Sunday 15 April 2012

सुबह निर्मल बाबा का बखान और शाम को उनकी ही बखिया उधेड़ने वाली भारतीय मीडिया के लिए कुत्ता , कमीना , और नीच जैसे शब्द भी कुछ नही है

कौन कहता है, कि- बुद्धिजीवी बनिया नहीं बन सकता ? निर्मल बाबा के बारे में न्यूज़ चैनल्स पर खुलासे देख रहा था ! अजीब मुश्किलों का सामना करना पड़ा - मेरे दिमाग को ! सुबह यही चैनल्स उनका समागम (पैसे लेकर) दिखाते थे और अब शाम को उनकी धज्जियां उड़ाते ! एहसानफ़रामोशी का इस से ताज़ा नमूना देखने को नहीं मिला-लिहाजा ताज्जुब हुआ ! सुबह और शाम की सोच में इतना बड़ा फर्क ? या फिर सुबह नींद की अंगडाई में अंतार्त्मा भूल गयी कुछ कहना- और शाम को भड़ासिए अंदाज़ में शुरू ! बाज़ार में चीज़ें बिकती हैं - पर रंग भी इतनी तेज़ी से बदलती हैं, गुमान तक ना था ! 

दिल्ली की वादियों में ही रहकर , दूर-दृष्टी रख, पूरे हिन्दुस्तान का हाल बयां करने वाले हमारे चमत्कारी पत्रकारों को निर्मल बाबा के चमत्कार में खोट नज़र आया- सुबह नहीं, शाम को ! निर्मल बाबा को भी समझ आया- कि - उनसे भी बड़े चमत्कारी बाबा न्यूज़ चैनल्स में बैठे हैं, ! ऐसे बाबा- जो सुबह किसी का मुंह चमचमाता हुआ दिखा दें और रात होते-होते मुंह पर कालिख पोत दें ! निर्मल बाबा ने कोई साधना नहीं कि- पर स्वयंभू बन बैठे ! गुरु घंटाल पत्रकारों की शरण में जाते तो सिद्ध हो जाते कि किसको कैसे साधना है ! गुरु के बिना उपासना का परिणाम बुरा होता है ! 

चमत्कारी (गुरु) पत्रकारों के बिना साधना का परिणाम , आज निर्मल बाबा को भोगना पड़ रहा है !

बुजुर्गों का कहना है

हर बात बिकती है- हर नशा बिकता है
वो "सच" है- जो दिखता है
सुबह कुछ -तो-शाम को कुछ कहने वाला चाहिए
तजुर्बा नहीं - सिर्फ "दूर-दृष्टी" चाहिए
ज़बान चाहिए और अंदाजेबयां का हुनर चाहिए
इस लफ्फाजी के लिए एक अदद न्यूज़ चैनल्स चाहिए
चमत्कारी पत्रकारों ने दिखा दिया अपना चमत्कार

चुप क्यों हैं निर्मल बाबा- कुछ तो कहिये
अंत में निर्मल बाबा कह दिए-------
हर खरीदार को बाज़ार में बिकता पाया
हम क्या पायेंगे- किसी ने यहाँ क्या पाया

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