Monday 18 April 2011

राहुल गाँधी भारतीय राजनीती के "राखी सावंत"

राहुल गांधी का मुंबई तमाशा

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बहुचर्चित मुंबई यात्रा पूंजीवादी मीडिया के टीआरपी बढ़ाऊ तमाशे के अलावा कुछ और साबित नहीं हो सका. युवराज की यात्रा शांतिपूर्ण ढंग से निपट जाए इसके लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण समेत पूरा प्रशासनिक अमला सांसे बांधकर खड़ा था.

मुंबई पुलिस के आला पुलिस अधिकारी अपनी पूरी फौज के साथ राहुल की यात्रा में सलामी बजाने के लिए मजबूर कर दिये गये. पुलिस आयुक्त डी शिवनंदन और संयुक्त पुलिस आयुक्त अपराध दोनों जुहू स्थित भाईदास हाल के समक्ष राहुल गांधी के दरवाजे खोलते दिखाई दिये. 21500 का मुंबई पुलिस बल राहुल के राजमार्ग पर पहरेदारी के लिए तैनात किया गया. मुंबई पुलिस के अलावा राज्य आरक्षी पुलिस बल, रेल पुलिस बल, क्विक एक्शन फोर्स और रेपिड एक्शन फोर्स को भी सड़क पर उतार दिया गया.

राहुल गांधी को शांताक्रूज विमानतल से पहनहंस के हैलीपेड तक जिसकी दूरी मुश्किल से पांच किलोमीटर है, विशेष हेलिकाप्टर से लाया गया. भाईदास हाल से उन्हें विक्रोली के गोदरेज हैलीपेड पर उड़ान भरना था. अचानक एसपीजी ने मार्ग परिवर्तन कर राहुल को अंधेरी से दादर और फिर दादर से घाटकोपर की रेलयात्रा करवाई. राहुल गांधी ने प्रचार की योजना के तहत अंधेरी में दूसरी श्रेणी का रेल टिकट खरीदा और वे सवार हुए प्रथम श्रेणी के कोच में जिसमें पहले से ही पुलिस की सादी वर्दी वाले अफसरों और एसपीजी के जवानों से भरा हुआ था. एक पत्रकार ने दावा किया कि वह किसी तरह उस ट्रेन में चढ़ गया था इसी से समझा जा सकता है कि रेलवे की यह यात्रा कितनी चाकचौबंद सुरक्षा व्यवस्था के बीच संपन्न हुई. सनद रहे कि रेल विभाग से राहुल की यात्रा एसपीजी ने कल ही तय कर ली थी. इसलिए विशेष ट्रेन की भी व्यवस्था की गयी थी. सो राहुल किसी भी ट्रेन यात्री के संपर्क में नहीं आ सके. जो प्रचार किया जा रहा है कि राहुल गांधी ने मुंबई के उपनगरीय रेल यात्रियों की समस्या को समझने का प्रयास किया, दरअसल राहुल की इस प्रचार यात्रा के चलते उपनगरीय रेल की गाड़ियां देरी से चलने लगी जिससे यात्रियों को खासी असुविधा उठानी पड़ी.

1970 के दशक में जब गांधी नेहरू परिवार ने संजय गांधी को युवराज घोषित किया था तो वे मुंबई यात्रा पर आये थे. उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चह्वाण ने संजय गांधी के जूते उठाकर नेहरू कुल के प्रति अपनी निष्ठा को अभिव्यक्त किया था. तीन दशक बाद एक बार फिर नेहरू परिवार का ही एक युवराज मुंबई आया. इस बार भी उसके जूते उठाये गये. फर्क बस इतना है कि शंकरराव चह्वाण के पुत्र अशोक चह्वाण आनुवांशिक निष्ठा के चलते मुख्यमंत्री की गद्दी पर हैं और जूते खुद उठाने की बजाय अपने मराठा जाति परंपरा को कायम रखते हुए अपने समर्थक दलित मंत्री से युवराज के जूते उठवाने का पराक्रम करवा दिया.

राहुल गांधी के दो कार्यक्रम रद्द कर दिये गये. जिस दूसरे कार्यक्रम में राहुल उपस्थित हुए वह था रमाभाई अंबेडकर नगर में. तय योजना के अनुसार रमाबाई अंबेडकर नगर में राहुल गांधी को पुलिस गोली चालन में वर्षों पहले मारे गये दलितों के परिजनों से मिलना था. इसके लिए उक्त दलित परिवारों को सुबह नौ बजे से ही इंतजार में खड़ा करवा दिया गया था. राहुल गांधी आये और डाक्टर बाबा साहेब अंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष केवल सात सेकेण्ड रुके. उन्होंने अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्प जरूर फेंका लेकिन उनकी प्रतिमा को प्रणाम करने की भी जहमत नहीं उठाई. उसके बाद उन्होंने जो किया उससे तो अंबेडकरवादी मूल्यों का उन्होंने ध्वंस कर दिया. एक दलित मंत्री जिनके पास इन दिनों महाराष्ट्र के गृहमंत्रालय का राज्यमंत्री का प्रभार है, ऐसे रमेश बागवे से उन्होंने जूते उठवाने की कृपा कर डाली. जो अंबेडकर जातिवाद और ऊंचनीच के खिलाफ अपना जीवन समर्पित कर बैठे थे उन्हीं की प्रतिमा के समक्ष एक दलित मंत्री से राहुल गांधी का जूता पहनना अंबेडकरवाद के कितना बड़ा तमाचा है इसे आप स्वयं समझ सकते हैं.

मीडिया के तमाम चैनल राहुल की यात्रा को शिवसेना की पयाजय और राहुल के पराक्रम के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. राहुल गांधी किसी मीडियाकर्मी से मिलने के लिए भी तैयार नहीं हुए. मीडिया के तमाम चैनलों में से किसी के पास राहुल की इस पराक्रमी यात्रा में से चार मिनट का भी फुटेज उपलब्ध नहीं था. राहुल गांधी के स्वागत के लिए अशोक चह्वाण दबाववश भाईदास हाल के भीतर तक नहीं गये और वहां से भागकर वे रमाबाई नगर में लगभग ढाई घण्टे तक युवराज की प्रतीक्षा करते रहे. किसी भी टेलीविजन चैनल पर अशोक चह्वाण के बेचैनी भरे चेहरे को देखा जा सकता था. कांग्रेस के तमाम नेता खुद राहुल के दर्शन से वंचित रह गये. हमारे मीडिया के भोंपू दावा कर रहे हैं कि लाखों मुंबईकरों ने राहुल का स्वागत किया लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि चह्वाण की कैबिनेट के मंत्री, मुंबई के सांसद और विधायक भी युवराज के दर्शन का अवसर नहीं जुटा पाये. रमाबाई नगर के कार्यक्रम में मौजूद शरद भंसोड़े कहते हैं कि राहुल आये थे हमारी समस्या सुनने, हमारी समस्या तो सुनी नहीं उल्टा कांग्रेस की समस्या सुना गये कि युवा कांग्रेस का विस्तार कैसे किया जाए. यही प्रतिक्रिया भाईदास हाल से निकले तमाम छात्रों की भी रही जिनके समक्ष राहुल ने युवा कांग्रेस में प्रवेश की प्रक्रिया और उसी के संबंध में पहले से ही तय आठ प्रश्नों के उत्तर दिये. प्रचारित किया जा रहा है कि राहुल युवकों से संवाद साध रहे हैं लेकिन युवक कांग्रेस के लिए एकतरफा प्रचार के अलावा न तो भाईदास हाल में कोई संवाध सधा न ही रमाबाई अंबेडकर नगर में. गोलीचालन में पीड़ित परिवार के लोग तो राहुल से मिलने का अवसर भी नहीं पा सके.

राहुल की यात्रा की सफलता पर गला फाड़नेवाले पता नहीं किस भ्रम में यह प्रचारित करने में परेशान है कि राहुल मुंबई में सफलतापूर्वक यात्रा कर आये. मुंबई न तो काबुल है और न ही कराची. शिवसेना प्रमुच ने सिर्फ काले झण्डे दिखाने का आह्वान किया था. राहुल को न घुसने देने की कोई धमकी नहीं दी गयी थी. फिर काले झण्डे तो दिखाई ही दिये तो राहुल की यात्रा उस मापदण्ड पर सफल कैसे हो गयी? राहुल ने मुंबई आकर अखण्ड हिन्दुस्तान की संकल्पना पर कोई वक्तव्य नहीं दिया. जिन हिन्दीभाषियों की रक्षा की वे दुहाई देते हैं उनको तो यह संदेश गया कि यदि सरकार चाहती तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं से उनकी पिटाई रोकी जा सकती थी. कुल मिलाकर राहुल की यात्रा से पुलिस तंत्र पर दबाव और मुंबई की आम जनता की रोजमर्रा की जिंदगी में दखल के अलावा किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ. इस तरह से अति सुरक्षित घेरे में अगर अजमल कसाब और अफजल गुरू को मुंबई की लोकल ट्रेन यात्रा कराई जाए तो इससे ज्यादा तमाशबीन इकट्ठा हो जाएंगे. तो क्या उसी आधार पर कसाब और अफजल गुरू को मान्यता दे देनी चाहिए और इसी "लोकप्रियता" के आधार पर क्या इन्हें दोषमुक्त कर दिया जाना चाहिए. अगर नहीं, तो फिर राहुल गांधी की यह मुंबई यात्रा एक प्रायोजित और जनता की गाढ़ी कमाई को जाया करने से अधिक कुछ नहीं थी. क्या इसे ही राहुल गांधी की ऐतिहासिक मुंबई यात्रा मान लेना चाहिए?

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