Wednesday 20 April 2011

“साम्प्रदायिक” तो था ही, अब NDTV द्वारा न्यायपालिका पर भी सवाल… NDTV Communal TV Channel, Anti-Judiciary, Anti-Hindu NDTV

“साम्प्रदायिक” तो था ही, अब NDTV द्वारा न्यायपालिका पर भी सवाल… NDTV Communal TV Channel, Anti-Judiciary, Anti-Hindu NDTV
विगत एक-डेढ़ माह में दो प्रमुख न्यायिक घटनाएं हुई हैं, जिनका जैसा व्यापक और सकारात्मक प्रचार होना चाहिये था वह हमारे महान देश के घृणित (यानी सेकुलर) चैनलों द्वारा जानबूझकर नहीं किया गया। इसके उलट इन दोनों न्यायिक निर्णयों को या तो नज़र-अन्दाज़ करने की अथवा इन्हें नकारात्मक रूप में पेश करने की पुरज़ोर कोशिश की गई। हमेशा की तरह इस मुहिम का अगुआ “चर्च-पोषित” चैनल NDTV ही रहा…

पहला महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय आया था कर्नाटक में, जहाँ जस्टिस सोमशेखर आयोग ने यह निर्णय दिया कि 2008 में कर्नाटक के विभिन्न इलाकों में चर्च पर हुए हमले में संघ परिवार का कोई हाथ नहीं है… यह घटनाएं एवेंजेलिस्टों द्वारा हिन्दू देवताओं के गलत चित्रण के कारण उकसाये जाने का परिणाम हैं एवं इसमें शामिल लोगों का यह कृत्य पूर्णतः व्यक्तिगत था, जस्टिस सोमशेखर (Justice Somshekhar Report of Karnataka Church Attack) ने स्पष्ट लिखा है कि “ऐसा कोई सबूत नहीं है कि इन हमलों में राज्य सरकार अथवा इसके किसी मुख्य कार्यकारी का सीधा या अप्रत्यक्ष हाथ हो…” । परन्तु वह “सेकुलर” ही क्या, जो भाजपा या हिन्दुओं के पक्ष में आये हुए किसी फ़ैसले को आसानी से मान ले… जस्टिस सोमशेखर की रिपोर्ट आने के तुरन्त बाद NDTV ने अपना घृणित खेल खेलना शुरु कर दिया…

उल्लेखनीय है कि बिनायक सेन (Binayak Sen Verdict) के मामले में भी “लोअर कोर्ट” और “हाईकोर्ट” के निर्णय की सबसे अधिक आलोचना और हायतौबा NDTV ने ही मचाई थी… बिनायक सेन और चर्च का नापाक गठबन्धन भी लगभग उजागर हो चुका है…। बहरहाल बात हो रही थी NDTV द्वारा चलाई जा रही घटियातम पत्रकारिता की…(NDTV Hate and False Campaign)

जस्टिस सोमशेखर की आधिकारिक रिपोर्ट (जिन्हें राज्य सरकार ने नियुक्त किया था और जिन्होंने 2 साल में 754 गवाहों, 1019 आवेदनों और 34 वकीलों की जिरह-बहस और बयानों के आधार पर सुनवाई की) आने के तुरन्त बाद NDTV ने अपने चैनल और साईट पर एक अन्य रिटायर्ड जज एमएफ़ सलधाना की रिपोर्ट प्रकाशित करना और प्रचारित करना शुरु कर दिया। स्वयं NDTV और जस्टिस सलधाना के अनुसार चर्च पर हुए हमलों की यह जाँच “पूर्णतः व्यक्तिगत और स्वतन्त्र” थी… यानी एमएफ़ सलधाना साहब ने खुद ही अपने “विवेक”(?) से चर्च पर हुए इन हमलों की जाँच करने का निर्णय ले लिया और कर भी ली…। रिटायर्ड जस्टिस सलधाना साहब अपनी इस “व्यक्तिगत” रिपोर्ट में फ़रमाते हैं, “चर्च पर हुए इन हमलों में राज्य की पुलिस भी शामिल थी, तथा बजरंग दल के नेता महेन्द्र कुमार ने सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर चर्चों पर हमले किये…” (यह अजीबोगरीब निष्कर्ष जस्टिस सलधाना साहब ने किस गवाह, बयान आदि के आधार पर निकाले, यह बात NDTV ने अभी तक गुप्त रखी है)।

लेकिन कर्नाटक सरकार को बदनाम करने और हिन्दूवादी संगठनों को निशाना बनाने की अपनी इस घृणित कोशिश में NDTV ने जानबूझकर कुछ तथ्य छिपाये, क्यों छिपाये… यह आप इन तथ्यों को पढ़कर ही समझ जायेंगे –

1) जस्टिस एमएफ़ सलधाना यानी जस्टिस “माइकल एफ़ सलधाना”।

2) जस्टिस माइकल सलधाना दक्षिण कन्नडा जिले के कैथोलिक एसोसियेशन के अध्यक्ष हैं… (अब खुद ही सोचिये कि कैथोलिक एसोसियेशन के अध्यक्ष द्वारा की गई “व्यक्तिगत” जाँच कितनी निष्पक्ष हो सकती है)। मजे की बात तो यह है कि जस्टिस सलधाना खुद कहते हैं कि “सरकार द्वारा बनाये गये आयोग के नतीजे निष्पक्ष नहीं हो सकते…” (क्या यह नियम उन पर लागू नहीं होता…? वे भी तो कैथोलिक एसोसियेशन के अध्यक्ष हैं, फ़िर उन्हें न तो ढेर सारे गवाह उपलब्ध थे और न ही कागज़ात, फ़िर भी उन्होंने अपनी “व्यक्तिगत निष्पक्ष” रिपोर्ट पेश कर दी?… न सिर्फ़ पेश कर दी, बल्कि उनके सेकुलर चमचे NDTV ने वह तुरन्त प्रसारित भी कर डाली?)

(चित्र में जस्टिस माइकल सलधाना Justice Saldhana in Christian Association Programme, उडुपी जिले के यूनाइटेड क्रिश्चियन एसोसियेशन के कार्यक्रम में एक पुस्तिका का विमोचन करते हुए)

जस्टिस “माइकल” सलधाना की निष्पक्षता की पोल तो उसी समय खुल चुकी थी, जब कर्नाटक सरकार ने गौ-हत्या का बिल विधानसभा में पेश किया था। माइकल सलधाना ने उस समय एक “ईसाई-नेता” की हैसियत से गौहत्या बिल (Karnataka Cow Slaughter Bill Opposed) का विरोध किया था और कहा था कि “कर्नाटक सरकार द्वारा यह कानून अल्पसंख्यकों की भोजन की आदतों को बदलने की साजिश है, और यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है कि वे क्या खाएं और क्या न खाएं…”।

जस्टिस माइकल की “कथित निष्पक्षता” का एक और नमूना देखिये – “इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर रिलिजीयस फ़्रीडम” (International Institute of Religious Freedom) की भारत आधारित रिपोर्ट में “जस्टिस माइकल सलधाना लिखते हैं – “मंगलोर एवं उडुपी जिले के उच्चवर्णीय हिन्दू ब्राह्मण समूचे कर्नाटक में हिन्दुत्व की विचारधारा के प्रसार में सक्रिय हैं, चूंकि ब्राह्मण जातिवादी व्यवस्था बनाये रखना चाहते हैं और ईसाई धर्मान्तरण का सबसे अधिक नुकसान उन्हें ही होगा, इसलिये वे “हिन्दुत्व” की अवधारणा को मजबूत रखना चाहते हैं, और इसी कारण वे “क्रिश्चियानिटी” से लड़ाई चाहते हैं, जबकि ईसाई धर्म एक पवित्र और भलाई करने वाला धर्म है…”।

एक हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से ऐसी “साम्प्रदायिक” टिप्पणी की आशा नहीं की जा सकती, एक तरफ़ तो वे खुद ही “ईसाई धर्मान्तरण” की घटना स्वीकार कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ ब्राह्मणों को गाली भी दे रहे हैं कि वे दलितों-पिछड़ों को ईसाई बनने से रोकने के लिये “हिन्दुत्व” का हौआ खड़ा कर रहे हैं… क्या एक “निष्पक्ष” जज ऐसा होता है? और NDTV जैसा घटिया चैनल इन्हीं साहब की रिपोर्ट को हीरे-मोती लगाकर पेश करता रहा, क्योंकि…

1) कर्नाटक में भाजपा की सरकार है, जो इन्हें फ़ूटी आँख नहीं सुहा रही,

2) हिन्दूवादी संगठनों को जस्टिस सोमशेखर ने बरी कर दिया, जबकि NDTV की मंशा यह है कि चाहे जैसे भी हो, संघ-भाजपा-बजरंग दल-विहिप को कठघरे में खड़ा रखे… न्यायपालिका का इससे बड़ा मखौल क्या होगा, तथा इससे ज्यादा नीच पत्रकारिता क्या होगी?

दूसरी महत्वपूर्ण न्यायिक घटना थी गोधरा ट्रेन “नरसंहार” (Godhra Massacre Judgement) के बारे में आया हुआ फ़ैसला… लालू जैसे जोकरों और यूसी बैनर्जी (U.C. Banerjee Commission on Godhra) जैसे भ्रष्ट जजों की नापाक पुरज़ोर कोशिशों के बावजूद जो “सच” था आखिरकार सामने आ ही गया। सच यही था कि “जेहादी मानसिकता” वाले एक बड़े गैंग ने 56 ट्रेन यात्रियों को पेट्रोल डालकर जिन्दा जलाया। गोधरा को शुरु से सेकुलर प्रेस और मीडिया द्वारा “हादसा” कहा गया… “गोधरा हादसा”… जबकि “हादसे” और “नरसंहार” में अन्तर होता है यह बात कोई गधा भी बता सकता है। इसी NDTV टाइप के सेकुलर मीडिया ने गोधरा के बाद अहमदाबाद और गुजरात के अन्य हिस्सों में हुए दंगों को “नरसंहार” घोषित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। तीस्ता सीतलवाड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में फ़र्जी केस लगाये गये, नकली शपथ-पत्र (Fake Affidavit by Teesta Setalvad) दाखिल करवाये गये, तहलका, NDTV से लेकर सरकार के टुकड़ों पर पलने वाले सभी चैनलों ने पत्रकारिता को “वेश्या-बाजार” बनाकर बार-बार गुजरात दंगे को “नरसंहार” घोषित किया। पत्रकारिता को “दल्लेबाजी” का धंधा बनाने वाले इन चैनलों से पूछना चाहिये कि यदि गुजरात दंगे “नरसंहार” हैं तो कश्मीर से हिन्दुओं का सफ़ाया क्या है?, मराड में हुआ संहार क्या है? दिल्ली में कांग्रेसियों ने जो सिखों (Anti-Sikh Riots in Delhi) के साथ किया वह क्या था? भोपाल का गैस काण्ड और बेशर्मी से एण्डरसन को छोड़ना (Anderson Freed by Rajiv Gandhi) नरसंहार नहीं हैं क्या? इससे पहले भी भागलपुर, मेरठ, बरेली, मालेगाँव, मुज़फ़्फ़रपुर के दंगे क्या “नरसंहार” नहीं थे? लेकिन सेकुलर प्रेस को ऐसे सवाल पूछने वाले लोग “साम्प्रदायिक” लगते हैं, क्योंकि आज तक किसी ने इनके गले में “बम्बू ठाँसकर” यही नहीं पूछा कि यदि गोधरा न हुआ होता, तो क्या गुजरात के दंगे होते? लेकिन जब भी न्यायपालिका ऐसा कोई निर्णय सुनाती है जो हिन्दुओं के पक्ष या मुस्लिमों के विरोध में हो (चाहे वह बाबरी मस्जिद केस हो, रामसेतु हो या शाहबानो तलाक केस) NDTV जैसे “भाड़े के टट्टू” चिल्लाचोट करने में सबसे आगे रहते हैं…। गोधरा फ़ैसला आने के बाद सारे सेकुलरों को साँप सूँघ गया है, उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अब इसकी व्याख्या कैसे करें? हालांकि तीस्ता सीतलवाड और बुरका दत्त जैसी “मंथरा” और “पूतना”, गोधरा नरसंहार और गुजरात दंगों को “अलग-अलग मामले” बताने में जुटी हुई हैं।

गोधरा काण्ड के फ़ैसले के बाद भी NDTV अपनी नीचता से बाज नहीं आया, विनोद दुआ साहब अपनी रिपोर्ट में (वीडियो देखिये) 63 “बेगुनाह”(?) (जो सिर्फ़ सबूतों के अभाव में बरी हुए हैं) मुसलमानों के लिये चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं, लेकिन विनोद दुआ साहब ने कभी भी उन 56 परिवारों के लिये अपना “सेकुलर सुर” नहीं निकाला जो S-6 कोच में भून दिये गये, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। शायद जलकर मरने वाले 56 परिवारों का दुख कम है और इन नौ साल जेल में रहे इन 63 लोगों के परिवारों का दुख ज्यादा है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कश्मीर से खदेड़े गये लाखों हिन्दुओं का दुख-दर्द उतना बड़ा नहीं है, जितना फ़िलीस्तीन में इज़राइल के हाथों मारे गये मुसलमानों का…, यही NDTV की “साम्प्रदायिक मानसिकता” है। (Atrocities and Genocide of Kashmmiri Hindus)

दूसरों को “साम्प्रदायिक” कहने से पहले NDTV और प्रणब रॉय को अपनी गिरेबान में झाँकना चाहिये कि वह खुद कितनी साम्प्रदायिक खबरें परोस रहा है, बुरका दत्त जैसी सत्ता-कारपोरेट की दलालों को अभी भी प्रमुखता दिये हुए है। चैनल चलाने के लाइसेंस और तथाकथित पत्रकारिता करने के गरुर में उन्होंने देशहित और सामाजिक समरसता को भी भुला दिया है…
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चलते-चलते - "वेटिकन के मोहरे NDTV" को यह तो पता ही होगा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन (KGB) (जो अपने बेटों और दामाद के कारनामों और बेवकूफ़ी की वजह से अब भ्रष्टाचार के मामलों में घिर गये हैं) खुद को दलित कहते नहीं थकते, जबकि केरल की SC-ST फ़ेडरेशन के अध्यक्ष वी कुमारन के खुल्लमखुल्ला आरोप लगाया है कि KGB साहब एक फ़र्जी ईसाई हैं और वेटिकन द्वारा भारतीय न्याय-व्यवस्था में घुसेड़े गये हैं। KGB की बेटी और दामाद श्रीनिजन को लन्दन में उच्च शिक्षा हेतु वर्ल्ड काउंसिल ऑफ़ चर्च ने "प्रायोजित" किया था, श्रीनिजन ने SC/ST सीट पर "अजा" बताकर चुनाव लड़ा, जबकि वह "खुल्लमखुल्ला" ईसाई है…। भारत के सारे दलित-ओबीसी संगठन और नेता मुगालते में ही रह जाएंगे, जबकि KGB तथा श्रीनिजन जैसे "दलित से ईसाई बने हुए लोग", असली दलितों का हक छीन ले जाएंगे…

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