राहुल गाँधी को मानसिक इलाज की जरूरत !
देश के युवाओ ने जिस तरह अन्ना हजारे के साथ खड़े हुए उसको देखकर राहुल गाँधी और उनकी "चांडाल चौकड़ी" ने मानसिक संतुलन खो दिया है..
लगता है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी चार छह साल काम करते-करते थक गए है। वे मानसिक और शारीरिक दोनों रुप से थके हुए साफ दिखाई दे रहे है। शायद यही काऱण है कि केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन उन्हें बुजूर्ग नजर आते है, जबकि तामिलनाडू के मुख्यमंत्री करूणानिधि नौजवान। हो सकता है युवराज को सिंकारा टानिक की जरूरत हो लेकिन यह बयान देकर उन्होंने साबित कर दिया कि वे अमूल बेबी ही हैं, जैसा कि केरल के सीएम अच्युतानन्दन ने उनके बारे में कहा है।
उनका तथाकतिथ जादू किसी भी प्रदेश में नहीं चला .. उलटे लगता है की ये कांग्रेस की लुटिया ही डूबा देंगे .. गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल सब जगह लोगो ने राहुल गाँधी को नकार किया . इतनी मेहनत करने के बाद भी किसी को यदि सफलता नहीं मिले तो मानसिक संतुलन खोना स्वाभाविक है .. लेकिन जिसकी कथनी और करनी में जमीं और आसमान का फर्क होगा उसे सफलता कैसे मिलेगी ?? राहुल हर चुनाव में भार्स्ताचार से लड़ने की बात करते है और दिल्ली लौटकर अपने मंत्रियो को वसूली का "टारगेट" देते है और उनके तथा सोनिया गाँधी के ही इशारे पर सारे घोटाले हो रहे है ..
कांग्रेस के अमेठी के सांसद राहुल गांधी वीएस अच्युतानंदन को केरल में चुनाव प्रचार के दौरान "बूढ़ा" कहा है। दिलचस्प बात है कि वे केरल में इस आधार पर सता में परिवर्तन की बात करते है। लेकिन पड़ोस के राज्य में ही एक दूसरे बुजूर्ग करूणानिधि के लिए वो वोट मांग रहे है। जबकि करूणानिधि भी उतने ही बुजूर्ग है। दिलचस्प बात है कि राहुल गांधी को बुजूर्गों की अहमियत नहीं पता है। तभी वे अजीब तरह के ब्यान दिए जा रहे है।
राहुल गांधी की केंद्र की सरकार भी बुजूर्ग ही चला रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बुजूर्ग है, प्रणव मुखर्जी भी बुजूर्ग है। अगर अच्युतानंदन को उम्र के तकाजा पर हटा दिया जाना चाहिए, तो मनमोहन सिंह भी बुजूर्ग होने के आधार पर हटा दिए जाने चाहिए। वहीं प्रणव मुखर्जी को भी बुजूर्ग होने के आधार पर हटा देने चाहिए। लेकिन हालात यह है कि आधे से ज्यादा मंत्रिमंडलीय समूहों के अध्यक्ष बुजूर्ग प्रणव मुखर्जी को युवराज की सरकार ने बना रखा है। बेचारे युवराज को यह नहीं पता है कि उनकी पार्टी ने जब आजादी हासिल की तो उसके नेता महात्मा गांधी भी बुजूर्ग हो चुके है। 1962 में चीन युद्व के समय उनके परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू भी बुजूर्ग हो चुके थे, जबकि वे भारत के प्रधानमंत्री थे।
राहुल गांधी की यह हालत होना जायज है। दरअसल उनकी नजर यूपी के चुनावों पर है। यूपी में अगले साल चुनाव होने है, पर यूपी में कांग्रेस पार्टी की कुछ बनती नजर नहीं आ रही। मुख्य लड़ाई मायावती और मुलायम सिंह के बीच नजर आ रही है। अगर बाबा रामदेव की पार्टी बन गई और वे चुनाव में उतर गए तो कुछ उनका कमाल हो सकता है। खुद कांग्रेसी अब अपनी हार मान चुके है। उनका कहना है कि यूपी के अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को कुछ हासिल नहीं होगा। हार का ठीकरा किस पर फोड़ा जाएगा, इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है।
हालांकि संभावना इस बात की काफी है कि हार का ठीकरा सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ही फोड़ा जाएगा, क्योंकि यूपी उनका गृह राज्य है। अगर यहां भी पार्टी हारती है तो इसके लिए प्रदेश की टीम नहीं, राष्ट्रीय टीम जिम्मेवार होंगे। वैसे भी जब राहुल के सबसे खास दिग्विजय सिंह पार्टी प्रभारी हो, और पार्टी हार जाए तो जिम्मेवारी किसकी बनती है। दिग्विजय सिंह ने पूरे देश में कांग्रेस को मजबूत करने का ठेका ले रखा है। कांग्रेस को फंसाने वाले ब्यान देने के लिए वे मशहूर है। फिर भी दिग्विजय सिंह के खास चंपुओं की सुने तो अमूल बेबी के इन बयानों से भी पार्टी को काफी फायदा होता है।
अब बेचारे कांग्रेस के युवराज को कौन समझाए कि हार भी बरदाश्त करने की क्षमता होनी चाहिए। उनकी दादी हार बरदाश्त कर सता में लौटना जानती थी, लेकिन लगता है अमूल बेबी को अभी उनके प्रशिक्षकों ने यह प्रशिक्षण नहीं दिया है.
देश के युवाओ ने जिस तरह अन्ना हजारे के साथ खड़े हुए उसको देखकर राहुल गाँधी और उनकी "चांडाल चौकड़ी" ने मानसिक संतुलन खो दिया है..
लगता है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी चार छह साल काम करते-करते थक गए है। वे मानसिक और शारीरिक दोनों रुप से थके हुए साफ दिखाई दे रहे है। शायद यही काऱण है कि केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन उन्हें बुजूर्ग नजर आते है, जबकि तामिलनाडू के मुख्यमंत्री करूणानिधि नौजवान। हो सकता है युवराज को सिंकारा टानिक की जरूरत हो लेकिन यह बयान देकर उन्होंने साबित कर दिया कि वे अमूल बेबी ही हैं, जैसा कि केरल के सीएम अच्युतानन्दन ने उनके बारे में कहा है।
उनका तथाकतिथ जादू किसी भी प्रदेश में नहीं चला .. उलटे लगता है की ये कांग्रेस की लुटिया ही डूबा देंगे .. गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल सब जगह लोगो ने राहुल गाँधी को नकार किया . इतनी मेहनत करने के बाद भी किसी को यदि सफलता नहीं मिले तो मानसिक संतुलन खोना स्वाभाविक है .. लेकिन जिसकी कथनी और करनी में जमीं और आसमान का फर्क होगा उसे सफलता कैसे मिलेगी ?? राहुल हर चुनाव में भार्स्ताचार से लड़ने की बात करते है और दिल्ली लौटकर अपने मंत्रियो को वसूली का "टारगेट" देते है और उनके तथा सोनिया गाँधी के ही इशारे पर सारे घोटाले हो रहे है ..
कांग्रेस के अमेठी के सांसद राहुल गांधी वीएस अच्युतानंदन को केरल में चुनाव प्रचार के दौरान "बूढ़ा" कहा है। दिलचस्प बात है कि वे केरल में इस आधार पर सता में परिवर्तन की बात करते है। लेकिन पड़ोस के राज्य में ही एक दूसरे बुजूर्ग करूणानिधि के लिए वो वोट मांग रहे है। जबकि करूणानिधि भी उतने ही बुजूर्ग है। दिलचस्प बात है कि राहुल गांधी को बुजूर्गों की अहमियत नहीं पता है। तभी वे अजीब तरह के ब्यान दिए जा रहे है।
राहुल गांधी की केंद्र की सरकार भी बुजूर्ग ही चला रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बुजूर्ग है, प्रणव मुखर्जी भी बुजूर्ग है। अगर अच्युतानंदन को उम्र के तकाजा पर हटा दिया जाना चाहिए, तो मनमोहन सिंह भी बुजूर्ग होने के आधार पर हटा दिए जाने चाहिए। वहीं प्रणव मुखर्जी को भी बुजूर्ग होने के आधार पर हटा देने चाहिए। लेकिन हालात यह है कि आधे से ज्यादा मंत्रिमंडलीय समूहों के अध्यक्ष बुजूर्ग प्रणव मुखर्जी को युवराज की सरकार ने बना रखा है। बेचारे युवराज को यह नहीं पता है कि उनकी पार्टी ने जब आजादी हासिल की तो उसके नेता महात्मा गांधी भी बुजूर्ग हो चुके है। 1962 में चीन युद्व के समय उनके परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू भी बुजूर्ग हो चुके थे, जबकि वे भारत के प्रधानमंत्री थे।
राहुल गांधी की यह हालत होना जायज है। दरअसल उनकी नजर यूपी के चुनावों पर है। यूपी में अगले साल चुनाव होने है, पर यूपी में कांग्रेस पार्टी की कुछ बनती नजर नहीं आ रही। मुख्य लड़ाई मायावती और मुलायम सिंह के बीच नजर आ रही है। अगर बाबा रामदेव की पार्टी बन गई और वे चुनाव में उतर गए तो कुछ उनका कमाल हो सकता है। खुद कांग्रेसी अब अपनी हार मान चुके है। उनका कहना है कि यूपी के अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को कुछ हासिल नहीं होगा। हार का ठीकरा किस पर फोड़ा जाएगा, इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है।
हालांकि संभावना इस बात की काफी है कि हार का ठीकरा सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ही फोड़ा जाएगा, क्योंकि यूपी उनका गृह राज्य है। अगर यहां भी पार्टी हारती है तो इसके लिए प्रदेश की टीम नहीं, राष्ट्रीय टीम जिम्मेवार होंगे। वैसे भी जब राहुल के सबसे खास दिग्विजय सिंह पार्टी प्रभारी हो, और पार्टी हार जाए तो जिम्मेवारी किसकी बनती है। दिग्विजय सिंह ने पूरे देश में कांग्रेस को मजबूत करने का ठेका ले रखा है। कांग्रेस को फंसाने वाले ब्यान देने के लिए वे मशहूर है। फिर भी दिग्विजय सिंह के खास चंपुओं की सुने तो अमूल बेबी के इन बयानों से भी पार्टी को काफी फायदा होता है।
अब बेचारे कांग्रेस के युवराज को कौन समझाए कि हार भी बरदाश्त करने की क्षमता होनी चाहिए। उनकी दादी हार बरदाश्त कर सता में लौटना जानती थी, लेकिन लगता है अमूल बेबी को अभी उनके प्रशिक्षकों ने यह प्रशिक्षण नहीं दिया है.
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