Monday 18 April 2011

न अचार है न मुरब्बा है, राहुल खाली डब्बा है

न अचार है न मुरब्बा है, राहुल खाली डब्बा है

सबसे पहले तो उत्तर प्रदेश भाजपा को बधाई कि उसने राहुल गांधी का संघ ज्ञान बढ़ाने के लिए संघ विचारधारा को समझानेवाली पुस्तकों का सेट भेजा है. मध्य प्रदेश की तीन दिवसीय यात्रा में उन्होंने जिस प्रकार से संघ को सिमी के करीब ठहरा दिया उससे साबित होता है कि संघ विचारधारा के बारे में तो उन्हें तनिक भी अंदाज नहीं है, साथ ही यह भी आभास होता है कि वे राजनीतिक रूप से टीन और कनस्टर के ऐसे खाली डिब्बे हैं जो जैसे चाहे अपने हित के लिए इस्तेमाल कर सकता है.

शायद इसीलिए राहुल बाबा जहां जाते हैं कोई न शिगूफा छोड़ ही देते हैं। इस बार मध्यप्रदेश दौरे पर आए तो आरएसएस की तुलना सिमी से कर दिया। टीकमगढ़ के दौरे पर आए राहुल ने कह दिया कि संघ और सिमी की विचारधारा को छोड़कर आने वालों को ही कांगे्रस में जगह मिलेगी। 6 अक्टूबर को राजधानी भोपाल में जब पत्रकारों ने राहुल से उनके टीकमगढ वाले बयान के बाबत पूछा तो उन्होंने कहा - आरएसएस और सिमी दोनों ही कट्टरवादी संगठन है। वैचारिक कट्टरता की दृष्टि से इनमें कोई फर्क नहीं है। यहां के लोगों में चर्चा है कि राहुल बाबा मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की बोली बोल रहे है। बोलना भी चाहिए, राहुल आखिर अपने सलाहकार की भाषा न बोले तो किसकी बोले! राहुल को कौन समझाये कि उनके शगूफे और सूर्रे से उनकी, उनकी अम्मा और पूरी पार्टी की भद्द पिट रही है। राहुल जब कांग्रेस का आत्मसम्मान ढूंढते हुए बंगाल के दोरे पर गए थे तो वहां की युवतियों ने जरूर उनके लिए सीटियां बजाई और राहुल-राहुल के नारे लगाए, लेकिन ममता बहन को वे नाराज ही कर आए थे। राहुल ने माक्र्सवाद को मरी हुई विचारधारा कह कर वहां के वामपंथियों को नाराज कर दिया था। वहां उन्होंने कम्युनिस्टों के बारे में कहा था कि - यह मृत विचारधारा हो गई है जो क्यूबा सहित पूरे विश्व में असफल हो चुकी है। माकपा महासचिव प्रकाश करात ने पलटवार करते हुए राहुल की राजनीतिक समझ पर ही सवाल खड़ा कर दिया था। करात ने कहा कि राहुल में वो राजनैतिक समझ नहीं है जो जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी में था।

संघ और सिमी से तुलना वाले बयान को लेकर राहुल फिर विवादों में घिर गए हैं। हालांकि संघ ने उनके बयान को शिगूफा मानकर हल्के में लिया और उनके बयान को हवा में उड़ा दिया। दिल्ली से लेकर भोपाल तक भाजपा ने जरूर इसे गंभीरता से लिया और जवाब देने के लिए अपने प्रवक्ताओं को आगे किया। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि सब प्रकार के प्रयास करने के बावजूद राहुल गांधी का जादू चल नहीं पा रहा है, इसलिए वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। राहुल का यह बयान उनकी ‘राजनैतिक अपरिपक्वता, अज्ञानता और उद्दंडता’ का परिचायक है। मध्यप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने तो राहुल का नया नामकरण ही कर दिया। प्रभात झा ने राहुल को ‘उंटपटांग गांधी’ कह दिया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के लिए तो राहुल बिन बुलाए मेहमान’ ‘हो गए। प्रदेश के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री ने बड़प्पन दिखाते हुए राहुल को राज्य अतिथि का दर्जा दिया। लेकिन मध्यप्रदेश में राज्य अतिथि बने राहुल ‘अतिथि देवो भवः’ नहीं बन सके। अपने बयान पर उन्हें भाजपा की खरी-खोटी सुननी पड़ी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कहा कि संघ देशभक्ति का पाठ पढ़ाने के साथ ही राष्ट्रभक्त नागरिकों को तैयार करता है। संघ की सिमी जैसे प्रतिबंधित संगठन से किसी प्रकार की तुलना उचित नहीं है।

हांलाकि संघ ने मध्यप्रदेश में राहुल के बयान को जरा-सा भी तवज्जो नहीं दिया। भोपाल में संघ पदाधिकारियों ने राहुल के बयान को उनका बड़बोलापन और नासमझी भरा बयान मान उसपर चर्चा से भी मनाही कर दी। लेकिन दिल्ली में संघ के पूर्व प्रवक्ता और केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य राममाधव ने कहा कि राहुल को निरर्थक बयानबाजी करने से पहले अपना ज्ञानवद्र्धन करना चाहिए। उन्हें संघ और प्रतिबंधित संगठनों के बीच अंतर पता होना चाहिए और कांग्रेस संगठन का इतिहास भी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पर पिछले छह दशकों से कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लग रहा है। श्री राममाधव ने राहुल को सलाह दी कि उन्हें अभी लंबा राजनीतिक सफर तय करना है। उन्हें देश और संगठनों के बारे में बेहतर ज्ञान होना चाहिए। उन्हें और अधिक अध्ययन की जरूरत है। भोपाल से सामाजिक कार्यकर्ता बीएल तिवारी ने राहुल के बयान और कांग्रेस के रवैये पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि भैंसे के आगे बिन बजाए, भैंस रहि पगुराये। ‘‘राहुल और दिग्विजय कांग्रेस के दो भैंस हैं। इनके सामने संघ के लोग बीन क्यों बजा रहे हैं। दोनों गुरु-शिष्य देशद्रही संगठनों और विचारों का समर्थन कर रहे हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों उड़ीसा के दौरे पर राहुल माओवादियों के साथ मंच साझा कर चुके हैं। इसको लेकर उड़ीसा सहित पूरे देश में काफी बवाल मचा था। कश्मीर के सवाल पर उमर अब्दुल्ला का पक्ष लेकर वे पहले ही कांग्रेस की किरकिरी करा चुके हैं। राहुल से शह मिलने के बाद उमर ने पाकिस्तान समर्थक बयान दे डाला। दिग्विजय सिंह पहले ही बटला हाउस, नक्सली समस्या और हिन्दू आतंकवाद के सवाल पर अपना राष्ट्रविरोधी चरित्र उजागर कर चुके हैं। राहुल ने सिमी से संघ की तुलना कर प्रकाश करात के वक्तव्य का सही सिद्ध कर दिया है। भाजपा ने तो राहुल, दिग्विजय और कांग्रेस को राजनैतिक भाषा में जवाब दे दिया है। लेकिन संघ इस मामले पर चुप ही रहना चाहता है। शायद संघ की चुप्पी ही राहुल को जवाब हो। संघ सुर्रे और शगूफे पर अपना वक्त जाया करना नहीं चाहता। कुछ राजनेताओं को भड़काउ और आपत्तिजनक बयान देने में ही लाभ दिखता है। मुलायम, पासवान, लालू, दिग्विजय, चिदंबरम और राहुल को संघ ने अब इसी श्रेणी में रख दिया है। संभव है आने वाले दिनों में इनके बयानों पर संघ चुप ही रहे जब तक कि ये ‘राजनैतिक अपरिपक्वता, अज्ञानता और उद्दंडता नहीं छोड़ते। संघ को शायद उम्मीद है कि ऐसे नेता आज नहीं तो कल देशद्रोही और देशभक्ति की विचारधारा में फर्क समझेंगे, भले ही वो विचार कट्टर ही क्यों न हो।

ऐसे प्रकरणों से नेहरू गांधी परिवार के भावी उत्तराधिकारी के वैचारिक खोखलेपन का भी पता चलता है. मध्य प्रदेश यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह ने किस खास मकसद से राहुल गांधी का इस्तेमाल इस तरह का बयान दिलवाने के लिए किया यह ज्यादा बड़ा रहस्य नहीं है. लेकिन राहुल गांधी कांग्रेस के वारिस हैं. वे किसी दिग्विजय सिंह के टट्टू नहीं है जिसे जैसे चाहे दिग्विजय सिंह हांकते रहें. कम से कम बयान देते समय उन्हें इतना तो ख्याल रखना ही चाहिए उनके ऐसे बयानों से न केवल उनका खोखलापन देश के सामने आता है बल्कि कांग्रेस का भी भविष्य अंधकारमय दिखता है जो कम से संघ के लिए शुभ संकेत है.

No comments: