Monday, 18 April 2011

राहुल गांधी से ऐसे घटिया जवाब की उम्मीद नहीं थी

राहुल गांधी से ऐसे घटिया जवाब की उम्मीद नहीं थी
[सादर साभार  यशवंत सिंह एडिटर भड़ास4मीडिया, दिल्ली]

राहुल जब दलित के घर जाकर रात में रुकते हैं, वो हीरो बनना नहीं था. राहुल जब यूपी की सड़कों पर गाड़ियों के काफिले के साथ यात्रा करते हैं तो वो हीरो बनना नहीं था. अन्ना हजारे अगर आमरण अनशन कर बैठे और भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्लाबोल कर बैठे तो यह इसलिए कर बैठे क्योंकि वो हीरो बनना चाहते थे. बहत्तर वर्ष का आदमी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सार्थक बिल लाने की मांग करते हुए आमरण अनशन कर देता है और देश भर के लोगों को अपने साथ कनेक्ट कर लेता है, तो यह परिघटना राहुल को पच नहीं रहा.

अन्ना का ऐसा करना राहुल को बर्दाश्त नहीं, शायद अच्छा नहीं लगा. बर्दाश्त हो भी कैसे, गांधी नामधारी तो वे खुद हैं, गांधी के नाम को भुनाने वाले इकलौते वारिस तो वे खुद हैं, ऐसे में अगर कोई गांधी टोपी लगाए और गांधी जी को आदर्श मानने वाला अन्ना अवतरित हो जाए, परिदृश्य में आ जाए और जनसमर्थन पाकर हीरो बनता दिखे तो राहुल के पेट में मरोड़ स्वाभाविक है. तभी तो राहुल कह बैठते हैं कि वे भी भ्रष्टाचार से चिंतित हैं पर वे हीरो नहीं बनना चाहते इसलिए हल्ला नहीं मचाते. अरे राहुल भाई, बिलकुल डब्बा हो क्या, किसी डाक्टर ने कहा है कि हल्ला मत मचाओ, हीरो मत बनो. हीरो तो तुम्हारे पिता जी भी बने थे, दादी जी भी बनीं थीं, मां भी बनीं, दादा भी बनें, गांधी जी भी बने... हीरो बनने की परंपरा है अपने देश में और हीरो बनना खराब बात है, ये किसने कह दिया. सवाल केवल ये है कि किस तरह के हीरो बन रहे हो. कलमाडी व पवार टाइप हीरो बन रहे हो या चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह टाइप हीरो या महात्मा गांधी व जय प्रकाश नारायण टाइप हीरो.

लेकिन... राहुल को तो बयान देना था, मुंह खोलना था,,,, सो बयान दे डाला,,, मुंह खोल डाला.... लोग इस पर आह वाह करते हैं तो करते रहें.... नेहरु-गांधी खानदान के इस नवयुवक के बारे में क्या कहा जाए. उसे लगता है कि वह जंगल के एकांत में बैठकर चिंतन करेगा तो उसे भ्रष्टाचार से लड़ने का रास्ता सूझ जाएगा. परम भ्रष्ट लोगों की इस केंद्र वाली कांग्रेसी सरकार के वारिस माने जाने वाले राहुल से ऐसे बचकाने बयान की उम्मीद न थी. उन्हें शायद जनांदोलनों के बारे में नहीं पता. उन्हें शायद हाशिए पर पड़े लोगों की ताकत का अंदाजा नहीं. सत्ता के सुखों में पले बढ़े राहुल से किसी चमत्कार की जो लोग उम्मीद करते थे, उन्हें अब चिंतन करना चाहिए.

औरों की तरह मैं भी राहुल से प्रभावित था, थोड़ा बहुत, लेकिन अब नहीं हूं. राहुल में न सिर्फ अहम है बल्कि वे जनता के आदमी नहीं हैं. वे सत्ता के झूले पर झूलते हुए आंख मूंदते हैं और इस एकांत में देश चिंतन करते हैं और ऐसा करते करते उन्हें नींद आ जाती है और बड़े आसानी से अपने भक्तों को कनवींस कर लेते हैं कि वे दरअसल आंख इसलिए बंद किए थे क्योंकि वे देश के लिए चिंता कर रहे थे, चिंतन कर रहे थे.... और भक्त कह उठेंगे.. वाह प्रभु वाह.

राहुल में थोड़ी भी बुद्धि होती तो उन्हें जाकर अन्ना हजारे का चरण स्पर्श करना चाहिए. अन्ना हजारे की टीम में शामिल हो जाना चाहिए. राहुल में थोड़ी भी चेतना होती तो उन्हें अन्ना में अपने गांधी और नेहरु दिख जाते. लेकिन राहुल तिकड़मों से चल रही सरकार के युवराज हैं, सो, वे सत्ता मद से चूर हैं, भले इस मद का प्रदर्शन करने से भरसक बचने की कोशिश करते हों लेकिन इस बार जो बयान दिया है, उससे उनके मद का पता चलता है.

करप्शन के मुद्दे पर लंबे समय बाद चुप्पी तोड़ने वाले राहुल की बातों में राहुल का भविष्य दिखता है. वे देश पर गांधी नेहरु खानदान का वारिस होने, राजीव-सोनिया का पुत्र होने, युवा व आधुनिक होने के नाम पर किसी पांच साल राज कर सकते हैं, बतौर पीएम, और उसी पांच साल में देश की जनता का उनसे बचाखुचा मोह भी भंग हो जाएगा. क्योंकि राहुल जब अपनी कांग्रेस और अपने कांग्रेसियों को नहीं बदल पाए तो देश में क्या खाक बदलाव ले पाएंगे.

करप्शन के मुद्दे पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अपनी चु्प्पी तोड़ते हुए जो बयान दिया है, उसका आधार बना है सुप्रीम कोर्ट पूर्व जज वी.आर. कृष्णा का एक पत्र. कृष्णा ने राहुल को पत्र लिखकर पूछा था कि देश पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुका है, आखिर वो इस पूरे मामले में चु्प्पी क्यों साधे हुए हैं? आखिर उनके रहते अन्ना हजारे को भूख हड़ताल क्यों करनी पड़ रही है? सुप्रीम कोर्ट के इस पूर्व जज ने पत्र में राहुल गांधी पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुप बैठने का आरोप लगाया था. इसके बाद तिलमिलाये राहुल गांधी ने जवाब देते हुए कहा है कि आम आदमी की तरह वो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, वो भी आम लोगों की तरह इस लड़ाई में शामिल हैं और भ्रष्टाचार को पूरी तरह से मिटाने में लगे हैं, लेकिन उन्हें हीरो नहीं बनना है इसलिए वो हल्ला नहीं मचाते हैं.

राहुल ने कहा कि सही सोच रखने वाले ज्यादातर देशवासियों की तरह मैं भी वैसा ही महसूस करता हूं जैसा आप करते हैं. अपना काफी समय मैं इस सड़े हुए सिस्टम को सुधारने की कोशिश में, इसे बेहतर बनाने के तरीके से सोचने में लगाता हूं. फर्क यह है कि आपकी तरह मैं शिकायतें करके या पत्र लिखकर मुक्त नहीं हो सकता. मैं चीजों को सचमुच बदलने की कोशिशों में जुटा हूं जो समय-समय पर अपनी भावनाएं प्रकट कर देने के मुकाबले ज्यादा कठिन है. अन्ना प्रकरण पर अय्यर ने राहुल के ऊपर उदासीनता का आरोप लगाया था तो राहुल ने अपने जवाब में कहा है कि मुझे पता है कि गांधी का भारत और नेहरू का भारत कैसा होगा? उसी को बनाने में जुटा हुं, आपकी तरह शिकायत करके या आरोप  मढ़ कर सिस्टम को सुधारा नहीं जा सकता है. और जहां तक मेरे हीरो बनने की बात है, मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है.

पढ़ा आपने राहुल का जवाब. अब जरा राहुल से पूछिए कि क्या हीरो बनना गलत बात है. भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद शहादत देकर देश के लिए हीरो बने. इसमें क्या खराब था. इंदिरा गांधी बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कर हीरो बनीं. इसमें क्या गलत था. हीरो खुद कोई नहीं बनता. हीरो जमाना बनाता है आपको आपके काम के आधार पर. अगर हीरो नहीं बनना तो राहुल क्यों कई तरह के पोलिटिकल गिमिक करते रहते हैं. पर यह सच नहीं है. राहुल ने सिर्फ शब्दों के प्रहार के जरिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज को चुप कराया है. राहुल अब भी इस सवाल का जवाब नहीं दे सके हैं कि वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इतने उदासीन क्यों हैं.

आखिर राहुल कैसे भ्रष्टाचार पर मुखर रह सकते हैं क्योंकि सारे भ्रष्टाचार तो उन्हीं की नाक के नीचे हो रहे हैं. कलमाडी, पवार, टूजी, कामनवेल्थ, महंगाई.... सारे के सारे घोटाले किसकी सरकार के हैं. राहुल गांधी से ऐसी उम्मीद न थी. लेकिन अच्छा है, राहुल ने अपनी पोल खुद खोल ली. उन्हें उनका एकांत चिंतन मुबारक. लेकिन वे यह नोट करके रख लें कि अगर उनका यही रवैया रहा और यही सोच रही तो भविष्य के भारत का जब इतिहास लिखा जाएगा तो राहुल गांधी का नाम सिवाय कांग्रेस खानदान के एक सामान्य उत्तराधिकारी के अलावा और किसी रूप में याद नहीं किया जाएगा.

उम्मीद है राहुल खुद को अपनी भ्रष्ट सरकार से अलग घोषित करेंगे और अपनी ही सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर अभियान चलाएंगे और राष्ट्रपति से मनमोहन सरकार की बर्खास्तगी की मांग करेंगे क्योंकि मनमोहन सरकार ने जितना दुख दिया है इस देश को, शायद ही उससे पहले किसी ने ऐसा किया हो. घपलों और घोटालों का शहंशाह है यह कांग्रेसी सरकार और राहुल गांधी दुर्भाग्य से इसी सरकार के युवराज बने हुए हैं. उन्हें उनका भावी राजपाठ मुबारक, लेकिन वे जान लें कि राजनीति कोठियों में बनी तिकड़मों से देर तक नहीं चलती. राजनीति की निर्णायक दशा-दिशा जनता तय करती है और जनता धीरे धीरे जान और जाग रही है.

यशवंत

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