Monday 18 April 2011

सत्य से जंग, असत्य के संग

सत्य से जंग, असत्य के संग

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक कुप्पहल्ली सीतारामैया सुदर्शन ने कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी के संदर्भ में जो कुछ भी कहा है वह कोई नई बात नहीं है। इसके पहले भी इस तरह की चर्चाएं कई बार हो चुकी हैं। राजीव गांधी की हत्या के बाद देश भर में चौराहों और चायखानों पर इस तरह की चर्चा होना आम बात थी। यही नहीं इस प्रकार की चर्चा करने वालों में कई बड़े लोग भी शामिल थे। लेकिन ऐसा पहली बार ही है कि सोनिया के संदर्भ में सुदर्शन जैसे बड़े व्यक्तित्व ने इस प्रकार की चर्चा सार्वजनिक रूप से की है।

उन्होंने सोनिया गांधी पर इंदिरा गांधी व राजीव गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया और उनको ‘सीआईए की एजेंट’ तथा ‘अवैध संतान’ भी करार दिया था। उन्होंने यह बयान कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की हिंदू विरोधी नीतियों के खिलाफ संघ द्वारा भोपाल में 10 नवम्बर को आयोजित एक धरना सभा के बाद पत्रकारों से बातचीत में दिया था। सुदर्शन ने कहा था- “सोनिया के जन्म के समय उनके पिता जेल में थे। इस बात को छिपाने के लिए ही वे अपनी जन्मतिथि 1944 के बजाय 1946 बताती हैं। सोनिया का असली नाम सोनिया माइनो है। वे सीआईए की एजेंट थीं। राजीव ने ईसाई धर्म अपनाकर राबर्ट नाम से उनसे शादी की। बाद में इंदिरा गांधी ने वैदिक पद्धति से उनकी शादी कराई। इंदिरा गांधी को इस बात की भनक लग गई थी कि सोनिया सीआईए की एजेंट हैं। पंजाब में आतंकवाद के चरम पर पहुंचने पर सोनिया ने इंदिरा की हत्या का षड्यंत्र रचा। इंदिरा की सुरक्षा से सतवंत सिंह को हटाने की बात हुई थी। लेकिन सोनिया ने यह नहीं होने दिया। इंदिरा गांधी को गोली लगने के बाद वे उन्हें करीब के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले जाने की जगह वे एम्स ले गई थीं, जो काफी दूर है। फिर राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने के बाद इंदिरा गांधी की मृत्यु की घोषणा की गई। राजीव को भी सोनिया पर शक हो गया था। वे उनसे अलग होने का मन बना रहे थे। सोनिया के इशारे पर ही श्रीपेरुंबुदूर की सभा में राजीव को जेड प्लस सुरक्षा नहीं दी गई।” सुदर्शन ने यह भी बताया कि ये सारी बातें एक कांग्रेस नेता ने उन्हें दी हैं। लेकिन उन्होंने इस नेता के नाम का खुलासा नहीं किया।

राजीव गांधी की हत्या के बाद शुरू हुई इन चर्चाओं का दूसरा दौर उस समय प्रारम्भ हुआ जब पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सत्ताधारी कांग्रेस 1996 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित हो गई थी। चुनाव बाद कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को नरसिम्हा राव में कांग्रेस का भविष्य नहीं दिख रहा था। अतः गांधी परिवार में निष्ठा रखने वाले कांग्रेसी नेताओं ने सत्ता की तीव्र आकांक्षा के कारण सोनिया गांधी से पार्टी का नेतृत्व करने का आग्रह किया था। लेकिन सोनिया ने पार्टी में भीषण गुटबाजी देखकर नेतृत्व से इन्कार कर दिया था। हालांकि श्रीमती गांधी ने कांग्रेस के 1997 के कोलकाता राष्ट्रीय अधिवेशन में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और 1998 में पार्टी की अध्यक्ष बनीं। कोलकाता अधिवेशन में सदस्यता ग्रहण करने के बाद एक बार फिर इस प्रकार की चर्चाएं हुईं थीं।

सोनिया गांधी के संदर्भ में पूर्व केंद्रीय विधि मंत्री व जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने सुदर्शन के बयान के बहुत पहले ही अपने पार्टी की अधिकृत वेबसाइट (www.janataparty.org) पर इस प्रकार की जानकारी का उल्लेख कर दिया था। फिर सुदर्शन का बयान नया कैसे कहा जा सकत है ? क्या इसके पूर्व कांग्रेसी नेताओं को डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के वेबसाइट की जानकारी नहीं थी ? सुदर्शन के वक्तव्य और उससे उपजे गतिरोध के बाद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने तो उनके द्वारा सोनिया पर लगाए गए आरोपों को न्यायालय में सिद्ध कर देने का दावा किया। हालांकि, सोनिया पर लगाए गए ऐसे आरोप कितने सही हैं, यह सोनिया के सिवाय और कौन बता सकता है ? लेकिन उनके संदर्भ में इस प्रकार के आरोपों का धुंआ बार-बार उठने से यह आशंका भी उत्पन्न होती है कि ये आरोप कहीं सत्य तो नहीं हैं ? सोनिया पर लगाए गए ये आरोप चाहे उनके व्यक्तिगत जीवन से ही क्यों न जुड़े हों, यदि ये वर्तमान राष्टीय जीवन को प्रभावित कर रही हैं, तो जनता को इसकी सत्यता जानने का अधिकार है। सुदर्शन को बहुत-बहुत धन्यवाद कि उन्होंने एक ऐस बहस को पुनर्जीवित कर दिया है जिसकी कलई बहुत पहले ही खुल जानी चाहिए थी। सुदर्शन ने श्रीमती गांधी के संदर्भ में जो कुछ भी कहा है उसके लिए प्रत्यक्ष जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी व उसके प्रमुख कर्ता-धर्ता हैं। क्योंकि कांग्रेस और उसके नेता संघ और हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों को बदनाम करने के अभियान में निरंतर लगे हुए हैं। इस कुत्सित अभियान में लगे कांग्रेसी नेताओं को तनिक भी मर्यादा का ख्याल नहीं रहा, जो मुंह में आया, बेधड़क बोलते गए और सारे लोकतांत्रिक मूल्य और मर्यादाएं तार-तार हो गईं।

इस कुत्सित अभियान में लगे ‘महारथियों’ में से एक हैं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह। ये महाशय अपने विवादित बयानों के लिए ही जाने जाते हैं और हर विषय को विवादित बनाकर प्रस्तुत करते हैं। ऐसा करते-करते उनको ‘बिना सिर पैर की बातें’ करने में महारत हासिल हो गई हैं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी ने उनको महासचिव का ओहदा भी इसी कार्य हेतु थमा रखा है। कांग्रेस के दूसरे ‘महारथी’ हैं केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम। उनको कांग्रेस का सौम्य और गंभीर चेहरा माना जाता है। उनके सौम्यता व गंभीरता की पोल तब खुली जब उन्होंने एक निरर्थक बयान दे डाला। उन्होंने हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों को बदनाम करने के निमित्त ‘हिंदू आतंकवाद’ और ‘भगवा आतंकवाद’ सरीखे नए शब्दों का प्रयोग किया। उनके बयान की देश भर में जबर्दस्त आलोचना हुई। देश के करीब सभी बुद्धिजीवी, विद्वतजन और लेखकों ने इन शब्दों के प्रयोग को अप्राकृतिक मानते हुए सिरे से ही खारिज कर दिया। हद तो तब हो गई जब कांग्रेस के एक ‘नवजात महारथी’ कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने संघ और प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी को एक समान करार दे दिया। उनके इस प्रकार के बयान से स्वयं उन्हीं को घाटा उठाना पड़ा। देश भर के करीब सभी बुद्धिजीवियों ने उनको देश की संस्कृति व सभ्यता से अनभिज्ञ मानते हुए उनको अपरिपक्व व नौसिखुआ राजनेता करार दिया। इसी प्रकार के सैकड़ों बयान कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर के अन्य पदाधिकारियों ने संघ व हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों को बदनाम करने के उद्देश्य से दिए। हालांकि, इन निरर्थक बयानों के बाद कांग्रेस ने खेद तक प्रकट करना उचित नहीं समझा। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुदर्शन के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हुए आधिकारिक रूप से दो बार खेद प्रकट किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश जोशी उपाख्य भैयाजी जोशी ने सुदर्शन के बयान पर खेद प्रकट करते हुए कहा, “यह हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि भावनाओं को आहत करने वाली कथित टिप्पणी से जुड़ा सारा घटनाक्रम दुर्भाग्यपूर्ण है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह के नाते मैं अंतःकरण से खेद प्रकट करता हूँ और समस्त देशवासियों से इस घड़ी में संयम एवं शांति बनाए रखने का आह्वान करता हूँ।” संघ का यह आधिकारिक बयान विपरीत परिस्थितियों में भी उसको देश व समाज के हित में कार्य करने वाला सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। यह उसकी देश और समाज के प्रति रचनात्मक गंभीरता को भी प्रदर्शित करता है। लेकिन कांग्रेस में इन बातों का घोर अभाव देखने को मिला है।

दरअसल, सुदर्शन के बयान को कांग्रेस ने इसलिए लपक लिया क्योंकि पूरी पार्टी अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण निरुत्तर है। राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श हाउसिंग सासायटी के फ्लैट्स आवंटन और टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में वह अपने दामन उजाला रखने की जवाबदेही में प्रथम दृष्टया ही फंसती हुई नजर आ रही है। इन्हीं कारणों से वह विपक्षी दलों को विषयों से भटकाने के लिए पूरे जी-जान से लगी है और सुदर्शन के बयान को तूल दे रही है। उनके बयान के बाद कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं का जो रवैया है वह ध्यान देने योग्य है। कांग्रेसजन सुदर्शन के बयान की निंदा और भ‌र्त्सना ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे हिंसा और तोड़फोड़ भी कर रहे हैं। महात्मा गांधी के अहिंसा के आदर्शों पर चलने का सदैव दम्भ भरने वाली कांग्रेस इन बयानों के बाद हिंसक कैसे हो गई है, यह चिंतनीय है। हालांकि कांग्रेस के लिए हिंसा का प्रदर्शन करना कोई नई बात नहीं है। वर्ष 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी उसके कार्यकर्ताओं ने उग्र रूप धारण कर लिया था, जिसमें सैंकड़ों सिख मारे गए थे। यदि कांग्रेस को लग रहा है कि सुदर्शन को उनकी दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी के लिए दंडित किया जाना चाहिए तो वह उनके खिलाफ हर संभव कानूनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन हिंसा का सहारा लेना तो अनुचित है ही लोकतंत्रिक मूल्यों के भी खिलाफ है।

इन बयानों के संदर्भ में महत्वपूर्ण यह नहीं है कि किसने क्या कहा और किस परिप्रक्ष्य में कहा है ? बल्कि महत्व इस बात का है कि इन दुर्भाग्यपूर्ण बयानों के बाद उत्पन्न परिस्थितियों में उन कथित नेताओं से संबंधित संगठनों ने अपने नेताओं के प्रति कैसा आचरण व व्यवहार प्रदर्शित किया। इन समूचे घटनाक्रमों की विशेषता यह रही कि बयान देने वाले सभी नेता व कार्यकर्ता अपने-अपने संगठनों के या तो शीर्ष पदाधिकारी हैं या रह चुके हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के ‘कर्मयोग’ नामक तीसरे अध्याय के 21वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि- “यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥” अर्थात- “श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है।” इसलिए सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठनों के ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और बड़े पदाधिकारी तथा दायित्वाधिकारियों को इस बात का मंथन सदैव करते ही रहना चाहिए कि वे क्या करते तथा बोलते हैं ?

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