Wednesday, 18 April 2012

मित्रों ये नज्म अली सरदार जाफरी ने १९४८ मे ही देश के हालात से तंग आकर लिखी थी ..सोचिये अगर वो आज जिन्दा होते तो क्या लिखते ?



कौन आज़ाद हुआ ?


किसके माथे से सियाही छुटी ?
मेरे सीने मे दर्द है महकुमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ ?


खंजर आज़ाद है सीने मे उतरने के लिए
वर्दी आज़ाद है वेगुनाहो पर जुल्मो सितम के लिए
मौत आज़ाद है लाशो पर गुजरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?


काले बाज़ार मे बदशक्ल चुदैलों की तरह
कीमते काली दुकानों पर खड़ी रहती है
हर खरीदार की जेबो को कतरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?


कारखानों मे लगा रहता है
साँस लेती हुयी लाशो का हुजूम
बीच मे उनके फिरा करती है बेकारी भी
अपने खूंखार दहन खोले हुए
कौन आज़ाद हुआ ?




रोटियाँ चकलो की कहवाये है
जिनको सरमाये के द्ल्लालो ने
नफाखोरी के झरोखों मे सजा रखा है
बालियाँ धान की गेंहूँ के सुनहरे गोशे
मिस्रो यूनान के मजबूर गुलामो की तरह
अजबनी देश के बाजारों मे बिक जाते है
और बदबख्त किसानो की तडपती हुयी रूह
अपने अल्फाज मे मुंह ढांप के सो जाती है


कौन आजाद हुआ ?

































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