की अनुमति देने पर सीबीआई को आड़े हाथों लिया। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से जब मनमोहन सिंह हमें लोकतंत्र और कानून के शासन पर भाषण दे रहे थे तब क्वात्रोची मिलान पहुंचा और अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाया। जैसे यह ही काफी नहीं था, अर्र्जेटीना की सरकार ने भारत को क्वात्रोची के कानूनी खर्च का भुगतान करने को कहा। मनमोहन सरकार ने क्वात्रोची की अगली बड़ी तरफदारी यह की कि उसने अप्रैल 2009 में इंटरपोल से क्वात्रोची के खिलाफ जारी रेड कार्नर नोटिस वापस लेने को कहा। इस शर्मनाक हरकत का बचाव करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा की कि क्वात्रोची मामले के कारण विश्व में भारत की फजीहत हो रही थी, क्योंकि दुनिया यह मान रही है कि हम उसे परेशान कर रहे हैं।
अब यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि क्वात्रोची को बचाना कांग्रेस नेतृत्व की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से रहा है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनमोहन सिंह इस प्राथमिकता को समझ चुके हैं। जनवरी 2006 में, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि लंदन के बैंक में जमा घूस की रकम को क्वात्रोची निकाल ले जाएं। फरवरी 2007 में अर्जेटीना द्वारा क्वात्रोची को हिरासत में लेने पर केंद्र सरकार ने इस बात का पूरा इंतजाम किया कि सीबीआई अपने पैर पीछे खींच ले और वहां की अदालत में एक मूर्ख की भांति खड़ी हो जाए। क्वात्रोची को वापस इटली जाने और स्वतंत्रता हासिल करने की अनुमति दी गई। अप्रैल 2009 में इंटरपोल से रेड कार्नर नोटिस वापस लेने के लिए कहा गया और अब चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को सूचित किया गया कि सरकार क्वात्रोची के खिलाफ आपराधिक मामला वापस लेना चाहती है, क्योंकि इस मामले में कुछ बचा नहीं है। किसी भी प्रधानमंत्री ने एक सरासर आपराधिक कृत्य को गैर-आपराधिक साबित करने में इतनी तन्मयता नहीं दिखाई।
यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि क्वात्रोची का बेटा तब भी सक्रिय रहा। आज भी क्यात्रोची का बेटा भारत मे ही रहता है और पूरी केन्द्र सरकार उसके आगे पीछे घुमती है | उसके बेटे को 2005 में अंडमान निकोबार में तेल की खुदाई का ठेका तक मिला। इटली की कंपनी ईएनआई इंडिया लिमिटेड के नाम से खोला गया। उसके बेटे का दफ्तर मेरिडियन होटल के अंदर आज भी है।
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